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जीवनदायी जल अप्रत्याशित प्रदूषित (unexpectedly polluted)

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जीवनदायी जल अप्रत्याशित प्रदूषित (unexpectedly polluted)

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

प्राकृतिक जल स्रोत और संसाधनों से परिपूर्ण उत्तराखंड में पेयजल का संकट गहराने लगा है। खासकर शहरी क्षेत्रों में पीने के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध न होने से समस्या विकट होती जा रही है। भीषण गर्मी के चलते पानी की मांग बढऩे और उपलब्धता घटने के कारण चुनौती और बढ़ गई है। दून में भूजल स्तर में तेजी से गिरावट दर्ज की जा रही है। पिछले तीन माह में सामान्य से कम बारिश होने के कारण दून में भूजल स्तर करीब तीन मीटर तक गिर गया है। अनियोजित विकास और तेजी से बढ़ती आबादी ने पेयजल संकट की स्थिति पैदा कर दी है। शहर में ग्रीष्मकाल में अक्सर कई इलाके पानी को तरसते हैं। भूजल का अत्यधिक दोहन होने और बारिश की कमी के कारण जल स्रोत रीचार्ज न होने के कारण जल संस्थान की चुनौतियां भी बढ़ गई हैं।

जल जीवन मिशन के तहत गांवों में पेयजल योजनाएं बनी हैं। इन योजनाओं के तहत हर घर पानी के कनेक्शन दिए गए हैं। सबसे बड़ी चुनौती इन पेयजल योजनाओं के रखरखाव, संचालन की थी, जो अब दूर हो गई है। इस नियमावली के आने के बाद ग्रामीणों का समूह इन पेयजल योजनाओं का संचालन करेगा। स्थानीय स्तर पर युवा पेयजल आपूर्ति संबंधी प्लंबर आदि का काम भी देखेंगे, जिससे उनका रोजगार बढ़ेगा। देश की राजधानी दिल्ली और वह शहर जो लगभग 27 किलोमीटर तक यमुना जैसी सदा- नीरा नदी के किनारे बसा है, अब जल संकट से कराह रहा है। यदि इसमें भी सेहत के लिए माकूल पानी की बात करें तो शहर का बड़ा हिस्सा बोतलबंद जल पर निर्भर है। वैसे तो इंदिरपुरम का वैभव खंड गाजियाबाद में आता है, लेकिन इसकी दिल्ली से दूरी बमुश्किल तीन किलोमीटर है। यहां साया गोल्ड एवेन्यू में दूषित पानी के कारण 762 लोगों को अब तक डायरिया हो चुका है। नहाने से त्वचा रोग के मरीज लगभग हर घर में हैं। यहां हंगामा हुआ, पुलिस आई तो बात सभी के सामने खुल गई।

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त्रासदी यह है कि इतना हाल हुआ, उसके बाद 25 दिन बीत जाने पर वहां साफ पानी का पर्याप्त इंतजाम हो नहीं पाया। वैसे तो गाजियाबाद-नोएडा-गुरुग्राम आदि में यह हाल लगभग हर ऊंची इमारतों वाली सोसायटी का है। अधिकांश में जल आपूर्ति भूमिगत जल से है और पीने के जल का आश्रय या तो बोतल बंद पानी से या फिर खुद के आरओ हैंछत्तीसगढ़ के कबीरधाम के कोयलारी गांव में कुएं का दूषित पानी पीकर एक बुजुर्ग महिला की मौत हो गई। वहीं, 50 से अधिक लोग डायरिया की चपेट में आ गए। मध्य प्रदेश के बुरहानपुर से भी कई बच्चों के दूषित जल पीने से बीमार होने की खबर है। प्यास के लिए कुख्यात बुंदेलखंड के टीकमगढ़ जिले के नयारा गांव में खुले कुएं का पानी पीने से एक बच्ची कि मौत हो गई, जबकि 50 से अधिक को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। कर्नाटक के मुख्यमंत्री के अपने जिले में दूषित जल से एक युवक मर गया जबकि सैकड़ों बीमार हो गए। एक तरफ देश के हर हिस्से में बढ़ता तापमान समस्या बना है तो उसके साथ गर्मी से राहत का एकमात्र सहारा जल ही जहर बन गया है।

देश के अलग-अलग हिस्से अब नल से बदबूदार पानी आने या फिर हैंडपम्प से गंदे पानी की शिकायतों से परेशान हैं। गर्मी में पानी धरती के लिए प्राण है, लेकिन यदि जल दूषित हो तो यह प्राण हर भी सकता है। हमारे विकास के बड़े-बड़े दावे कहीं जल जैसी मूलभूत सुविधा के सामने या कर ठिठक जाते हैं। बहुत सी सरकारी योजनाएं हर घर स्वच्छ जल के वायदे करती रही हैं, लेकिन आपूर्ति पर केंद्रित ये योजनाएं हर समय सुरक्षित जल-स्रोत विकसित करने में असफल ही रही हैं। कितना दुखद है कि पांच साल पहले राजधानी के करीबी पश्चिम उत्तर प्रदेश के सात जिलों में पीने के पानी से कैंसर से मौत का मसला जब गरमाया तो एनजीटी में प्रस्तुत रिपोर्ट के मुताबिक इसका कारण हैंडपंप का पानी पाया गया। अक्तूबर 2016 में ही एनजीटी ने नदी के किनारे के हजारों हैंडपंप बंद कर गांवों में पानी की वैकल्पिक व्यवस्था का आदेश दिए थे। कुछ हैंडपंप तो बंद भी हुए, कुछ पर लाल निशान की औपचारिकता हुई, लेकिन सुरक्षित जल का विकल्प ना मिलने से मजबूर ग्रामीण वही जहर पी रहे हैं।

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प्रदेश के 436 इलाके ऐसे हैं, जहां पानी का संकट उत्तराखंड जल संस्थान की नजर में संभावित है।जबकि ऐसे दूसरे कई और क्षेत्र भी हैं, जहां गांड गदेरे सूखने की कगार पर हैं और यहां भी पेयजल एक बड़ी समस्या बन रहा है। उधर पहले ही वैज्ञानिक ये बात साफ करते रहे हैं कि अंडरग्राउंड वाटर धीरे-धीरे कम हो रहा है। जबकि पर्वतीय क्षेत्रों में भी पानी के तमाम सोर्स सूख रहे हैं। इस तरह देखा जाए तो राज्य में पेयजल की समस्या एक गंभीर चिंता के रूप में सामने आई हुई दिखाई दे रही है।हाल ही में मुख्यमंत्री भी इस मामले में विभाग की समीक्षा बैठक कर चुके हैं, जिसमें राज्य में मौजूदा हालात पर चिंता जाहिर की जा चुकी है।

उत्तराखंड जल संस्थान की मुख्य महाप्रबंधक कहती हैं कि गर्मी में पेयजल की समस्या को देखते हुए जल संस्थान की तरफ से सभी संभावित पेयजल संकट वाले क्षेत्रों का चिन्हीकरण किया जा चुका है. इसके लिए तमाम दूसरी व्यवस्थाएं भी बनाई जा रही हैं। अतीत में झांकें तो केंद्र सरकार की कई योजनाएं, दावे और नारे फाइलों में तैरते मिलेंगे, जिनमें भारत के हर एक नागरिक को सुरक्षित पर्याप्त जल मुहैया करवाने के
सपने थे। इन पर अरबों खर्च भी हुए लेकिन आज भी कोई करीब 3.77 करोड़ लोग हर साल दूषित पानी के इस्तेमाल से बीमार पड़ते हैं। लगभग 15 लाख बच्चे दस्त से अकाल मौत मरते हैं। अंदाजा है कि पीने के पानी के कारण बीमार होने वालों से 7.3 करोड़ कार्य-दिवस बर्बाद होते हैं। इन सबसे भारतीय अर्थव्यवस्था को हर साल करीब 39 अरब रुपये का नुकसान होता है। हर घर जल की केंद्र की योजना इस बात में तो सफल रही है कि गाव-गांव में हर घर तक पाइप बिछ गए, लेकिन आज भी इन पाइपों में आने वाला 75 प्रतिशत जल भूजल है।

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गौरतलब है कि ग्रामीण भारत की 85 फीसदी आबादी अपनी पानी की जरूरतों के लिए भूजल पर निर्भर है। एक तो भूजल का स्तर लगातार गहराई में जा रहा है, दूसरा भूजल एक ऐसा संसाधन है, जो यदि दूषित हो जाए तो उसका निदान बहुत कठिन होता है।नेशनल सैंपल सर्वे आफिस (एनएसएसओ) की 76वीं रिपोर्ट बताती है कि देश में 82 करोड़ लोगों को उनकी जरूरत के मुताबिक पानी मिल नहीं पा रहा है। देश के महज 21.4 फीसदी लोगों को ही घर तक सुरक्षित जल उपलब्ध है। सबसे दुखद है कि नदी-तालाब जैसे भूतल जल का 70 प्रतिशत बुरी तरह प्रदूषित है। यह सरकार स्वीकार रही है कि 78 फीसदी ग्रामीण और 59 प्रतिशत शहरी घरों तक स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं हैं। यह भी विडंबना है कि अब तक हर एक को पानी पहुंचाने की परियोजनाओं पर 89,956 करोड़ रुपये से अधिक खर्च होने के बावजूद, सरकार परियोजना के लाभों को प्राप्त करने में विफल रही है। आज लगभग 19,000 गांव ऐसे भी हैं, जहां साफ पीने के पानी का कोई नियमित साधन नहीं है।

पूरी दुनिया में, खासकर विकासशील देशों जलजनित रोग एक बड़ी चुनौती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और यूनिसेफ का अनुमान है कि अकेले भारत में हर रोज 3000 से अधिक लोग दूषित पानी से उपजने वाली बीमारियों का शिकार हो कर जान गंवा रहे हैं। गंदा पानी पीने से दस्त और आंत्रशोथ, पेट में दर्द और ऐंठन, टाइफाइड, हैजा, हेपेटाइटिस जैसे रोग अनजाने में षरीर में घर बना लेते हैं। यह भयावह आंकड़े सरकार के ही हैं कि भारत में करीब 1.4 लाख बच्चे हर साल गंदे पानी से उपजी बीमारियों के चलते मर जाते हैं। देश के 639 में से 158 जिलों के कई हिस्सों में भूजल खारा हो चुका है और उनमें प्रदूषण का स्तर सरकारी सुरक्षा मानकों को पार कर गया है। पर्यावरण मंत्रालय और केंद्रीय एजेंसी एकीकृत प्रबंधन सूचना प्रणाली द्वारा सन 2018 में पानी की गुणवत्ता पर करवाए गए सर्वे के मुताबिक राजस्थान में सबसे ज्यादा 19,657 बस्तियां और यहां रहने वाले 77.70 लाख लोग दूषित जल पीने से प्रभावित हैं।

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आईएमआईएस के मुताबिक पूरे देश में 70,736 बस्तियां फ्लोराइड, आर्सेनिक, लौह तत्व और नाइट्रेट सहित अन्य लवण एवं भारी धातुओं के मिश्रण वाले दूषित जल से प्रभावित हैं। इस पानी की उपलब्धता के दायरे में 47.41 करोड़ आबादी आ गई है।देश के पेय जल से जहर के प्रभाव को शून्य करने के लिए जरूरी है कि पानी के लिए भूजल पर निर्भरता कम हो और नदी-तालाब आदि सतही जल में गंदगी मिलने से रोका जाए। भूजल के अंधाधुंध इस्तेमाल को रोकने के लिए कानून बनाए गए हैं, लेकिन भूजल को दूषित करने वालों पर अंकुश के कानून किताबों से बाहर नहीं आ पाए हैं। नदी-तालाब को जहरीला बनाने में तो किसी ने भी कसर छोड़ी नहीं। यह साधारण सी समझ है कि नदी-तालाब के जल को शुद्ध करने के लिए चल रही परियोजनाओं पर हो रहे खर्च से आधे में इन जल- निधियों को अशुद्ध होने से रोका जा सकता है।

समाज को 20 रुपये का एक लीटर पानी पीना मंजूर है, लेकिन पुश्तों से सेवा कर रहे पारंपरिक जल-संसाधनों को सहेजने में लापरवाही। यह अंदेशा सभी को है कि आने वाले दशकों में पानी को ले कर सरकार और समाज को बेहद मशक्कत करनी होगी। प्रदेश के 436 इलाके ऐसे हैं, जहां पानी का संकट उत्तराखंड जल संस्थान की नजर में संभावित है। जबकि ऐसे दूसरे कई और क्षेत्र भी हैं, जहां गांड गदेरे सूखने की कगार पर हैं और यहां भी पेयजल एक बड़ी समस्या बन रहा है।

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उधर पहले ही वैज्ञानिक ये बात साफ करते रहे हैं कि अंडरग्राउंड वाटर धीरे-धीरे कम हो रहा है। जबकि पर्वतीय क्षेत्रों में भी पानी के तमाम सोर्स सूख रहे हैं। इस तरह देखा जाए तो राज्य में पेयजल की समस्या एक गंभीर चिंता के रूप में सामने आई हुई दिखाई दे रही है। हाल ही में मुख्यमंत्री भी इस मामले में विभाग की समीक्षा बैठक कर चुके हैं, जिसमें राज्य में मौजूदा हालात पर चिंता जाहिर की जा चुकी है। उत्तराखंड
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(लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )

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