पहाड़ के मुकाबले मैदानी जिलों का प्रदर्शन खऱाब - Mukhyadhara

पहाड़ के मुकाबले मैदानी जिलों का प्रदर्शन खऱाब

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पहाड़ के मुकाबले मैदानी जिलों का प्रदर्शन खऱाब

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

उत्तराखंड में पहाड़ी जिले भले ही संसाधनों की कमी से जूझ रहे हो, लेकिन शिक्षा के लिहाज से पहाड़ी जिलों के छात्रों की परफॉर्मेंस मैदानों की तुलना में अव्वल ही रही है। पिछले दिनों बोर्ड परीक्षाओं के परिणामों ने इस बात को पुख्ता भी कर दिया है।इससे मैदानी जिलों के शिक्षकों पर भी उंगली उठने लगी है। उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में शिक्षकों की तैनाती को लेकर हमेशा महकमा मशक्कत करता हुआ दिखाई देता है। पहाड़ी जिलों में शिक्षकों की भारी कमी भी किसी से छुपी नहीं है। यहीं नहीं पहाड़ी जिलों से मैदानों में जाने के लिए शिक्षकों की होड़ के बारे में भी सभी जानते हैं। लेकिन इस सब के बावजूद भी बोर्ड की परीक्षा परिणाम में जो कुछ सामने आया। वह खासा चौंकाने वाला था। 10वीं और 12वीं में उत्तीर्ण प्रतिशत में बागेश्वर जिला पहले नंबर पर है।

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वहीं, खराब परीक्षाफल वाले जिलों में देहरादून और हरिद्वार जिले शामिल हैं। प्रदेश के देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल और ऊधमसिंह नगर जिलों में तैनाती के लिए शिक्षक पूरे साल एड़ी चोटी का जोर लगाए रहते हैं। इसके लिए विधायक, मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक की सिफारिश लगवाते हैं। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि इन जिलों में अधिकतर विद्यालय सुगम क्षेत्र में हैं। पहाड़ की तुलना में यहां ज्यादा शिक्षक और सुविधाएं हैं,
लेकिन उत्तराखंड बोर्ड के नतीजों की बात करें तो उत्तीर्ण प्रतिशत और मेरिट में पहाड़ के जिले छाए हुए हैं। 10वीं में बागेश्वर जिला 95.42 उत्तीर्ण प्रतिशत के साथ पहले स्थान पर है। चंपावत 93.28 प्रतिशत के साथ दूसरे एवं अल्मोड़ा 93.16 प्रतिशत के साथ तीसरे नंबर पर है।परीक्षाफल में फिसड्डी रहे जिलों की बात करें तो हरिद्वार जिला नंबर एक पर और देहरादून दूसरे नंबर पर है। हरिद्वार जिले का पास प्रतिशत सबसे कम 87.71 प्रतिशत, देहरादून का 85.67 प्रतिशत, नैनीताल जिले का 86.61 प्रतिशत और ऊधमसिंह नगर जिले का उत्तीर्ण प्रतिशत 91.41 प्रतिशत रहा है। कुछ यही स्थिति 12वीं के नतीजों की है।

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उत्तराखंड में पहाड़ी जिले भले ही संसाधनों की कमी से जूझ रहे हो, लेकिन शिक्षा के लिहाज से पहाड़ी जिलों के छात्रों की परफॉर्मेंस मैदानों की तुलना में अव्वल ही रही है। इससे मैदानी जिलों के शिक्षकों पर भी उंगली उठने लगी है। सुविधाओं और माली हैसियत में दमदार जिले अपने से कमतर पर्वतीय जिलों से उत्तराखंड बोर्ड के परीक्षाफल में मात खा रहे हैं। पर्वतीय जिलों के छात्र-छात्राओं ने पास होने से लेकर मेरिट सूची में अपनी धमक बनाई। हाईस्कूल और इंटर में पास होने वाले परीक्षार्थियों का आंकड़ा धीमी गति से ही सही, लगातार बढ़ रहा है। मैदान से लेकर
पहाड़ों तक छात्राएं बोर्ड परीक्षाफल में छात्रों पर अपनी बढ़त बनाए रखने में कामयाब रही हैं रामनगर स्थित बोर्ड मुख्यालय में उत्तराखंड बोर्ड के सभापति महावीर सिंह रावत ने बताया कि वर्ष 2024 की परीक्षाओं के परिणाम घोषित किए।

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रिजल्ट घोषित करते हुए बताया कि हाईस्कूल परीक्षा में शामिल हुए कुल 115666 छात्र-छात्राओं में से 89.14 प्रतिशत विद्यार्थी उत्तीर्ण हुए हैं। जबकि इंटरमीडिएट में परीक्षा देने वाले 94020 विद्यार्थियों में से 76 हजार छात्र-छात्राएं उत्तीर्ण हुए हैं। 12वीं का रिजल्ट 82.63प्रतिशत रहा है। किसी भी व्यवस्था की रीढ़ कहे जाने वाले सरकारी कर्मचारियों को देखिए, जो पहाड़ी तबादलों के लिए तैयार नहीं हैं। ऐसा क्यों है? चाहे वह डॉक्टर हों, शिक्षक हों, या अन्य लोक सेवक हों सभी ने पहाड़ी पोस्टिंग से बचने के तरीके खोज लिए हैं। अविभाजित यूपी में ऐसा कभी नहीं हुआ। मैं कहूंगा कि इसका सबसे बड़ा कारण खराब नीति निर्धारण और शून्य दृष्टि है। राज्य के नेता भले ही लंबे समय से राजनीति में हैं लेकिन वे न तो बुद्धिजीवी हैं और न ही दूरदर्शी। 2000 के बाद से, भाजपा और कांग्रेस दोनों ने उत्तराखंड पर शासन किया है, लेकिन कोई भी पार्टी पहाड़ों और मैदानों के बीच अंतर को पाटने में सक्षम नहीं रही है। अगर कुछ है तो यह उनकी दूरदर्शी नीतियों के कारण ही बढ़ा है। उत्तराखंड को ऐसे शिक्षित लोगों की आवश्यकता है जिनके पास राज्य की अर्थव्यवस्था को विकास की ओर ले जाने की दृष्टि हो।

(लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )

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