World Population Day : तेजी से बढ़ती जनसंख्या (Population) भारत समेत विश्व के लिए बड़ी चुनौती, स्थित बिगड़े उससे पहले समाज में जागरूकता लानी होगी
मुख्यधारा डेस्क
आज 11 जुलाई है। हर साल इस दिन विश्व जनसंख्या दिवस के रूप में मनाया जाता है। जनसंख्या के मामले में भारत पूरे विश्व में पहले नंबर पर है। पिछले साल 2023 में भारत ने आबादी के मामले में चीन को पीछे छोड़ दिया था। 2023 के अनुमान के अनुसार, भारत की जनसंख्या 1.4 अरब के करीब है। पूरे विश्व की जनसंख्या 8 अरब पार कर गई है। आज दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी एशियाई देशों में है। भारत समेत तमाम देशों की तेजी से बढ़ रही जनसंख्या विश्व के लिए चिंता भी बढ़ा रही है। दुनियाभर में बढ़ती आबादी कई गंभीर समस्याओं का कारण बनती जा रही है। विश्व जनसंख्या दिवस एक महत्वपूर्ण अवसर है जो हमें तेजी से बढ़ती जनसंख्या और उससे जुड़ी चुनौतियों के प्रति जागरूक करता है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन के मुद्दों पर गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है।
बता दें कि साल 1989 में संयुक्त राष्ट्र ने विश्व जनसंख्या दिवस मनाने की घोषणा की थी। इस दिन को मनाए जाने के बारे में तब सोचा गया जब आज ही के दिन साल 1987 को विश्व की आबादी का आंकड़ा 5 अरब को पार कर गया था। इस दिन को मनाने का सुझाव डॉक्टर केसी जैक्रियाह ने दिया था। विश्व जनसंख्या दिवस की स्थापना 1989 में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) द्वारा की गई थी। पहला जनसंख्या दिवस 11 जुलाई 1990 को मनाया गया था। विश्व जनसंख्या दिवस 2024 की थीम है किसी को पीछे न छोड़ना, सभी की गिनती करना। ये थीम दुनिया में मौजूद लोगों को जरूरी सुविधाएं मुहैया कराने के लिए जनसंख्या डेटा एकत्र करने के महत्व पर प्रकाश डालती है। इस दिन जगह-जगह जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रमों के जरिए लोगों को जागरूक करने की कोशिश की जाती है। कई जगहों पर सम्मेलन भी आयोजित किए जाते हैं, ताकि लोगों में जागरूकता लाई जा सके।
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पूरे दुनिया में विश्व जनसंख्या दिवस पर पॉपुलेशन कंट्रोल करने के लिए कई नियमों से लोगों को परिचित कराया जाता है। इसके अलावा जेंडर इक्वलिटी, मां और बच्चे का स्वास्थ्य, जेंडर एजुकेशन, गर्भनिरोधक दवाओं के इस्तेमाल से लेकर यौन संबंध जैसे गंभीर विषयों पर लोगों से खुलकर बात की जाती है। बढ़ती जनसंख्या के कारण कई समस्याएं उत्पन्न होती हैं जैसे कि संसाधनों की कमी, प्रदूषण और गरीबी। ऐसे में हम सभी का कर्तव्य है कि हम जनसंख्या नियंत्रण के महत्व को समझें और दूसरों को भी इसके बारे में बताएं।हालांकि, जागरूकता अभियानों की वजह से जनसंख्या वृद्धि की दर को काफी हद तक कंट्रोल किया गया है। 1970 के दशक के शुरुआती सालों में जहां हर महिला के औसतन 4.5 बच्चे होते थे, वहीं 2015 में आंकड़ा 2.5 के औसत पर आ गया है। ये राहत भरा आंकड़ा जरूर है लेकिन हमें अपने प्रयासों को और बढ़ाने की जरूरत है।