उत्तराखंड के महान लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी के जन्मदिन पर होने जा रही है आईएएस अधिकारी ललित मोहन रयाल की 100 गीतों की व्याख्यायित पुस्तक!
गढ़वाली संस्कृति और परंपरा के सार को खूबसूरती से पकड़ने की रयाल जी की क्षमता अद्धभुत है।
शीशपाल गुसाईं
यह बहुत खुशी की बात है कि, महान लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी के गीत – यात्रा के पचास वर्ष पूरे होने वाले हैं और वह स्वयं उम्र के 75 वें पड़ाव 12 अगस्त 2024 को पूरा करने वाले हैं। इस बेहतरीन दिन नेगी के जन्मदिन के अवसर पर उनके 100 श्रेठ गढ़वाली गीतों के व्याख्यायित पुस्तक साहित्यकार ललित मोहन रयाल जी प्रकाशित करने जा रहे हैं। रयाल की यह पुस्तक न केवल गढ़वाली भाषा को संरक्षित करने में मदद करेगी, बल्कि उत्तराखंड की समृद्ध परंपरा को भी बढ़ावा देगी। इस पहल से, नरेंद्र सिंह नेगी और गढ़वाली संस्कृति की विरासत आगे भी जारी रहेगी और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करेगी।
गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी के गीत उत्तराखंड के लोगों के लिए अनमोल धरोहर हैं। ये गीत न केवल हमारा मनोरंजन करते हैं बल्कि क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देने के एक सराहनीय प्रयास हैं। पुस्तक के लेखक उत्तराखंड के एक ईमानदार आईएएस अधिकारी श्री ललित मोहन रयाल हैं। यह पुस्तक उन लोगों के लिए एक मूल्यवान संसाधन होने की उम्मीद है जो गढ़वाली बोली से परिचित नहीं हैं, या भूल बिसर गए हैं लेकिन नेगी जी के गीतों के माध्यम से दिए गए शक्तिशाली संदेशों को समझना चाहते हैं। रयाल जी स्वयं गढ़वाली में संवाद करते हैं बल्कि उनका उत्तराखंड की संस्कृति और भाषा से गहरा जुड़ाव है।
आईएएस अधिकारी रयाल जी न केवल एक समर्पित सिविल सेवक हैं बल्कि एक प्रतिभाशाली लेखक भी हैं, जो साहित्य जगत में तहलका मचा रहे हैं। उनकी पुस्तकों को व्यापक मान्यता मिली हैं और गढ़वाली संस्कृति और परंपरा के सार को खूबसूरती से पकड़ने की उनकी क्षमता की बहुत प्रशंसा की गई है। हाल ही में एक पुस्तक विमोचन में जाने-माने लेखक जितेन ठाकुर ने रयाल की एक पुस्तक में अपने पिता और ममाकोट के मार्मिक चित्रण के लिए रयाल की सराहना की। ठाकुर ने ऐसी पुस्तकों के प्रकाशन के महत्व पर जोर दिया, जो व्यक्तिगत अंतदृष्टि और भावनात्मक गहराई प्रदान करती हैं, पाठकों को मानवीय अनुभवों के समृद्ध ताने -बाने को जोड़ती हैं।
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प्रसिद्ध लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी के 100 गीतों के संग्रह का 40 से अधिक पृष्ठों में फैली इस प्रस्तावना में, रयाल न केवल गीतों का परिचय देते हैं, बल्कि गढ़वाली भाषा और संस्कृति की पेचीदगियों पर भी प्रकाश डालते हैं। गढ़वाली गीतों में जटिल और पुराने शब्दों को सरल बनाने के उनके प्रयास अपने क्षेत्र की विरासत को संरक्षित करने और बढ़ावा देने के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करते हैं। पुस्तक का अर्थ नेगी जी के गीतों के महीन अर्थों को व्यापक नजरिये से स्पष्ट करना है, ताकि वे पाठकों के लिए अधिक सुलभ हो सकें।
अपने लेखन के माध्यम से ,रयाल न केवल अपनी साहित्यिक प्रतिभा का प्रदर्शन कर रहे हैं, बल्कि गढ़वाली भाषा और परम्पराओं की मान्यता संरक्षण की वकालत भी कर रहे हैं। पुराने और नए के बीच की खाई को पाटकर,वह यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि गढ़वाल की सांस्कृतिक विरासत आगे भी बनी रहे और आने वाली पीढ़ियों के साथ प्रतिध्वनित होती रहे।
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