डॉ. त्रिलोक व किरन दे रहे हैं हरे रंग वस्त्रों से पौधारोपण व वनों को बचाने का संदेश
देहरादून/मुख्यधारा
“अपने लिए जिए तो क्या जिए, तू जी, ऐ दिल जमाने के लिए” ये पंक्तियां वृक्षमित्र डॉ त्रिलोक चंद्र सोनी व उनकी पत्नी किरन सोनी पर सटिक बैठती हैं। इस दंपत्ति जोड़ी ने अपने शान शौक छोड़कर पर्यावरण संरक्षण, पौधारोपण व वनों की सुरक्षा के लिए अपना पहनावा ही बदल दिया हैं। वतर्मान परिवेश में जहां लोग महिंगे महिंगे कपड़े खरीद कर पहन रहे हैं। वहीं ये दंपत्ति हरे रंग कपड़ों को पहन कर देश के राज्यों में भ्रमण करते हैं। उनका कहना है हमें अपने लिए नही जीना जीना है तो आनेवाली पीढ़ी के खुशहाल जीवन के लिए।
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डॉ सोनी कहते हैं औरतें मिज़ाजी स्वभाव की होती हैं। नए-नए पहनावे का विशेष ध्यान रखती हैं। मैंने अपनी पत्नी किरन सोनी को कभी नहीं कहा तुम हरे रंग के कपड़े पहनो। मुझे देखकर वह भी हरे रंग के वस्त्र धारण करने लग गई हैं। एक दूसरे को समझे, सुख दुःख का साथी, एक दूसरे में खुशियां ढूंढे यही तो पति पत्नी का रिश्ता है। हमने देहरादून, उत्तर प्रदेश, सहारनपुर, जम्मू, कटरा, वैष्णों देवी, भैरब बाबा, अर्द्धक्वारी मंदिरों के स्थलों तथा पंजाब, अमृतसर, स्वर्ण मंदिर, जलियांवाला बाग हत्याकांड स्थल, वाघा बॉर्डर पर संदेश दिया है।
हमें देखकर लोग घेर लेते थे और हरे रंग के कपड़े पहने के बारे में पूछते थे तब में उन्हें पर्यावरण संरक्षण, संवर्द्धन, पौधारोपण व उन्हें बचाने तथा जन्मदिन, शादी की सालगिरह, अपने खास यादगार पलों पर एक पौधा धरती पर उपहार स्वरूप लगाने तथा अतिथियों को फूलों के गुलदस्ते के बजाय उपहार में पौधा देने की अपील करते थे किरन सोनी कहती हैं मेरे पति ने अपने सदरी (जैकेट) के पीछे ” मेरा पेड़-मेरा दोस्त (मेरा वृक्ष-मेरा मित्र) व आओ मिलकर हरित प्रदेश, देश व विश्व को बनाएंगे” और उत्तराखंड लिखा है उसे पढ़कर लोग समझ जाते थे कि ये लोग उत्तराखंड से आये है। हमसे कहते थे आप पूरे पहाड़ो को मैदान में लेकर आ गए हैं। ऐसे पर्यटन व तीर्थ स्थलों पर देश के कोने कोने से हजारों लोगों को हमें एक संदेश देने का मौका मिला।