सीजेआई : जस्टिस बीआर गवई 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में आज शपथ लेंगे, सात महीने का होगा कार्यकाल

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सीजेआई : जस्टिस बीआर गवई 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में आज शपथ लेंगे, सात महीने का होगा कार्यकाल

मुख्यधारा डेस्क

भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना मंगलवार, 13 मई को सेवानिवृत्त हो गए और उन्होंने अपना कार्यभार सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण (बीआर) गवई को सौंप दिया। न्यायमूर्ति गवई आज, बुधवार को भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लेंगे। जस्टिस गवई का कार्यकाल सात महीने का होगा और वह 65 वर्ष की आयु प्राप्त करने पर 23 दिसंबर को पद से मुक्त हो जाएंगे। वह वर्तमान चीफ जस्टिस खन्ना के बाद सुप्रीम कोर्ट के सबसे वरिष्ठ जज हैं।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जस्टिस गवई को उनके पद की शपथ दिलाएंगी। जस्टिस गवई का 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में जन्म हुआ था। उन्होंने 1985 में कानूनी करियर शुरू किया। 1987 में बॉम्बे हाईकोर्ट में स्वतंत्र प्रैक्टिस शुरू की।

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इससे पहले उन्होंने पूर्व एडवोकेट जनरल और हाईकोर्ट जज स्वर्गीय राजा एस भोंसले के साथ काम किया। 1987 से 1990 तक बॉम्बे हाईकोर्ट में वकालत की। अगस्त 1992 से जुलाई 1993 तक बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच में सहायक सरकारी वकील और एडिशनल पब्लिक प्रॉसीक्यूटर के रूप में नियुक्त हुए। 14 नवंबर 2003 को बॉम्बे हाईकोर्ट के एडिशनल जज के रूप में प्रमोट हुए। 12 नवंबर 2005 को बॉम्बे हाईकोर्ट के परमानेंट जज बने।

जस्टिस गवई देश के दूसरे दलित मुख्य न्यायाधीश हैं। उनसे पहले जस्टिस केजी बालाकृष्णन भारत के मुख्य न्यायाधीश बने थे। जस्टिस बालाकृष्णन साल 2007 में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे।

जस्टिस गवई के पिता आरएस गवई बिहार और केरल के पूर्व राज्यपाल रहे

जस्टिस गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था। जस्टिस गवई के पिता दिवंगत आरएस गवई भी एक मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता और बिहार और केरल के पूर्व राज्यपाल रहे। जस्टिस गवई ने अपने वकालत करियर की शुरुआत साल 2003 में बॉम्बे उच्च न्यायालय में बतौर एडिश्नल जज की थी। इसके बाद साल 2005 में वे स्थायी जज नियुक्त हुए।

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जस्टिस गवई ने 15 वर्षों तक मुंबई, नागपुर, औरंगाबाद और पणजी की पीठ में अपनी सेवाएं दीं।सुप्रीम कोर्ट के इन अहम फैसलों का हिस्सा थे गवई । आर्टिकल 370 हटाए जाने वाले फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं की जिन पांच मेंबर वाली संवैधानिक बेंच सुनवाई कर रही थी, उनमें जस्टिस गवई भी थे। राजनीतिक फंडिंग के लिए लाई गई इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को खारिज करने वाली बेंच का भी गवई हिस्सा थे। नोटबंदी के खिलाफ दायर अर्जियों पर सुनवाई करने वाले बेंच में भी वो शामिल थे।

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