देवभूमि नकली दवा (fake medicine) के धंधेबाजों के लिए राज्य सॉफ्ट टारगेट बन गया
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड में नकली दवाओं का जाल फैलता जा रहा है या यूं कह लीजिए कि नकली दवा के धंधेबाजों के लिए राज्य सॉफ्ट टारगेट बन गया है। यहां निरंतर ऐसे मामले पकड़ में आ रहे हैं। खासकर रुड़की और इसके आसपास के क्षेत्र में यह धंधा खूब फूल-फल रहा है। दूसरी तरफ,खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन इन धंधेबाजों का नेटवर्क भेद पाने में नाकाम साबित हो रहा है। पकड़ी गई नकली दवा फैक्ट्री के प्रकरण से विभाग की कार्यप्रणाली फिर सवालों के घेरे में आ गई है। सवाल यह भी है कि क्यों विभाग को ऐसे गंभीर प्रकरणों की भनक नहीं लग पाती। क्या विभाग का काम सिर्फ लाइसेंस जारी करना है? यह कौन देखेगा कि जिसे लाइसेंस दिया गया है, वह प्रतिष्ठान मानकों के अनुरूप काम कर भी रहा है या नहीं। इसके अलावा जिस निगरानी को विभाग में विजिलेंस सेल गठित की है, वह क्या कर रहा है।
जाहिर है कि औषधि नियंत्रक विभाग का विजिलेंस तंत्र सिर्फ कागजों में सक्रिय है। नकली दवा ही नहीं, प्रतिबंधित दवाओं की बिक्री रोकने को लेकर भी विभाग निष्क्रिय है। इसी वर्ष सात मई को प्रेमनगर पुलिस ने एक मेडिकल स्टोर से 68 हजार प्रतिबंधित कैप्सूल और 12 हजार गोलियां बरामद की थीं। जिसके बाद विभाग ने कुछ दिन तक मेडिकल स्टोरों की जांच को लेकर सक्रियता दिखाई और फिर मामला ठंडे बस्ते में चला गया। यही नहीं, एक पखवाड़ा पहले पुलिस की ओर से दवा की दुकानों पर की गई छापेमारी को अधिकार क्षेत्र में उलझाने का प्रयास हुआ। नकली दवा बनाने की फैक्ट्री का मामला सामने आने के बाद औषधि नियंत्रक से पूरे प्रदेश में दवाओं की जांच के लिए अभियान शुरू करने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने सभी वरिष्ठ औषधि निरीक्षक और औषधि निरीक्षकों को फील्ड में उतरकर दवाओं की जांच करने के लिए कहा है। दवाओं की जांच में लापरवाही बरतने वाले औषधि निरीक्षकों को निलंबन की चेतावनी दी गई है।
औषधि नियंत्रक ने कहा कि दवाओं की जांच में लापरवाही करने वाले औषधि निरीक्षकों के खिलाफ कड़े कदम उठाए जाएंगे। यह भी कहा कि सोमवार से नियमित रूप से इस अभियान की निगरानी की जाएगी। इसके अलावा विभाग की विजिलेंस सेल को भी सक्रिय करने के निर्देश उन्होंने दिए हैं। आमतौर पर इस तरह की दवा बनाने वाले जालसाज कुरियर का भी इस्तेमाल करते हैं। ताकि, जीएसटी व अन्य चेकपोस्ट पर माल न पकड़ा जा सके। पिछले साल हरिद्वार में हुई इस तरह की कार्रवाई में इस बात का खुलासा हुआ था। मंगलौर में दवा बनाते पकड़े गए आरोपियों ने खुलासा किया था कि वे छोटे-छोटे पार्सल को कुरियर के माध्यम से विभिन्न राज्यों को भेजते हैं। ऐसे में उन्हें न तो टैक्स देना पड़ता है और न ही यह कारोबार किसी की निगाह में आता है। जाहिर है कि औषधि नियंत्रक विभाग का विजिलेंस तंत्र सिर्फ कागजों में सक्रिय है। नकली दवा ही नहीं, प्रतिबंधित दवाओं की बिक्री रोकने को लेकर भी विभाग निष्क्रिय है।
इसी वर्ष सात मई को प्रेमनगर पुलिस ने एक मेडिकल स्टोर से 68 हजार प्रतिबंधित कैप्सूल और 12 हजार गोलियां बरामद की थीं।जिसके बाद विभाग ने कुछ दिन तक मेडिकल स्टोरों की जांच को लेकर सक्रियता दिखाई और फिर मामला ठंडे बस्ते में चला गया।यही नहीं, एक पखवाड़ा पहले पुलिस की ओर से दवा की दुकानों पर की गई छापेमारी को अधिकार क्षेत्र में उलझाने का प्रयास हुआ। उत्तराखंड में बड़े पैमाने पर फल-फूल है नकली दवाओं का कारोबार और शासन-प्रसाशन मूक दर्शक मना हुआ है। शासन- प्रसाशन की इस लापरवाही का नतीजा आम जनता भुगतना पड़ रहा है।नकली दवाओं का यह खेल दशकों से चल रहा है। धीरे-धीरे यह गोरखधंधा अब मार्डन भी होता जा रहा है।
आज कल ऑनलाइन दवाईयां मंगाने का दौर चल रहा है इस दौर में भी गोरखधंधे बाज ब्रांडेड कंपनियों के रैपर पर नकली दवाई आम लोगों को सप्लाई कर रहे है। जिन 76 कंपनियों के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है उनमें सबसे अधिक उत्तराखंड की 45, मध्य प्रदेश की 23 और बाकी हिमाचल की कंपनियां हैं। इन सभी कंपनियों पर नकली दवाओं के निर्माण के आरोप लगे थे। पिछले दिनों डग्र कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया की ओर से दवाओं के मामले में अमेजन और फ्लिपकार्ट को भी नोटिस भेजा गया था। दोनों पर ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक एक्ट 1940 के उल्लंघन का आरोप लगा था। भारतीय कंपनियों की ओर से बनाए गए कफ सिरप पीने से गांबिया और उज्बेकिस्तान में बच्चों के मौत की खबरें आई थी। इस प्रकरण के बाद से भारतीय दवा कंपनियां सवालों के घेरे में आ गईं थी। दवा कंपनियों के खिलाफ सरकार की ओर से की जा रही ताबड़तोड़ कार्रवाई को उसी से जोड़कर देखा जा रहा है।
सरकार ने दवाओं के निर्माण मामले में कोई भी ढिलाई नहीं बरतने के संकेत दिए हैं।ऐसे में विभाग इन धंधेबाज का नेटवर्क तोड़ पाने में नाकाम रह जाती है। इसका एक बड़ा कारण संसाधनों का अभाव है। संसाधनों की बात छोड़िए अफसर और रिश्ता भी उंगलियों में गिनने लायक है। राज्य में नकली दवाओं को पकड़ने का जिम्मा जिस विभाग को दिया गया है। वहां ड्रग इंस्पेक्टर व कर्मचारियों का भारी टोटा है। सरकार ने नए ढांचे को मंजूरी दी थी पर अभी तक नई भर्ती नहीं हो पाई है। स्थिति यह है कि राज्य में जिलों की संख्या के बराबर भी ड्रग इंस्पेक्टर नहीं है। ऐसे में नशीली व नकली दवाओं को रोकने के लिए कार्य योजना तमाम बनती है लेकिन इस पर सही ढंग से काम नहीं किया जाता।वर्तमान में फील्ड में केवल 6 ही अधिकारी है वरिष्ठ औषधि निरीक्षक के पास सहायक औषधि नियंत्रक व लाइसेंस अथॉरिटी गढ़वाल का प्रभाव है।
यह भी पढें : देवभूमि की ऐतिहासिक रामलीला (Ramlila)
औषधि निरीक्षक बीच के पास अल्मोड़ा, बागेश्वर , चंपावत और पिथौरागढ़ का जिम्मा है। वहीं वरिष्ठ औषधि निरीक्षक चंद्रप्रकाश नेगी के पास भी उत्तरकाशी, पौड़ी, रुद्रप्रयाग एवं चमोली का जिम्मा है. वरिष्ठ औषधि निरीक्षक नीरज कुमार देहरादून,उधम सिंह नगर देख रहे हैं और के पास कम से कम हरिद्वार एवं रुड़की की जिम्मेदारी है। कहने को तो 200 मेडिकल स्टोर व 50 फार्मा कंपनियों पर एक औषधि निरीक्षक का मानक है। राज्य में 6 वरिष्ठ औषधि निरीक्षक वाह 33 निरीक्षक के पद स्वीकृत है।मुख्यालय देहरादून हरिद्वार उधमसिंह नगर में 55 नैनीताल में तीन पौड़ी में दो और बाकी जिलों में एक-एक औषधि निरीक्षक होना जरूरी है। पर धरातल पर स्थिति बहुत ज्यादा बुरी है। ऐसे में नशीली दवा के धंधे वालों के हौसले बुलंद हो गए हैं।
( लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )