भारतीय सेना के पूर्व जनरल बिपिन चन्द्र जोशी (Bipin Chandra Joshi)
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
जनरल बिपिन चंद्र जोशी का जन्म 05 दिसम्बर 1935 को पिथौरागढ़ में जन्म हुआ था। जनरल जोशी अल्मोड़ा जिले के दन्या के मूल निवासी थे। जोशी थल सेनाध्यक्ष पद पर पहुंचने वाले उत्तराखंड के पहले सैन्य अधिकारी बने। वे भारतीय थल सेना के 17वें प्रमुख बनेजोशी का जन्म एक हिंदू कुमाऊंनी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। जिस समय वे सेना प्रमुख बने, उस समय पिथौरागढ और अल्मोडा उत्तर प्रदेश के हिस्से थे। वह उत्तर प्रदेश (पिथौरागढ़, उत्तराखंड तत्कालीन उत्तर प्रदेश का हिस्सा था) से पहले सेना प्रमुख थे।आज पिथौरागढ जिला उत्तराखंड की सीमा में आता है। उत्तराखण्ड की पवित्र, पावन भूमि एक ओर धार्मिक, आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक अनुष्ठान स्थली रही है, वहीं यह देवभूमि जनरल बिपिन चंद्र जोशी ने 30 जून 1993 को 17वें सेनाध्यक्ष के रूप में भारतीय सेना का कार्यभार संभाला।
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दिसंबर 1954 में भारतीय सेना में बख्तरबंद कोर में कमीशन प्राप्त किया, उन्होंने महत्वपूर्ण कमांड और स्टाफ नियुक्तियाँ कीं जिनमें स्टाफ अधिकारी भी शामिल हैं गाजा में संयुक्त राष्ट्र बल के साथ, कोर मुख्यालय में ब्रिगेडियर जनरल स्टाफ और मई 1973 से अक्टूबर 1976 तक ऑस्ट्रेलिया में सैन्य सलाहकार के रूप में। उन्हें कश्मीर में विद्रोह से लड़ने के लिए 1990में राष्ट्रीय राइफल्स को खड़ा करने का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान पश्चिमी सेक्टर में एक बख्तरबंद रेजिमेंट की कमान संभाली। उन्होंने एक स्वतंत्र बख्तरबंद ब्रिगेड और एक इन्फैंट्री डिवीजन की भी कमान संभाली है। उन्होंने पूर्वी सेक्टर में एक कोर की कमान संभाली और दक्षिणी कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ भी थे। उन्होंने सेना मुख्यालय में अतिरिक्त महानिदेशक परिप्रेक्ष्य योजना (एडीजीपीपी) और महानिदेशक सैन्य संचालन (डीजीएमओ) की नियुक्ति भी संभाली है।
बख्तरबंद कोर केंद्रऔर स्कूल में प्रशिक्षक के रूप में उनके तीन कार्यकाल थे और वह कॉलेज ऑफ कॉम्बैट, महू में एक निर्देशन स्टाफ भी थे। जनरल जोशी सबसे असाधारण स्तर की विशिष्ट सेवा के लिए परम विशिष्ट सेवा पदक (पीवीएसएम) और अति विशिष्ट सेवा पदक (एवीएसएम) के प्राप्तकर्ता रहे हैं। भारतीय सेना ने 1971 के युद्ध में जिस टी-55 टैंक की मदद से पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी थी, वह टैंक अब पिथौरागढ़ शहर की शान बढ़ा रहा है। पिथौरागढ़ जिले में जनरल बीसी जोशी आर्मी पब्लिक स्कूल के प्रवेश द्वार पर भारतीय सेना के पराक्रम का प्रतीक टी-55 टैंक बच्चों के अंदर देशभक्ति की भावना को जागृत करने के साथ ही सेना के गौरवशालीइतिहास से भी उन्हें रूबरू करा रहा है।
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भारतीय सेना ने जनरल जोशी द्वारा 1971 के भारत-पाक युद्ध में रेजीमेंट का कुशल नेतृत्व करने की याद में यह टैंक पिथौरागढ़ के आर्मी स्कूल को समर्पित किया है, जिसका नाम भी जनरल बिपिन चंद्र जोशी के नाम पर रखा गया है। टी-55 टैंक युद्ध में हमारी सेना के अविस्मरणीय पराक्रम एवं गौरवशाली गाथा का प्रतीक है. रूस में निर्मित टी-55 टैंक का पाकिस्तान के खिलाफ 1971 के युद्ध में इस्तेमाल हुआ था, जिसमें पड़ोसी मुल्क की सेना को करारी हार का सामना करना पड़ा था। युद्ध के दौरान टी- 55 टैंक पाकिस्तानी सैनिकों के लिए दहशत की वजह बन गए थे। सीमा पर इसकी दहाड़ मात्र को सुनकर पाकिस्तानी कांप उठते थे। यह टैंक साल 1968 में सेना में शामिल हुआ और 2011 तक सेवा देता रहा। दिवंगत जनरल बीसी जोशी की तरह उत्तराखंड और पहाड़ के सरोकारों से बेहद लगाव था। जनरल बीसी जोशी द्वारा बोया गया एक पौधा, अब प्रदूषण मुक्त स्वस्थ वातावरण के साथ 23 एकड़ का एक विशाल परिसर है। यह एक स्वस्थ पौधे में बदल गया है और पिथौरागढ़ की पहाड़ियों की खूबसूरत घाटी में अच्छी तरह से विकसित हो रहा है।
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जनरल बीसी जोशी आर्मी पब्लिक स्कूल की स्थापना सेना मुख्यालय, एडजुटेंट जनरल की शाखा के तत्वावधान में की गई है, ताकि पूर्व सैनिकों सहित रक्षा कर्मियों के बच्चों और कुछ हद तक नागरिकों और अनिवासी भारतीयों की जरूरतों को पूरा किया जा सके। स्कूल का उद्देश्य ऐसे वातावरण में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना है जो विज्ञान और प्रौद्योगिकी के समकालीन मूल्यों को हमारी समृद्ध परंपराओं, आदर्शों और सांस्कृतिक विरासत के साथ जोड़ता है देवभूमि उत्तराखंड के बारे में कहा जाता है कि शायद ही कोई गांव ऐसा हो जहां से लोग सेना में जाकर देशसेवा न कर रहे हों। ऐसे में जब उनका लाल सेना में सर्वोच्च पद पर पहुंचा हो तो उनकी खुशी का अंदाजा लगाया जा सकता है। गांव-गांव खुशियां मनाई गईं, ढोल बजे, लोगों ने एक दूसरे को मिठाई खिलाई। वह दिन देखने वाले लोग याद करते हैं कि लोग बच्चों को जनरल बीसी जोशी का उदाहरण देने लगे। जोशी COAS देश के लिए थे और पहाड़ों के लिए तो प्रेरणा बन चुके थे। वह दिन भी आया जब उन्होंने पदभार संभाला। तारीख थी 1 जुलाई और सन 1993। इससे पहले वह पूर्वी और दक्षिणी कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ के तौर पर सेवा कर चुके थे। 1971 की भारत-पाक जंग में भी वह शामिल हुए थे।
नई दिल्ली में सेना मुख्यालय में महानिदेशक (योजना) और महानिदेशक सैन्य संचालन के रूप भी सेवा दे चुके थे। वह आज भले ही हमारे बीच नहीं हैं पर जनरल बिपिन चंद्र जोशी का नाम उत्तराखंड और पूरे देश की युवा पीढ़ी को सदैव देशसेवा और प्रेरणा पुंज के रूप में राह दिखाता रहेगा। बाद के सालों में हुए आर्मी चीफ जनरल जोशी को अवश्य याद करते रहे। उनकी स्मृति में व्याख्यान आयोजित होते हैं, तो स्कूल चल रहा है। जनरल बीसी जोशी यह नाम उत्तराखंड की आन बान और शान है। नब्बे के दशक में पहाड़ से निकले युवाओं ने देशभक्ति का जज्बा लिए जब भी सेना में कदम बढ़ाया तो उनके दिल में बीसी जोशी का नाम प्रेरणा बना। वह पहाड़ के पहले शख्स थे, जो सेना प्रमुख के पद पर पहुंचे। सैन्यधाम कहे जाने वाले उत्तराखंड के लिए जनरल जोशी का सेना प्रमुख बनना गौरव का ऐसा लम्हा था, जिसकी गूंज कई वर्षों तक सुनी जाती रही।
( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )