उत्तराखंड का लोक पर्व हरेला (Harela)

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उत्तराखंड का लोक पर्व हरेला (Harela)

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

हरेला (Harela), उत्तराखंड में मनाया जाने वाला लोकपर्व सावन के आने का संदेश है। हरेला का मतलब है हरियाली। उत्तराखंड कृषि पर निर्भर रहा है, यह लोकपर्व इसी पर आधारित है मुख्य रूप से यह पर्व कुमाऊं क्षेत्र में मनाया जाता है। इस दिन पहाड़ों में पौधे लगाए जाते हैं। इस पर्व को मनाए जाने के पीछे फसल लहलहाने की कामना, बीजों का संरक्षण और बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद है। गत वर्ष इस पर्व पर राज्य में पांच लाख से अधिक पौधे लगाए गए थे। इस बार उससे अधिक पौधे लगाने का लक्ष्य रखा गया है।

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उत्तराखंड में हरेला एक पारंपरिक त्यौहार है। जो संरक्षण का जश्न मनाता है। इस साल यह 16 जुलाई को मनाया जा रहा है। यह खास होने का वादा करता है। राज्य सरकार और प्रशासन ने एक अनूठा कार्यक्रम शुरू किया है। जिसके तहत प्रत्येक परिवार को दो फलदार पौधे दिए जाएंगे। इन परिवारों को इन पौधों की देखभाल का काम भी सौंपा गया है। जिसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान से निपटना है।पहली बार हर परिवार को दो-दो फलदार पौधे मुफ्त मिलेंगे।

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मुख्यमंत्री ने प्रशासन को हरेला पर्व को भव्य रूप से मनाने के निर्देश दिए हैं। इसके तहत प्रशासन ने पांच लाख पौधे लगाने का लक्ष्य रखा है। परिवारों को न केवल पौधे दिए जाएंगे। बल्कि उन्हें पेड़ बनाने का संकल्प भी दिलाया जाएगा।पर्यावरण की रक्षा, हर घर में हरियाली, समृद्धि और खुशहाली लाना। यह पहल पर्यावरण संरक्षण में प्रत्येक परिवार की भूमिका के महत्व को दर्शाती है।। मुख्यमंत्री ने भावी पीढ़ी के लिए स्वच्छ पर्यावरण की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि हमारी आने वाली पीढ़ी को स्वच्छ पर्यावरण मिलना चाहिए। इसके लिए सभी को पौधारोपण और पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान देना होगा। जिला प्रशासन ने प्राकृतिक जल स्रोतों के संरक्षण के लिए परिवारों को पेड़ लगाने के लिए प्रेरित करने का संकल्प लिया है।

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उद्यान और वन विभाग ने वितरण के लिए विभिन्न प्रकार के पौधे तैयार किए हैं। इनमें उद्यान विभाग की नर्सरी से आम, माल्टा, नींबू, संतरा, अनार, लीची और वन विभाग की नर्सरी से ओक, उत्तीस, नीम, आंवला शामिल हैं।

इसके अलावा चंपावत, पिथौरागढ़ और देहरादून से भी इन पौधों की मांग आ रही है।चैत्र मास में प्रथम दिन बोया जाता है तथा नवमी को काटा जाता है। श्रावण मास में सावन लगने से नौ दिन पहले आषाढ़ में बोया जाता है और दस दिन बाद श्रावण के प्रथम दिन काटा जाता है।

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आश्विन मास में नवरात्र के पहले दिन बोया जाता है और दशहरा के दिन काटा जाता है। लोगों द्वारा श्रावण मास में पड़ने वाले हरेले को अधिक महत्व दिया जाता हैं क्योंकि श्रावण मास शंकर भगवान जी को विशेष प्रिय है। सावन लगने से नौ दिन पहले पांच या सात प्रकार के अनाज के बीज एक रिंगाल को छोटी टोकरी में मिटटी डाल के बोई जाती हैं इसे सूर्य की सीधी रोशनी से बचाया जाता है और प्रतिदिन सुबह पानी से सींचा जाता है। 9 वें दिन इनकी पाती की टहनी से गुड़ाई की जाती है और दसवें यानि कि हरेला के दिन इसे काटा जाता है। घर के बुजुर्ग सुबह पूजा-पाठ करके हरेले को देवताओं को चढ़ाते हैं उसके बाद घर के सभी सदस्यों को हरेला लगाया जाता है। हरेला चढ़ाते समय बड़े- बुजुर्गो द्वारा जी रया ,जागि रया ,यो दिन बार, भेटने रया, दुबक जस जड़ हैजो,पात जस पौल हैजो,स्यालक जस त्राण हैजो, हिमालय में ह्यू छन तक, गंगा में पाणी छन तक,हरेला त्यार मानते रया, जी रया जागी रया.हरेला घर मे सुख, समृद्धि व शान्ति के लिए बोया और काटा जाता है।

हरेला अच्छी फसल का सूचक है, हरेला इस कामना के साथ बोया जाता है कि इस साल फसलो को नुकसान ना हो।यह भी मान्यता है कि जिसका हरेला जितना बडा होगा उसे कृषि मे उतना ही फायदा होगा। वैसे तो हरेला घर-घर में बोया जाता है, लेकिन किसी-किसी गांव में हरेला पर्व को सामूहिक रुप से स्थानीय ग्राम देवता मंदिर में भी मनाया जाता है। गांव के लोग द्वारा मिलकर मंदिर में हरेला बोया जाता है।

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सावन का महीना हिन्दू धर्म में पवित्र महीनों में से एक माना जाता है। यह महिना भगवान शिव को समर्पित है। और भगवान शिव को यह महीना अत्यधिक पसंद भी है। इसीलिए यह त्यौहार भी भगवान शिव परिवार को समर्पित है।

श्रावण मास के हरेले में भगवान शिव परिवार की पूजा अर्चना की जाती है (शिव,माता पार्वती और भगवान गणेश) की मूर्तियां शुद्ध मिट्टी से बना कर उन्हें प्राकृतिक रंग से सजाया-संवारा जाता है जिन्हें स्थानीय भाषा में डिकारे कहां जाता है।

हरेले के दिन इन मूर्तियों की पूजा अर्चना हरेले से की जाती है। और इस पर्व को शिव पार्वती विवाह के रूप में भी मनाया जाता है। वहीं इस दिन घरों में पकवान मनाए जाते हैं और इन पकवानों को नाते-रिश्तेदारों और मित्रगणों के साथ साझा किया जाता है।

राज्य में इस साल वृहद पौधारोपण अभियान के तहत 50 लाख पौधे लगाए जाने का लक्ष्य रखा गया है। शासन ने इस संबंध में सभी जिलाधिकारियों को आदेश जारी किया है। आदेश में कहा गया है कि सरकार की ओर से हरेला पर्व की शुरूआत 16 जुलाई 2024 से की जाएगी। शुरूआती तीन दिन के भीतर 25 लाख पौधे लगाए जाएंगे।

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प्रमुख सचिव की ओर से जारी आदेश के मुताबिक हर जिले में अभियान के आयोजन के लिए संबंधित जिले के जिलाधिकारी नोडल अधिकारी होंगे। जो जिला स्तरीय सभी संबंधित विभागों वन विभाग, कृषि विभाग, जलागम, शहरी विकास, आवास, ग्राम्य विकास, उद्योग, पंचायतीराज विभाग के अधिकारियों की एक आयोजन समिति का गठन अपने स्तर से करेंगे। उनकी अध्यक्षता में समिति की बैठक होगी जो कार्यक्रम की रुपरेखा तैयार कर विभागों के दायित्व आदि के संबंध में निर्णय लेगी। हर जिले की जिला स्तरीय समिति सार्वजनिक स्थानों, वनों, नदियों के किनारे, गदेरे, विद्यालय, कॉलेज परिसर, विभागीय परिसर, सिटी पार्क, आवासीय परिसरों आदि स्थानों पर लगाए जाएंगे। इसके लिए इन स्थानों का चयन किया जाएगा।

इस अभियान में स्थानीय जनप्रतिनिधियों, विद्यार्थियों, निकायों, संस्थान, जिला विकास प्राधिकरण, एनजीओ, वन पंचायतें, सभी क्रियान्वयन विभागों के साथ सेना, आईटीबीपी, एनसीसी, होमगार्ड, पीआरडी एवं स्थानीय लोग जुड़ेंगे।राज्य में पौधारोपण कार्यक्रम का शुभारंभ जनप्रतिनिधियों की मौजूदगी में किया जाएगा।

कार्यक्रम में प्रतिभाग करने वाले ग्राम पंचायतों के सदस्यों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया जाएगा।जनमानस की सहभागिता से होने वाले पौधरोपण में डीएम की ओर से नामित प्रभागीय वनाधिकारी मुफ्त पौधों की व्यवस्था के लिए नोडल अधिकारी होंगे। मुफ्त पौधा वितरण की अधिकतम सीमा जिला स्तरीय समिति जिले में पौधों की उपलब्धता को देखते हुए करेगी।

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हरेला पर्व के तहत फलदार प्रजाति के 50 प्रतिशत पौधे लगाए जाएंगे। इसके अलावा चारा प्रजाति के पौधे लगाए जाएंगे। जिसका रखरखाव संबंधित विभाग, स्थानीय ग्रामीण, ग्राम पंचायतों एवं युवक मंगल दलों के माध्यम से किया जाएगा।

आदेश में यह भी कहा गया है कि हरेला कार्यक्रम के दौरान 2 पौधे प्रति परिवार उपलब्ध कराने के लिए जिला स्तरीय विभाग जिम्मेदार होंगे।वन विभाग को 17 लाख, उद्यान एवं कृषि विभाग को 16 लाख, शहरी विकास को 4, जलागम को 2, आवास को 5, ग्राम्य विकास को एक, पंचायती राज को 2, सिंचाई को एक, लोनिवि को एक, उद्योग विभाग को एक लाख पौधे लगाए जाने का लक्ष्य दिया गया है।

डॉ. हरीश रौतेला पर्यावरण सुरक्षा और प्रदूषण मुक्त भारत के स्वप्न को साकार करने में जुटे हैं। उनकी शख्सियत चकाचौंध से दूर रहकर अपने कार्य में जुटे रहने वालों की है। उत्तराखंड के लोकपर्व हरेला को वैश्विक बनाने में भी डॉ. हरीश रौतेला का महत्वपूर्ण योगदान है। उन्हें इस लोकपर्व से बेहद लगाव है और वह चाहते हैं कि हरेला से हर व्यक्ति सीख ले और पर्यावरण का संरक्षण करे।

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डॉ. हरीश रौतेला हरेला वृक्षारोपण करते हैं और लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करते हैं। कई साल पहले उन्होंने हरेला पर्व के सप्ताह में 25 लाख पेड़ लगाए और लोगों को भी इसके लिए प्रेरणा दी। उन्होंने वेदों में उल्लेख संस्कृत के श्लोक “मूलं ब्रह्मा त्वचा विष्णुः शाखा रुद्र महेश्वरः, पत्रे-पत्रे तु देवानां वृक्षराज नमोस्तुते“ का उल्लेख करते हुए बताया की जब पर्यावरण नाम का कोई शब्द ही नहीं था, तब से हमारे दूरदर्शी पूर्वजों ने इस पर गहन चिंतन करना शुरु कर दिया था, जो कि आज के परिपेक्ष में “हरेला पर्व” के स्वरुप में हमारे चिंतन को आगे ले जा रहा है।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम सहित अन्य संस्थाओं का उल्लेख करते हुए पर्यावरण संवर्धन को बहुत ही महत्वपूर्ण विषय बताया और जिस प्रकार मनुष्य का तापमान सिर्फ 2 डिग्री बढ़ जाये तो वह अस्वस्थ हो जाता है। इसी तरह निरंतर प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन से पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है, जिससे विश्व में कई जटिल समस्याएं उत्पन्न हो रही है, जैसे कि आकस्मिक समुद्र का जलस्तर बढ़ जाना, हिमखंडों का पिघलना, जलस्रोतों का सुख जाना इत्यादि।

इसी तरह निरंतर कार्बन उत्सर्जन और अन्य प्रदूषण के कारण विश्व में 235 करोड़ से भी अधिक लोग अस्थमा जैसी जटिल बीमारी के शिकार हो गए हैं। उन्होंने भारत को पृथ्वी (पिण्ड) की आत्मा बताया और आज पर्यावरण जैसी जटिल समस्याओं के समाधान के लिए पूरा विश्व हमारी तरफ देख रहा है। इसीलिए हरेला जैसा महान पर्व जो कि अध्यात्म एवं प्रकृति के बीच का गहन चिंतन है उसको विश्व पटल पर ले जाना प्रासांगिक हो गया है।

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उन्होंने “दश कूप समा वापी, दशवापी समोह्नद्रः। दशह्नद समः पुत्रों, दशपुत्रो समो द्रमुः।।“ का उल्लेख करते हुए अनुरोध किया कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में कम से कम 2 वृक्षों का रोपण करना चाहिए। उनके ही प्रयासों से अब देश और विदेश में बड़ी तादाद में उत्तराखंड समाज हरेला का त्योहार मनाता है और इस त्योहार से जुड़ा है. वह नई पीढ़ी को भी हरेला से जोड़ने के प्रयास में जुटे रहते हैं। उनके प्रयासों की बदौलत ही 2020 में भी लगभग 50 से ज्यादा देशों में हरेला पर्व मनाया गया। डॉ. हरीश रौतेला उत्तराखंड के प्रवासियों में शिक्षा की अलख भी जगा रहे हैं। वह हर जगह प्रवासी उत्तराखंडियों को सुपर-10 विद्यार्थी तैयार करने की सलाह देते हैं। उनका कहना है कि शिक्षा से परिवार, समाज और देश बदलता है। युवाओं को शिक्षित करने से उनका आने वाला कल समृद्ध होगा। इसलिए लोग चाहें कुमाऊं के हो या गढ़वाल के, कुछ ऐसे युवाओं को तैयार करने की जरूरत है, जो आगे प्रांत ही नहीं, देश का नाम रोशन कर सकें। डॉ. हरीश रौतेला कहते हैं कि ऐसे युवा तैयार करो जो आगे चलकर उत्तराखंड की पहचान को प्रसारित करेंगे। वह कहते हैं कि अच्छी शिक्षा से ही रोजगार का सृजन होता है। आपकी अच्छी शिक्षा होगी तो आप अच्छे स्टार्टअप शुरू कर सकेंगे। उनका मानना है कि साल 2050 तक भारत को सर्वाधिक स्टार्टअप देने वाला देश बनाना है। डॉ. हरीश रौतेला का महत्वपूर्ण योगदान है।

(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।)

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