मुख्यधारा/देहरादून
पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत की इस बार कांग्रेस में वापसी कई दिनों की मशक्कत के बाद हुई। अंतिम समय पर उनकी तुरूप चाल की तैयारी से पहले ही मंत्रिपद से बर्खास्तगी और भाजपा से छह साल के निष्कासन ने अक्सर बेफिक्र लगने वाले हरक की चेहरे की हवाइयां उडा़ दी।
हरक सिंह जो गच्चा भाजपा को देकर भौंचक्का करना चाहते थे, भाजपा के दो कदम आगे रहने वाले धुरधरों ने धोबी पाट चलाकर एक बार हरक को ही सांसत में डाल दिया। पांच दिनों तक हरक राजनैतिक ठिकाने के बिना बेघर रहने को बाध्य हो गए। संभवतः वर्ष 1991 में पहली बार पौड़ी सीट से एमएलए निर्वाचित होने के बाद से लेकर पिछले तीन दशक के राजनैतिक जीवन में ऐसी नौबत नहीं आई जब डॉ. हरक सिंह रावत को कई दिनों तक मझदार में झूलना पड़ा।
वे जिस भी पार्टी में गए कुछ शर्तों के साथ गए। वर्ष 2003 में जैनी प्रकरण में लगे आरोपों के बाद तिवारी मंत्रिमंडल से इस्तीफे के बाद भी हरक के तेवर कम नहीं हुए थे, पर इस बार चार दिनों की अनिश्चितता ने हरक के चेहरे की रंगत ही उड़ा डाली। बेवाकी से इंटरव्यू देने को मशहूर हरक को एक-एक दिन भारी लगा। उन्हें कहना पड़ा कि वे टिकट न मिलने पर भी कांग्रेस की जीत के लिए काम करने को तैयार हैं। उन्हें संभल-संभल कर बोलना पड़ा। न राहुल नाराज हों और न अमित शाह बुरा मानें।
भाजपा का कांग्रेस के नेताओं के साथ हरक की नजीकियों की सूचना के बाद हरक को सबक देने को उठाए गए कदमों ने हरक को उतना नहीं चौंकाया होगा जितना बेघर हरक को कांग्रेस में प्रवेश को लेकर हरीश के तेवरों ने उन्हें डराया।
हरक सिंह के करीबी सूत्रों का कहना है कि खुद हरक सिंह को यह आभास नहीं था कि हरीश रावत अभी भी अडंगा लगाने के मूड में हैं। दो-ढाई माह से हरक सिंह कांग्रेस में वापसी की भूमिका बनाने पर लगे थे। वे कई बार हरीश को बड़ा भाई कह उनके सामने नतमस्तक होने का पैगाम दे चुके थे पर हरीश हैं कि तथाकथित उज्याड़ू बैल की भूमिका को भूलने को तैयार नहीं हुए।
कांग्रेस चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष वर्ष 2016 में कांग्रेस के 9 बागी एमएलए में शामिल रहे हरक सिंह रावत की मुखर भूमिका को भूलने को आसानी से तैयार नहीं दिखे। उस घटनाक्रम की वजह से प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा और सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर 10 मई 2016 को सदन में हुए शक्ति परीक्षण में जीत के बाद ही हरीश रावत की सरकार बहाल हो पाई पर कांग्रेस की सांगठनिक से लेकर राजनैतिक ताकत में हुई कमी की भरपाई करने में हरीश रावत एकदम नाकाम रहे थे।
हरीश रावत के नेतृत्व में लड़े गए वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में काग्रेस मात्र 11 सीट पर सिमट गई और हरीश रावत दो जगह से चुनाव लड़ने के बावजूद विधानसभा में नहीं पहुंच पाए। ऊपर से स्टिंग मामले में सीबीआइ के डरावने सपने अभी भी हरीश रावत का पीछा कर रहे हैं। हालांकि हरीश रावत पिछले समय में बागियों को कांग्रेस का दरवाजा खोलने के लिए प्रदेश की जनता से माफी मांगने की शर्त लगा रहे थे, पर हरक सिंह के कांग्रेस में दुबारा प्रवेश करने की औपचारिकता में हरक को पटका बांधने वाले भी हरीश रावत ही बने हैं।
हरक सिंह रावत ने प्रदेश की जनता से अपनी गलती के लिए पछतावा करते हुए दुबारा ऐसा न करने की बात कहीं नहीं कही है, बल्कि वे तो हरीश रावत से सौ बार माफी मांग रहे हैं। ये एक व्यक्ति का दूसरे से जुड़ा मामला हो गया है, इसमें प्रदेश की जनता और प्रदेश की राजनीति की चिंता कहां से आ गई। बागी, दागी कोई भी हो, चुनाव जीतने वाला चाहिए। राजनीति में फरकू ( पलटने वाला) और मरखू (मार करने वाला) खूब चल रहे हैं। लगता है किसी भी दल को इस तरह के नेताओं से परहेज नहीं रहा। ये पूरे देश में दिख रहा है। यह हालत राजनीति में आम होते जाना हमारे गिरते सामाजिक चिंतन की भी निशानी है।