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युवाओं के प्रेणास्रोत हैं स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda)

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युवाओं के प्रेणास्रोत हैं स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda)

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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

स्वामी विवेकानंद को हिमालय की गोद में बसे उत्तराखंड की इस धरती से विशेष लगाव था। यही कारण था कि बेहद कम उम्र पाने वाले स्वामी विवेकानंद ने सिर्फ 12 सालों में ही 5 बार उत्तराखंड का भ्रमण किया। दुनिया के लिए प्रेरणास्रोत महान संत स्वामी विवेकानंद अपने जीवन के अंतिम समय उत्तराखंड के लोहाघाट स्थित अद्वैत आश्रम में बिताना चाहते थे। स्वामी विवेकानंद ने पहली बार हिमालयी गोद में बसे इस राज्य की यात्रा साल 1888 में की थी। यह यात्रा विवेकानंद के रूप में न होकर नरेंद्र दत्त के रूप में की थी। पहली यात्रा शिष्य शरदचंद गुप्त (बाद में सदानंद) के साथ की थी। गुप्त हाथरस (उप्र) में स्टेशन मास्टर थे। नरेंद्र दत्त ने ऋषिकेश में कुछ समय बिताया और उसके बाद वह वापिस लौट गए थे। इसके बाद दूसरी यात्रा स्वामी विवेकानंद के रूप में की।

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ऋषिकेश यात्रा के दो साल बाद यानि 1890 में अयोध्या से पैदल नैनीताल पहुंचे थे। प्रसान्न भट्टाचार्य के आवास पर छह दिन रुकने के बाद अल्मोड़ा से कर्णप्रयाग, श्रीनगर,टिहरी, देहरादून व ऋषिकेष पहुंचे। इस दौरान तप, ध्यान व साधना की। अल्मोड़ा के काकड़ीघाट में पीपल वृक्ष के नीचे उन्हें आत्मज्ञान प्राप्त हुआ था। कसार देवी गुफा में कई दिनों तक ध्यान किया और उत्तिष्ठ भारत की प्रेरणा प्राप्त हुई।स्वामीजी ने उत्तराखंड में तीसरी यात्रा शिकागो से लौटने के बाद 1897 में की। शिकागो में धर्म संसद में अपने प्रसिद्ध भाषण के बाद देश दुनिया में स्वामी विवेकानंद बहुत प्रसिद्धि पा चुके थे। अल्मोड़ा पहुंचने पर अल्मोड़ावासियों ने उनका फूलों की बारिश से स्वागत किया। अल्मोड़ा लाला बद्रीलाल साह के अतिथि के तौर पर पहुंचे स्वामी विवेकानंद ने देवलधार एस्टेट में स्थित गुफा में ध्यान लगाया था। इसके साल भर बाद ही उन्होंने 1898 में चौथी यात्रा की। मई-जून 1998 में फिर उत्तराखंड के अल्मोड़ा पहुंचे। इस यात्रा के दौरान उन्होंने अल्मोड़ा के थॉमसन हाउस से प्रबुद्ध भारत पत्रिका का फिर से प्रकाशन आरंभ किया।222 साल पुराने देवदार के वृक्ष के नीचे भगिनी को दीक्षा दी। इस यात्रा में उन्होंने रैमजे इंटर कॉलेज में पहली बार हिंदी में भाषण दिया था।

अपनी अल्मोड़ा यात्रा की यात्रा के दो साल बाद 1901 में उन्होंने अपनी आखिरी हिमालय यात्रा और पांचवी यात्रा की।1901 में मायावती के अद्वैत आश्रम में हुई थी। मायावती आश्रम का निर्माण करने वाले कैप्टन सेवियर की मृत्यु की खबर सुनने के बाद स्वामी विवेकानंद 170 किलोमीटर की दुर्गम यात्रा कर वह तीन जनवरी, 1901 को अद्वैत आश्रम लोहाघाट पहुंचे और 18 जनवरी, 1901 तक रहे। इस दौरान उन्होंने तप किया था। इस दौरान उन्होंने यहां जैविक खेती की शुरूआत भी की। 19 जनवरी 1901 को स्वामी विवेकानंद यहां से रवाना हुए। हालांकि, वह बाकी वक्त यहीं गुजारना चाहते थे लेकिन गिरते स्वास्थ्य के चलते उनके शिष्यों ने उन्हें यहां रूकने नहीं दिया।

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लगातार लंबी यात्राएं और अत्यधिक श्रम के कारण स्वामी विवेकानंद का स्वास्थ्य लगातार गिरता जा रहा था।स्वामीविवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ था। उनका नाम नरेंद्र दत्त था, जो सन्यास लेने के बाद विवेकानंद हुआ। 1884 में पिता विश्वनाथ दत्त की मृत्यु हो गयी तो घर का सारा भार नरेंद्र यानी स्वामी विवेकानंद पर पड़ गया। घर की दशा बहुत खराब हो गई थी। गरीबी में भी नरेंद्र बड़े अतिथि सत्कार वाले व्यक्ति थे. परमहंस जी की कृपा से इनको आत्म-साक्षात्कार हुआ। फलस्वरूप नरेंद्र, परमहंस जी के शिष्य हो गये। संन्यास लेने के बाद
इनका नाम विवेकानंद हुआ। 25 वर्ष की अवस्था में नरेंद्र दत्त ने गेरुआ वस्त्र पहन लिये। अंतिम समय में अपने सारे शिष्यों को बुलाकर परमहंस ने कहा था कि विवेकानंद उनके उत्तराधिकारी होंगे। इसके बाद 16 अगस्त 1886 को रामकृष्ण महासमाधि में चले गये। उसके बाद विवेकानंद ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। इसके बाद स्वामी विवेकानंद ने भारत सहित विदेश में भ्रमण किया।

अमेरिका में हुए उनके भाषण पर गौतम घोष ने अपनी किताब ‘द प्रॉफेट ऑफ मॉडर्न इंडिया, स्वामी विवेकानंद’ में लिखा कि धर्म संसद में बोलने वालों के क्रम में विवेकानंद का नंबर 31वां था। लेकिन उन्होंने आयोजकों से अनुरोध किया कि उन्हें सबसे अंत में बोलने दिया जाये। उनके पास पहले से तैयार भाषण भी नहीं था। लेकिन उन्होंने मां सरस्वती का स्मरण किया और जैसे ही डॉक्टर बैरोज (मंच संचालक) ने उनका नाम पुकारा वह मंच पर जा पहुंचे। इसके बाद जैसे ही उन्होंने अपने पहले शब्द ‘सिस्टर्स एंड ब्रदर्स ऑफ अमेरिका’ कहा तो सारे लोग खड़े हो गये और लगातार दो मिनट तक ताली बजाते रहे। युवाओं को किसी भी देश के विकास के लिए रीढ़ की हड्डी माना जाता है जैसे शरीर की रीढ़ खराब हो जाए तो शरीर का सीधे खड़ा नहीं हो सकता ठीक उसी तरह अगर देश के युवा गलत रास्ते पर चलने लगे तो देश के विकास में कई रोकावटें आ जाती है।

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देश के विकास के लिए युवा वर्ग की मानसिकता का अच्छा होना बेहद जरूरी है। BBC हिंदी में छपें उनके भाषण के कुछ अंश बताते है। मुझे गर्व है कि मैं उस धर्म से हूं जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है. हम सिर्फ सार्वभौमिक सहिष्णुता पर ही विश्वास नहीं करते बल्कि, हम सभी धर्मों को सच के रूप में स्वीकार करते हैं मैं इस मौके पर वह श्लोक सुनाना चाहता हूं जो मैंने बचपन से याद किया और जिसे रोज करोड़ों लोग दोहराते हैं।” जिस तरह अलग-अलग जगहों से निकली नदियां, अलग- अलग रास्तों से होकर आखिरकार समुद्र में मिल जाती हैं, ठीक उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा से अलग-अलग रास्ते चुनता है। ये रास्ते देखने में भले ही अलग-अलग लगते हैं, लेकिन ये सब ईश्वर तक ही जाते हैं। यदि ये खौफनाक राक्षस नहीं होते तो मानव समाज कहीं ज्यादा बेहतर होता, जितना कि अभी है।  लेकिन उनका वक्त अब पूरा हो चुका है। मुझे उम्मीद है कि इस सम्मेलन का बिगुल सभी तरह की कट्टरता, हठधर्मिता और दुखों का विनाश करने वाला होगा। चाहे वह तलवार से हो या फिर कलम से। सांप्रदायिकता, कट्टरता और इसके भयानक वंशजों के धार्मिक हठ ने लंबे समय से इस खूबसूरत धरती को जकड़ रखा है। उन्होंने इस धरती को हिंसा से भर दिया है और कितनी ही बार यह धरती खून से लाल हो चुकी है. न जाने कितनी सभ्याताएं तबाह हुईं और कितने देश मिटा दिए गए.ये शब्द हैं युवाओं के मार्गदर्शक स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) के जिनके विचार आज भी युवाओं के लिए मार्गदर्शन का काम करतें हैंयुवाओं को किसी भी देश के विकास के लिए रीढ़ की हड्डी माना जाता है जैसे शरीर की रीढ़ खराब हो जाए तो शरीर का सीधे खड़ा नहीं हो सकता ठीक उसी तरह अगर देश के युवा गलत रास्ते पर चलने लगे तो देश के विकास में कई रोकावटें आ जाती है. देश के विकास के लिए युवा वर्ग की मानसिकता का अच्छा होना बेहद जरूरी है. दुनिया को धर्म, आध्यात्म को लेकर नई दिशा देने वाले स्वामी विवेकानंद की आज पुण्यतिथि है। स्वामी विवेकानंद महान तेजस्वी प्रतिभा के धनी माने जाते रहे हैं।

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धर्म, आध्यात्म, जीवन को लेकर उनके विचार आज भी लोगों के लिए किसी धर्म ग्रंथ में लिखी बातों से कम नहीं है। शिकागों की धर्म संसद में अपने प्रसिद्ध भाषण के जरिए पूरे विश्व को भारतीय संस्कृति से रूबरू करवाने वाले स्वामी विवेकानंद को यूं तो कुल 39 साल की जिंदगी मिली थी लेकिन इतनी कम उम्र में जो आध्यात्म, संस्कृति को लेकर उनके विचारों से आज भी लोग प्रभावित होते हैं।भारतीय आत्मा को अक्षुण्ण रखते हुए सार्वभौमिक विचारों से संवाद स्वामी जी की प्रमुख विशेषता रही। उन्होंने कहा था भारत एक बार फिर समृद्धि तथा शक्ति की महान ऊँचाइयों पर उठेगा और अपने समस्त प्राचीन गौरव को पीछे छोड़ जाएगा, भारत पुनः विश्व गुरु बनेगा, जो पूरे संसार का पथप्रदर्शन करने में समर्थ होगा। उन्होंने घोषणा की कि भारत का विश्व गुरु बनना केवल भारत ही नहीं, अपितु विश्व के हित में होगा। स्वामी विवेकानंद ने जो भविष्यवाणी की थी अब सिर्फ उसका सत्य सिद्ध होना शेष है।

(लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरतहैं)

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