सवाल: मंत्रीजी के साथ मारपीट वाली हॉट खबर के बीच दबी एक पहाड़वासी (mountain dwellers) की चीख-पुकार, जानिए क्या है मामला!
तेंदुए ने ली ग्रामीण की जान, इस खबर को नहीं मिल पाई खास तवज्जो
रानीखेत/मुख्यधारा
खबरों की दुनियां भी बड़ी अजीब है साहेब! यहां टोटल टीआरपी का खेल है। इससे सच्ची खबरें कई बार दब जाती हैं या फिर यूं कहें कि जान-बूझकर कवर नहीं की जाती हैं, शायद गलत नहीं होगा। गत दिवस उत्तराखंड सरकार के मंत्री डा० प्रेमचन्द अग्रवाल के साथ ऋषिकेश में एक स्थानीय व्यक्ति ने मारपीट कर दी। देखते ही देखते यह मामला सुर्खियों में छा गया, जो आज लगातार दूसरे दिन भी सुर्खियों में ही बना हुआ है।
इसी बीच अल्मोड़ा जनपद के रानीखेत से बड़ी दु:खद खबर सामने आ रही है। जहां खूंखार नरभक्षी गुलदार द्वारा गांव के एक व्यक्ति को निवाला बना दिया गया। इसका पता तब चला, जब स्कूली बच्चे गत सुबह स्कूल जा रहे थे। उन बच्चों ने रास्ते में देखा कि खून से सने हुए चप्पल व कपड़े पड़े हुए हैं। इसकी जानकारी गांव में दी गई। ग्रामीणों ने खोजबीन की तो गांव के व्यक्ति का क्षत-विक्षत शव झाडिय़ों से बरामद हुआ। जिसके बाद गांव में सन्नाटा पसरा हुआ है।
पहाड़ों में नरभक्षी गुलदार, तेंदुए व बाघ के हमले का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। ये खूंखार जानवर अब तक कई परिवारों को ऐसा घाव दे चुके हैं, जो शायद कभी नहीं भर पाएंगे। इस बार एक ऐसी ही घटना रानीखेत के चमडख़ान क्षेत्र के अंतर्गत ग्राम पंचायत नौगांव के फयाटनौला से सामने आई हैं, जहां ग्रामीण जगदीश चन्द्र असनोड़ा पुत्र स्व. विशनदत्त असनोड़ा को तेंदुए ने मौत के घाट उतार दिया।
ग्रामीणों के अनुसार जगदीश सोमवार शाम करीब 7 बजे अपने घर से लगभग डेढ-दो किमी दूर दुकान से सामान लाकर लौट रहा था। इसी दौरान पहले से ही घात लगाकर बैठा तेंदुआ ने उस पर हमला कर दिया। मंगलवार सुबह जब बच्चे स्कूल जा रहे थे तो उन्होंने रास्ते में खून के धब्बे देखे। उनकी सूचना पर ग्रामीणों ने जब खोजबीन की तो क्षत-विक्षत शव बरामद हुआ। वन विभाग के कर्मियों ने बारिश के बीच शव को निकालकर पोस्टमार्टम के लिए भिजवाया। इस घटना के बीच ग्रामीण सहमें हुए हैं और दहशत में हैं। उन्होंने क्षेत्र में तत्काल पिंजरा लगाकर खूंखार तेंदुए को पकडऩे की मांग की है। वहीं इसके बाद क्षेत्र में वन कर्मियों ने गश्त बढा दी है।
इससे पूर्व पौड़ी जिले में भी दो लोगों को गुलदार ने निवाला बना दिया था। वन्य जीवों के हमलों में जगदीश जैसे कई प्रकरण पहाड़ी जिलों में आए दिन सामने आते रहते हैं, किंतु इसकी रोकथाम को लेकर कोई ठोस उपाय नहीं बनाए जा सके हैं। राज्य में अब तक के सभी वन मंत्रियों ने भी इसको लेकर कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई।
इससे भी दु:खद पहलू यह है कि इन घटनाओं को मीडिया में भी उतनी जगह नहीं मिल पाती, जितनी कि गत दिवस ऋषिकेश में मंत्री प्रेमचन्द अग्रवाल के साथ हुए मारपीट प्रकरण के मामले में देखने को मिली। यदि इससे आधा भी वन्यजीव हमले में जान गंवाने वाली खबरों को प्राथमिकता मिल जाए तो शायद सरकारें व नीति-नियंता इस बड़ी ज्वलंत समस्या का स्थायी समाधान खोजने में जरूर गौर करेंगे।
बहरहाल, ‘न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी’, और वन्यजीवों के हमलों में जान गंवाने वाले पहाड़वासियों की सिसकियां उपरोक्त टीआरपी वाली अन्य खबरों के बीच दबी रहेंगी।