औषधीय गुणों से भरपूर लोध (Lodha) असाध्य रोगों के लिए रामबाण औषधि
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
इस धरती पर कई ऐसे पौधे पाए जाते हैं जिनमें कमाल के औषधीय गुण मौजदू होते हैं। इन्हीं पौधों में से एक पौधा है लोध्र का पौधा. भारत के ज्यादातर हिस्सों में पाया जाने वाला ये पौधा महिलाओं के लिए सबसे खासमाना जाता है। हालांकि, इसके अंदर मौजूद कई औषधीय गुण पुरुषों के लिए राम बाण साबित होते हैं। लोध ठंडी जलवायु का पौधा है। लोधरा या लोध उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में – 1400 मीटर से ऊपर – उत्तर पूर्वी ढालों पर पाया जाने वाला चौड़ी- चौड़ी मांसल पत्तियों, खुरदरे तनों और लिस लिसी छाल वाला पर्णपाती पौधा है – जिसकी सामान्य उंचाई – 8 से 12 मीटर तक हो सकती है। पेड़ खूब गुच्छेदार टहनियों वाला होता है। इस पर बसंत ऋतू के समय गुच्छों में बहुत सुन्दर सफेद रंग के फूल खिलते हैं। लोध की नर्सरी भले ही निचले इलाकों में बनाई जा सकती है लेकिन रोपण ऊँचे इलाकों जो 1300 मीटर से ऊपर स्थित हों उन स्थानों पर ही, खेतों के किनारे हर दस फीट की दूरी पर किया जाना चाहिए। लोध को विशेष देखभाल की ज्यादा जरूरत नहीं है। पेड़ एक बार जड़ पकड़ ले तो फिर आसानी से उग जाता है। यही वजह है लोध को थोड़ी छायादार– शीतोष्ण बेकार– बंजर जमीन पर भी आसानी से उगा कर स्वरोजगार शुरू किया जा सकता है।
लोध की खेती के लिए – जड़ी बूटी शोध संस्थान में भी पंजीकरण जरूरी है, ताकि भविष्य में किसान अपने आप ही अपने पेड़ों की छाल बेच उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों और गांवों में पूर्व में – हर घर में जहां लोग – मट्ठा- छांछ- आदि से मक्खन और घी बनाते थे वहीं घरों में दही को मथने के लिए- लोध की लकडियों से बनी– मथनी- यानी– रोडू– लोध की लकड़ी से ही बने होते थे. इस प्रकार मथनी- के संपर्क में दही को लकड़ी के बने – पर्या (लकड़ी का बर्तन) – में दही मथने से लोध के अंश – दवा के रूप में छांछ और मक्खन में घुल जाते थे, इस प्रकार फिर हम लोध के अंशों का अप्रत्यक्ष रूप से – सेवन कर लेते यह था हमारा – आयुर्वेद का शानदार लोक ज्ञान।अब के समय में यह सब लुप्त हो रहा है। पशुपालन और लोध – पशुओं के कई प्रकार के रोग – लोध की पत्तियों के हरे चारे से ही ठीक हो जाते हैं , पशुओं के ऋतु क्रम का गडबडाना, गर्भाशय और मूत्र रोग, अपच और दृष्टि दोष को दूर करने में – लोधा के हरे पत्तों का चारा ही रामबाण दवा के रूप में काम करता है।
अकेले भारत की आयुर्वेदिक फार्मेसियों में लोध के छाल की बेहद मांग है ,एक अनुमान के अनुसार प्रतिवर्ष इस इंडस्ट्री को लगभग 200 मीट्रिक टन लोध की छाल की आवश्यकता है- जबकि लोध की खेती ना के बराबर की जाती है। इसलिए हम लोध की नर्सरी, पौध वितरण और खेती को प्रोत्साहित करने का प्रयास कर रहे हैं। देश में इसकी पूर्ती वैध और अवैध तरीके से हमारे जंगलों से ही की जा रही है, जिससे इस प्रजाति के अस्तित्व पर भी संकट है। भविष्य में कच्चे माल की कमी न हो, इसीलिए- डाबर लोध की खेती को प्रोत्साहित कर रहा है। जनपद चमोली में- आगाज फैडरेशन, पीपलकोटी, रुद्रप्रयाग में ह्यूमन इंडिया और अल्मोड़ा और बागेश्वर में खुद जीवन्ति वेलफेयर ट्रस्ट और डाबर इंडिया- लोध के पौधों की नर्सरी बनाकर- किसानों को निशुल्क बाँट रही है और लोध के संरक्षण के साथ साथ लोध खेती को प्रोत्साहित कर रही है।
लोध के बीज आसानी से नहीं जमते हैं, पेड़ पर ही पके हुए काले बीजों को तुरंत – गुण गुने पानी में भिगोकर रेतीली और भुर भुर्री मिटटी में बोना चाहिए। ये बीज एक माह के भीतर ज़मने शुरू हो जाते हैं। बाद में जब पौध तीन – या चार इंच की हो जाए तो – उसको नर्सरी की थैलियों में एक साल रखकर- अगले साल वृक्षारोपण के लिए भेज देना चाहिए। लोध का पेड़ पहले तीन साल तक बहुत धीरे धीरे बढ़ता है फिर अगले 5-7 साल तेजी से बढ़ता है, वैसे लोध की कटिंग जाड़ों में लगाई जा सकती है. लेकिन सबसे अच्छा बीजों का जमाव तब होता है जब – जब चिड़िया, बन्दर और लंगूर इसके बीज खाकर बीट करते हैं तो उन स्थानों पर लोध के बीज अपने आप ही खूब जम जाते हैं। हर हिस्से में मेडिसिनल क्वालिटी है। यहां तक कि इसके छाल में भी कई तरह के औषधीय गुण हैं जो कई तरह की बीमारियों को ठीक करने में काम आते हैं।
आपको बता दें, इस पौधे की छाल और जड़ में फ्लावोनॉइड्स, टैनिन, वेटिवेरोल, लोध्रोल, लोध्रिन, एपिकटिन, बेतुलिनिक एसिड, लोध्रिकोलिक एसिड, बेटुलिक एसिड, लोध्रोसाइड जैसे तत्व मौजूद रहते हैं, जो मांसपेशियों के रोग, रक्तपुरीष संबंधित रोग, मलरोग, पीरियड्स संबंधित समस्याएं, गर्भाशय संबंधित विकार, गर्भनिरोधक औषधियों के दुष्प्रभावों को कम करने में भी कारगर साबित होते हैं। इन्हीं गुणों की वजह से इस पौधे को महिलाओं के लिए विशेष माना जाता है। ये पौधा आपको किसी नर्सरी में शायद ही मिले क्योंकि ये प्राकृतिक रूप से उगता है।
( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )