चिंता: मसूरी में निर्माण कार्यों को नहीं रोका तो जोशीमठ जैसे होंगे हालात!

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चिंता: मसूरी में निर्माण कार्यों को नहीं रोका तो जोशीमठ जैसे होंगे हालात!

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

ऐसा नहीं है कि पहाड़ों की रानी मसूरी में ही इस तरह की घटनाएं हो रही है। उत्तराखंड के अलग अलग जिलों में हर दिन लैंडस्लाइड की घटनाएं हो रही हैं।उत्तराखंड के कई जिले लैंडस्लाइड के लिहाज से देश में टॉप पर रहे हैं। खास बात यह है कि प्रदेश में लैंडस्लाइड के लिए तमाम विकास कार्यों को भी वजह माना जाता रहा है। कई इलाकों में भारी संख्या में पेड़ों के कटान ने भी भूस्खलन क्षेत्र विकसित किए हैं। तमाम हिल स्टेशनों में भी वन कटान के कारण परेशानियां खड़ी हुई है। केरल के वायनाड में लैंडस्लाइड की घटना से हर कोई स्तब्ध है। उत्तराखंड भी ऐसे ही कई बड़े लैंडस्लाइड को झेलता आ रहा है।यहां के कई जिले लैंडस्लाइड के लिहाज से देश में टॉप पर रहे हैं।खास बात ये है कि प्रदेश में लैंडस्लाइड के लिए तमाम विकास कार्यों को भी वजह माना जाता रहा है।कई इलाकों में भारी संख्या में पेड़ों के कटान ने भी भूस्खलन क्षेत्र विकसित किए हैं।

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उधर, तमाम हिल स्टेशन भी ऐसे वन कटान को लेकर परेशानी में आए हैं। ऐसा नहीं है कि पहाड़ों की रानी मसूरी में ही इस तरह की घटनाएं हो रही है।उत्तराखंड के अलग अलग जिलों में हर दिन लैंडस्लाइड की घटनाएं हो रही हैं।उत्तराखंड के कई जिले लैंडस्लाइड के लिहाज से देश में टॉप पर रहे हैं।खास बात यह है कि प्रदेश में लैंडस्लाइड के लिए तमाम विकास कार्यों को भी वजह माना जाता रहा है।कई इलाकों में भारी संख्या में पेड़ों के कटान ने भी भूस्खलन क्षेत्र विकसित किए हैं। तमाम हिल स्टेशनों में भी वन कटान के कारण परेशानियां खड़ी हुई है मसूरी …नाम सुनते ही हरी भरी वादियां आपके जेहन में आ जाती होंगी। यहां की घुमावदार सड़कें, शानदार लैंडस्केप सभी का मन मोह लेती हैं। मसूरी का 150 साल पुराना रहा भरा पेड़ भी यहां की एक पहचान है।ये पेड़ छावनी परिषद के कब्रिस्तान में आज से 150 साल पहले इंग्लैंड की
महारानी ड्यूक ऑफ जोडेन्बर्ग ने लगाया था। 150 साल पहले लगाया गया ये पेड़ आज भी संरक्षित है। ये पेड़ आज भी आज भी हरा भरा है। छावनी परिषद में कई ऐसे पेड़ हैं, जो किसी ने अपने रिश्तेदार या अपने परिजनों की याद में लगाए हैं।

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मसूरी छावनी परिषद में देवदार और साइप्रस के पेड़ हैं। जिन्हें किसी भी हाल में काटने की अनुमति नहीं दी गई है, लेकिन मसूरी का हर इलाका छावनी परिषद नहीं है, जहां पेड़ों को संरक्षित करने की परंपरा सी है।मसूरी के खट्टापानी क्षेत्र में कुछ वन माफियाओं ने देवदार के पेड़ों पर आरी चला दी। ऐसा ही दूसरे इलाकों में भी हो रहा है।मसूरी में पेड़ कटने के कारण लैंडस्लाइड की घटनाएं बढ़ रही हैं। उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में इन दिनों लैंडस्लाइड की घटनाएं देखने को मिल रही हैं।नैनीताल, पिथौरागढ़, रुद्रप्रयाग, टिहरी उत्तरकाशी, चमोली, जोशीमठ, मसूरी जैसे इलाकों में आए दिन लैंडस्लाइड की घटनाओं के लोगों को नुकसान उठाना पड़ रहा है. पहाड़ों की रानी मसूरी में बरसात के सीजन में सबसे ज्यादा लैंडस्लाइड की घटनाएं होती हैं। जानकार लैंडस्लाइड की इन घटनाओं के लिए अंधाधुंध के साथ ही बेतरतीब
विकास कार्यों को जिम्मेदार बता रहे हैं। कंक्रीट के जंगल लैंडस्लाइड की घटनाओं के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। बात अगर पहाड़ों की रानी की करें तो यहां लगातार हो रहे निर्माण से लगातार मसूरी का सौंदर्य खराब होता चला जा रहा है।दिनों दिन मसूरी कंक्रीट के जंगल में तब्दील होता जा रहा है।

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हाल ही में मसूरी के खट्टापानी क्षेत्र में कुछ वन माफियाओं ने देवदार के पेड़ों पर आरी चला दी। जिसको लेकर छावनी प्रशासन ने अज्ञात के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई। हाल ही में मंलिगार क्षेत्र में एक देवदार का पेड़ काटा गया। ये पेड़ काफी पुराना था।इस पेड़ को काटने के पीछे कारण स्पष्ट नहीं हो पाया है।इस पेड़ के काटे जाने से प्रकृति प्रेमियों में काफी आक्रोश है। प्रकृति प्रेमियों का कहना है कि मसूरी के शहरी और छावनी क्षेत्र में कई ऐसे बेशकीमती और यादगार पेड़ हैं, जिन्हें काटा नहीं जाना चाहिए, लेकिन कई ठेकेदार और वन माफिया षडयंत्र
के तहत इन पेड़ों को कटवा रहे हैं। प्रकृति प्रेमियों ने कहा कि मसूरी की खूबसूरती और हरियाली को देखते हुए अंग्रेजों ने मसूरी का निर्माण करवाया था।यहां देश-विदेश से पर्यटक इस सौंदर्य का आनंद लेने आते थे, लेकिन अब बीतते दिनों के साथ मसूरी में अंधाधुंध निर्माण हो रहा है।आज मसूरी कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो गया है। प्रकृति प्रेमियों ने बताया कि देहरादून विकास प्राधिकरण का गठन साल 1984 में किया गया था।

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मसूरी के नियोजित विकास को लेकर इसका गठन किया गया था, लेकिन भ्रष्टाचार लिप्त अधिकारियों ने नियमों और कानून को ठेंगा दिखाकर मसूरी में बेतहाशा नक्शे पास कर दिए। उनका आरोप है कि यहां कई अवैध निर्माण भी चुके हैं. जिसको लेकर कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई है।  मसूरी में पिछले चार-पांच सालों में भूस्खलन की घटनाएं भी लगातार बढ़ रही हैं।अंधाधुंध निर्माण कार्य इसके पीछे की मुख्य वजह है। प्रकृति प्रेमियों ने कहा मसूरी शहर पर अत्यधिक भार पड़ रहा है। जिसको लेकर एनजीटी यानी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने भी पिछले दिनों संकेत दिए गए थे। एनजीटी ने साफ कहा था मसूरी में निर्माण कार्यों को रोका जाए नहीं तो इसका हाल भी जोशीमठ जैसा होगा, लेकिन उसके बाद भी सरकार ने मसूरी को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाया।हाल में ही मसूरी देहरादून मार्ग पर कई जगह भारी भूस्खलन हुआ है. जिससे मार्ग क्षतिग्रस्त हो गए हैं।लैंडस्लाइड के कारण लोग परेशान हो रहे हैं. दुर्घटनाएं बढ़ रही हैं।इसके बाद भी जिम्मेदार अधिकारियों को कोई फर्क नहीं पड़ता।

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मसूरी वन प्रभाग के डीएफओ अमित कंवर ने बताया मसूरी वन विभाग बिना जांच पड़ताल के किसी भी पेड़ को काटने की अनुमति नहीं देता।उन्होंने कहा कई बार विकास को लेकरकिया जा रहे निर्माण को लेकर कई पेड़ों को काटने पड़ते हैं, लेकिन विभाग की ओर से यह सुनिश्चित
किया जाता है कि एक पेड़ कटेगा तो उसकी जगह संबंधित को दो पेड़ लगाने होंगे.डीएफओ का छावनी परिषद में जो पेड़ काटा जा रहा है, वह उनके अधीन नहीं आता है। मसूरी छावनी परिषद में जितने भी जंगल हैं, उसको देखने का काम छावनी परिषद का प्रशासन करता है। उन्होंने बताया हरेला पर्व के तहत मसूरी और आसपास के क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की प्रजातियों के पौधे रोपे जा रहे हैं।ताकि, पहाड़ों
की रानी मसूरी की हरियाली बनी रहे। मृदा संरक्षण के लिए वृक्षों का एक अहम रोल माना जाता है। पर्वतीय क्षेत्रों में वन क्षेत्र भूस्खलन जैसी घटनाओं के रोकथाम के लिए भी काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं।हैरानी की बात ये है कि इन महत्वपूर्ण जानकारियों के बावजूद राज्य में बड़ी संख्या में पेड़ों का कटान जारी है। न केवल अवैध रूप से होने वाले वन क्षेत्र के कटान ने परेशानी बढ़ाई है।बल्कि, विकास कार्यों के लिए फॉरेस्ट लैंड ट्रांसफर भी मुसीबत पैदा कर रही है।

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उत्तराखंड वन विभाग जहां पौधारोपण को लेकर सालभर में कई अभियान चलाता है।इसके अलावा अवैध रूप से पेड़ों को काटने से रोकने के लिए विशेष निगरानी का दावा भी करता है, लेकिन इन सब के बावजूद राज्य में अवैध रूप से पेड़ काटे जाने के मामले बेहद ज्यादा नजर आते हैं। पेड़ों के काटने जाने के मामले में सरकारी दस्तावेजों में दर्ज हैं, जिसकी गवाही खुद वन विभाग दे रहा है. जबकि, जिन पेड़ों की जानकारी वन विभाग को ही नहीं, ऐसे भी कई मामले होने की प्रबल संभावना है।हालांकि, वन विभाग ऐसे मामलों में कड़ाई से निपटाने का दावा कर रहा है।इसको लेकर हाल ही में पुरोला और चकराता में हुए अवैध पातन के बाद कार्रवाई के उदाहरण भी दिए जा रहे हैं।उत्तराखंड में अवैध रूप से काटे जा रहे पेड़ों को लेकर जो आंकड़े सामने आए हैं, वो चौंकाने वाले हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि, वन विभाग पूरे प्रदेश में वनों के कटान को लेकर विशेष निगरानी की बात कहता है और विभिन्न जगहों पर इसके लिए वन अधिकारी और कर्मचारी भी तैनात रहते हैं, लेकिन इसके बावजूद पेड़ों पर जमकर आरियां चल रही है। इसकी तस्दीक आंकड़े कर रहे हैं, जो वन विभाग के सरकारी दस्तावेजों में दर्ज है।मसूरी डीएफओ ने निर्माण स्थल पर ठेकेदार को कटे हुए पेड़ की जगह पर पौधे लगाने के निर्देश दिए हैं।उन्होंने कहा कि नोटिफाइड क्षेत्र पर किसी प्रकार का निर्माण नहीं किया जा सकता है।जिसको लेकर समय-समय पर वन विभाग की ओर से नोटिफाइड क्षेत्र में हो रहे निर्माणों को लेकर कार्रवाई की जाती है।

(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं)

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