Chhath festival : छठ पूजा (Chhath Puja) कल से, नहाय-खाय के साथ महापर्व की होगी शुरुआत, 36 घंटे रखा जाता है कठोर व्रत - Mukhyadhara

Chhath festival : छठ पूजा (Chhath Puja) कल से, नहाय-खाय के साथ महापर्व की होगी शुरुआत, 36 घंटे रखा जाता है कठोर व्रत

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Chhath festival : छठ पूजा (Chhath Puja) कल से, नहाय-खाय के साथ महापर्व की होगी शुरुआत, 36 घंटे रखा जाता है कठोर व्रत

मुख्यधारा डेस्क

दीपावली के बाद मनाया जाने वाला छठ पूजा महापर्व की तैयारी शुरू हो चुकी है। छठ पूजा का पर्व कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। यह सबसे कठिन व्रत माना जाता है।

छठ पूजा पर घर जाने वालों के लिए कई दिनों से ट्रेनों में भारी भीड़ चल रही है। छठ पूजा बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के इलाकों में सबसे ज्यादा मनाया जाता है। साथ ही इसे नेपाल में भी मनाया जाता है। इस वर्ष यह त्योहार 17 नवंबर से शुरू होकर 20 नवंबर तक चलेगा।

छठ के दौरान, महिलाएं कठिन उपवास का पालन करती हैं और अपने परिवार और बच्चों के कल्याण, समृद्धि और उन्नति के लिए भगवान सूर्य और छठी मैया से प्रार्थना करती हैं। छठ महापर्व पूरे चार दिनों तक मनाया जाता है और व्रती 36 घंटे का कठिन निर्जला व्रत रखती है।

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बता दें कि 17 नवंबर को छठ पूजा की शुरुआत नहाय-खाय के साथ होगी, 18 नवंबर को खरना पर्व है, 19 नवंबर को संध्या अर्घ्य दिया जाएगा और 20 नवंबर ऊषा अर्घ्य के साथ चार दिवसीय छठ पर्व का समापन हो जाएगा।

छठ पूजा में सूर्य देव की पूजा की परंपरा है। यह एकमात्र ऐसा पर्व है, जिसमें उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही डूबते सूर्य को भी अर्घ्य दिया जाता है। छठ पूजा के दौरान व्रती को चार दिनों तक जमीन पर सोना चाहिए। कंबल या फिर चटाई का प्रयोग करना शुभ माना जाता है।

छठ पूजा के दौरान साफ-सफाई का खास ध्यान रखना चाहिए। छठी मइया को साफ-सफाई और नियमों का पालन करके ही खुश किया जा सकता है। थोड़ी सी भी लापरवाही से माता नाराज हो जाती हैं।

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छठ का पर्व धार्मिक ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी अहम माना जाता है। षष्ठी तिथि को खगोलीय अवसर होता है। इस समय सूरज की पराबैंगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में जमा होती हैं। उसके कुप्रभावों से रक्षा करने के लिए इस महापर्व को मनाया जाता है।

मान्यता के अनुसार भगवान श्री राम और माता सीता ने रावण का वध करने के बाद कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि को उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना की। उसके अगले दिन यानी सप्तमी को उदयीमान सूर्य की पूजा कर आशीर्वाद प्राप्त किया।

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