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सरोजिनी नायडू (Sarojini Naidu) की याद में मनाया जाता है राष्ट्रीय महिला दिवस

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सरोजिनी नायडू (Sarojini Naidu) की याद में मनाया जाता है राष्ट्रीय महिला दिवस

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

राजनीति से लेकर अन्य तमाम क्षेत्रों में देश की महिलाओं का अहम योगदान रहा है। इन औरतों ने पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर हर फील्ड में खुद को साबित किया है। इसी क्रम में आज, हम बात कर रहे हैं एक ऐसी महिला की, जिन्होंने न केवल राजनीति में बल्कि, देश के आजाद होने में अहम भूमिका निभाई थी। इस निडर और निर्भीक महिला का नाम है सरोजिनी नायडू। स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी कवियत्री सरोजिनी नायडू की आज 13 फरवरी, को जयंती है भारत में हम 13 फरवरी 1879 को सरोजिनी नायडू के जन्मदिन के अवसर पर इसे राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाते हैं। वह एक प्रतिभाशाली राष्ट्रीय नेता, एक स्वतंत्रता सेनानी और एक प्रसिद्ध कवयित्री थीं। उन्हें “भारत कोकिला”के नाम से जाना जाता था।

1914 में, सरोजिनी नायडू की पहली मुलाकात महात्मा गांधी से हुई और उन्होंने खुद को राष्ट्र के लिए समर्पित कर दिया। अपनी पढ़ाई के दौरान, वह राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल हो गई। उन्हें महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू सहित सभी प्रमुख नेताओं का सम्मान और विश्वास हासिल था, जो उनकी नेतृत्व क्षमताओं के कायल थे। सरोजिनी नायडू की जयंती को भारतीय महिलाओं और जीवन के हर क्षेत्र में राष्ट्र के लिए उनके योगदान को याद करने के लिए चुना गया था। देश की आजादी के बाद सरोजिनी नायडू को पहली महिला राज्यपाल बनने के गौरव प्राप्त
हुआ। सरोजिनी नायडू ने महिलाओं के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने भारतीय समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई। महिलाओं को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।

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सरोजिनी नायडू के कार्यों और महिलाओं के अधिकारों के लिए उनकी भूमिका को देखते हुए 13 फरवरी 2014 को भारत में राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की शुरुआत की गई थी।सरोजिनी नायडू ने प्रेम, धर्म, देशभक्ति और त्रासदी जैसे विषयों पर आधारित कई कविताएं लिखी हैं। वह एक स्वतंत्रता सेनानी और संयुक्त प्रांत, वर्तमान उत्तर प्रदेश की पहली महिला राज्यपाल भी थीं। इसके अलावा 1925 में उन्हें उनकी शैक्षिक क्षमताओं और राजनीतिक कौशल के कारण भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में चुना गया था। उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया और 21 महीने तक जेल में रहीं। सरोजिनी नायडू का भी संविधान में योगदान था। उनका जन्म हैदराबाद में एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था और उनका परिवार बांग्लादेश से जुड़ा है।

सरोजिनी नायडू ने अपनी शिक्षा चेन्नई में पूरी की और उच्च अध्ययन के लिए लंदन और कैम्ब्रिज चली गई। दो  मार्च 1949 को उत्तर प्रदेश के लखनऊ में दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई।सरोजिनी नायडू उस सदी की सबसे लोकप्रिय महिलाओं में से एक थीं। साहित्य में उनका अहम योगदान रहा है। 1905 में उनकी कविताओं का पहला संग्रह “गोल्डन थ्रेशोल्ड” प्रकाशित हुआ। उनकी सबसे अच्छी लेखनी की वजह से महात्मा गांधी ने उन्हें  “भारत कोकिला” की उपाधि दी थी।उनके कुछ साहित्यिक कार्यों में शामिल हैं। 1915 से 1918 तक उन्होंने भारत के स्वतंत्रता आंदोलनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। आजादी की लड़ाई में संकटों का डटकर मुकाबला करते हुए वह एक वीरांगना की भांति गांव-गांव, गली-गली घूमकर देश-प्रेम की अलख जगाकर देशवासियों को उनके कर्त्तव्य की याद दिलाती रही। उन्होंने न केवल गांधी  के अनेक सत्याग्रह आन्दोलनों में हिस्सा लिया और जीवन-पर्यन्त उनके विचारों तथा मार्ग का अनुसरण किया बल्कि ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के तहत जेल भी गई थी। दांडी मार्च के दौरान गांधीजी के साथ अग्रिम पंक्ति में चलने वालों में वह भी शामिल थी। उनके विनोदी स्वभाव के कारण उन्हें ‘गांधी  के लघु दरबार में विदूषक’ भी कहा जाता था।

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महात्मा गांधी के अलावा सरोजिनी नायडू गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर, गोपाल कृष्ण गोखले, एनी बेसेंट तथा पं. जवाहरलाल नेहरू के साथ भी विशेष रूप से जुड़ी रही। गोपाल कृष्ण गोखले को तो वह अपना राजनीतिक पिता मानती थी। गांधी तो अपने पत्रों में सरोजिनी नायडू को कभी ‘डियर बुलबुल’ तो कभी ‘डियर मीराबाई’ और कभी-कभी मजाक में ‘अम्माजान’ या ‘मदर’ भी लिखते थे, वहीं सरोजिनी भी गांधीजी को मजाकिया अंदाज में कभी ‘जुलाहा’ तो कभी ‘लिटिल मैन’ और कभी ‘मिकी माउस’  कहा करती थी। गांधीजी ने 8 अगस्त 1932 को सरोजिनी नायडू को लिखे एक पत्र में उन्हें ‘बुलबुल’ नाम से सम्बोधित किया था और उसी पत्र में उन्होंने स्वयं के लिए ‘लिटिल मैन’ शब्द इस्तेमाल किया था। सरोजिनी कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष भी बनी। वह 1925 में कानपुर में हुए कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्ष बनी और 1932 में भारत की प्रतिनिधि बनकर दक्षिण अफ्रीका भी गई।

अंग्रेजी भाषा पर सरोजिनी की बहुत मजबूत पकड़ थी, लंदन की सभा में अंग्रेजी में बोलकर उन्होंने वहां उपस्थित सभी श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया था। बहुभाषाविद सरोजनी नायडू अपना भाषण क्षेत्रानुसार अंग्रेजी, हिन्दी, बांग्ला अथवा गुजराती भाषा में देती थी। गांधीजी ने मधुर आवाज और उनके भाषणों से प्रभावित होकर ही उन्हें ‘भारत कोकिला’ की उपाधि दी थी। देश की आजादी के बाद सरोजिनी नायडू भारत की पहली महिला राज्यपाल बनी लेकिन यह पद स्वीकार करते समय उन्होंने कहा था कि वह स्वयं को ‘कैद कर दिए गए जंगल के पक्षी’ की भांति अनुभव कर रही हैं किन्तु वह पं. जवाहरलाल नेहरू का बहुत सम्मान करती थी, इसलिए उनकी इच्छा को टाल नहीं सकी। उन्होंने महिलाओं के अधिकारों के लिए काफी संघर्ष किया और समाज में फैली कुरीतियों के प्रति महिलाओं को जागृत किया तथा भारतीय समाज में जातिवाद, लिंग-भेद को मिटाने के लिए भी उल्लेखनीय कार्य किए।

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भारत में प्लेग महामारी के दौरान किए गए सराहनीय कार्यों के लिए उन्हें 1908 में ब्रिटिश सरकार द्वारा ‘केसर -ए-हिंद’ से सम्मानित किया गया था लेकिन जलियांवाला बाग हत्याकांड से क्षुब्ध होकर उन्होंने यह सम्मान वापस कर दिया था। 2 मार्च 1949 को हृदयाघात के कारण लखनऊ में अपने कार्यालय में कार्य करने के दौरान उनका निधन हो गया। सरोजिनी नायडू का निधन 2 मार्च 1949  में हुआ था। भारत सरकार द्वारा उनकी जयंती के अवसर पर उनके सम्मान में13 फरवरी 1964 को 15 पैसे का एक डाक टिकट जारी किया गया था। लेखक, के व्यक्तिगत विचार हैं।

( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )

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