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हिंदी साहित्य (Hindi literature) सृजन की परंपरा भी सौ साल पुरानी है

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हिंदी साहित्य (Hindi literature) सृजन की परंपरा भी सौ साल पुरानी है

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

हिंदी की साहित्य सृजन की परंपरा भी बारह सौ साल पुरानी है। इसकी शब्द संपदा विपुल है।उसके पास पच्चीस लाख से ज्यादा शब्दों की सेना हैं। आज ईएसपीएन तथा स्टार स्पोर्ट्स जैसे खेल चैनल भी हिंदी में कमेंट्री देने लगे हैं। निर्णायक के रूप में उपस्थित ने कहा कि वैश्वीकरण के इस दौर में विश्व के लगभग सभी बड़े देशों में हिंदी की महत्ता को स्वीकारा जा चुका है। हिंदी स्वयं को वैश्विक भाषा के रूप में स्थापित कर रही है। भाषाओं के इस विलुप्तीकरण के दौर में हिंदी अपने को न केवल बचाने में सफल रही है, वरन विश्व के हर कोने में पहचानी जाने लगी है। निर्णायक सप्रा. मीना मिश्रा ने कहा कि लगभग डेढ़ हजार वर्ष पुरानी डेढ़ लाख शब्दावली को स्वयं में समाहित करने वाली भाषा हिंदी आज न केवल साहित्य की भाषा वरन बाजार की भी भाषा बन गई है। वर्तमान में हिंदी को वैश्विक स्तर पर उपभोक्तावाद से जोड़ा गया है। और बीच-बीच में हिंदी के मध्य उर्दू और अंग्रेजी ने अपनी जगह बनाई है।

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आज स्थिति यह है कि हिंदुस्तान में ही हिंदी से ज्यादा अंग्रेजी के कई शब्द मिलाकर हिग्लिश भाषा बोली जाती है। न्यूज़ चैनल में न्यूज़ एंकर विशुद्ध हिंदी की जगह हिग्लिश ही बोलकर अपनी इतिश्री कर लेते हैं। और तो और अब हिंदी के बड़े साहित्यकार भी हिंदी में अंग्रेजी तथा उर्दू के शब्द मिलाकर लिख रहे हैं, बोल रहे हैं, और पढ़ रहे हैं। विडंबना यह है कि भारत में 135 उपभोक्ता की उपस्थिति में विशुद्ध हिंदी का प्रयोग करना थोड़ा कठिन हो जाता है। जैसे हम टी,वी, को दूरदर्शन नहीं कहते, इंटरनेट को इंटरनेट ही लिखा जाता है, अंतरजाल नहीं लिखा जाता।यह जितनी अंग्रेजी की शब्दावली हिंदी में जुड़ी हुई है,यह संचार माध्यम टी,वी व्हाट्सएप,फेसबुक,ट्विटर, इंटरनेट सीधे-सीधे उपभोक्ताओं के बाजार वाद के कारण जुड़े हुए हैं।

हिंदुस्तान में लगभग 135 करोड़ उपभोक्ता निवास करते हैं, और उन तक पहुंचने के लिए हिंदी का प्रयोग अंग्रेजी तथा उर्दू की मिलावट के साथ किया जाता है। वैश्विक स्तर पर भी देखा जाए तो हिंदुस्तानी मूल के लोग श्रीलंका,मॉरीशस,फिजी, ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा,ऑस्ट्रेलिया,न्यू जीलैंड, साउथ अफ्रीका में फैले हुए हैं। ऐसे में हिंदी का वैश्विक विस्तार अपने आप हिंदी भारतीय अप्रवासी, प्रवासी भारतीय लोगों के माध्यम से होने लगता है। फिर अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, फ्रॉस, इटली, जापान,चाइना इनके उत्पादक को भारत के उपभोक्ताओं के बीच बेचने के लिए उन्हें हिंदी की आवश्यकता होती है, भारत एक शक्तिशाली उपभोक्ता बाजार है। एक साथ एक ही जगह इतने ग्राहक मिलना किसी अन्य देश में असंभव है।

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इन परिस्थितियों में विश्व का हर देश अपने बनाए गए उत्पादन का बाजार खोजने भारत की ओर खिंचा चलाआता है। और हिंदी को माध्यम बनाकर वह अपना माल बेचना शुरू करता है। और इसके लिए टी,वी, इंटरनेट, कंप्यूटर,व्हाट्सएप तथा फेसबुक में हिंदी में विज्ञापन देकर
उसका प्रचार प्रसार करता है। विज्ञापनों में हिंदी का व्यापक रूप से प्रचार और प्रसार वैश्विक स्तर पर होने लगा है। डॉक्टर जयंती प्रसाद नौटियाल ने भाषा शोध अध्ययन 2012 में यह दावा किया है कि विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा हिंदी ही है। हिंदी में अंग्रेजी सहित अन्य भाषाओं का उपयोग करने वालों को पीछे छोड़ दिया है 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा बनाए जाने का निर्णय लिया था। इसी तारतम्य में भारत में प्रत्येक पर 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में व्यापक स्तर पर देश की राजधानी दिल्ली चलेगी ग्राम पंचायत तक मनाया जाताहै।

डॉ राजेंद्र प्रसाद ने कहा है हिंदी चिरकाल से ऐसी भाषा रही है जिसने मात्र विदेशी होने के कारण किसी शब्द या भाषा का तिरस्कार नहीं किया  वैसे भी अंग्रेजों के आगमन के पूर्व हिंदी देवनागरी लिपि में उर्दू तथा फारसी शब्दों का समावेश होता रहा है। अंग्रेजों के आने के बाद इसने अंग्रेजी शब्दों को भी आत्मसात किया। हिंदी एक विशाल हृदय की विशाल भाषा है। इसमें अन्य भाषा के अपभ्रंश आने से हिंदी कभी मूल रूप से दिग्भ्रमित या विकृत नहीं हो पाई है। यही वजह है कि हिंदी वैश्विक स्तर पर धीरे-धीरे विस्तारित, प्रचारित एवं प्रसारित होती जा रही है वर्तमान में विश्व में लगभग45 करोड़ से अधिक लोग हिंदी भाषा बोलते हैं, इसकी सरलता विश्व के लोगों को प्रभावित करती जा रही है,भारत के विद्वानों, शिक्षाविदों, साहित्यकारों, कवियों, फिल्मी गीत कारों के प्रयासों से हिंदी ने वैश्विक रूप लिया है। हिंदी को वैश्विक रूप से उपभोक्ताओं से जोड़ने के लिए फिल्म निर्माताओं गीतकार एवं संगीत, गानों का भी बड़ा योगदान रहा है।

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हिंदुस्तान में बनी फिल्म को विदेशों में रह रहे भारतीय तथा अन्य भाषाई लोग उसके गीतों तथा उसके संवाद के कारण उस फिल्म को देखने
जाते हैं, जिससे सीधे-सीधे भारतीय फिल्मकारों को विदेशी मुद्रा का अर्जन होता है। इस तरह उपभोक्तावाद, बाजारवाद के नजरिए से देखें तो हिंदुस्तानी उपभोक्ताओं का बहुत बड़ा बाजार वैश्विक स्तर पर फैला हुआ है। जिससे हिंदी भाषा न सिर्फ बाजारवाद की भाषा बनी है, बल्कि साहित्यिक रूप से भी गीत, ग़ज़ल और गानों के रूप में समृद्ध हुई है। वर्तमान में हिंदी न सिर्फ हिंदुस्तान में बल्कि वैश्विक स्तर पर लोकप्रिय होती जा रही है। भारत में हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए 14 सितंबर को हिंदी दिवस मना कर एवं वैश्विक स्तर पर विश्व हिंदी सम्मेलन अलग-अलग देशों में आयोजित किया जाता रहा है। इस संदर्भ में पंडित गोविंद बल्लभ पंत ने कहा कि हिंदी के प्रचार प्रसार तथा विस्तार को कोई भाषा रोक नहीं सकती है।

हिंदी भारत की एकमात्र ऐसी भाषा है, जिसके माध्यम से भारत के विभिन्न क्षेत्रों के विभिन्न भाषा वासी लोग आपस में अपने विचारों का आदान-प्रदान सकते हैं। एनी बेसेंट ने हिंदी भाषा को लेकर काफी सत्य कहा है कि भारत के विभिन्न प्रांतों में बोली जाने वाली विभिन्न भाषाओं मैं जो भाषा सबसे प्रभावशाली बन कर सामने आती है वह हिंदी है। वह व्यक्ति जो हिंदी जानता है पूरे भारत में किसी भी प्रांत की यात्रा कर सकता है और हिंदी बोलने वालों से हर तरह की जानकारी प्राप्त कर सकता है।अब तो बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने उत्पादों का प्रचार प्रसार पूर्णता हिंदी में करना शुरू कर दिया। इसी तारतम्य में यदि यह कहा जाए कि हिंदी वैश्विक बाजार वाद या उपभोक्तावाद की सबसे बड़ी एवं सशक्त भाषा बन गई है, तो यह अतिरेक नहीं होगा।

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अंग्रेजी जरूर अंतर राष्ट्रीय भाषा है,पर हिंदी भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बोले जाने वाली द्वितीय भाषा तो जरूर है ही, एवं उपभोक्ताओं के लिए यह प्रथम स्थान रखती है। भारत में हिंदी भाषा सभी प्रांतों सभी राज्यों को एकता के सूत्र में पिरोने वाली एक मातृभाषा स्थापित रूप से है इसीलिए इसे राजभाषा तथा राष्ट्रभाषा का वास्तविक सम्मान दिए जाने की आवश्यकता है। हिंदी को विश्व की सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा का गौरव दिलाने के लिए दून के डॉ. जयंती प्रसाद नौटियाल बीते 41 साल से शोध कर रहे हैं। उनका दावा है कि वर्तमान में हिंदी विश्व की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। उन्होंने अपने शोध पत्र विश्व में भाषाओं की रैंकिंग करने वाली अमेरिकी संस्था एथ्नोलोग को भेजे हैं।जबकि एथ्नोलोग संस्था हिंदी को विश्व में तीसरे स्थान पर रखती है।

मूल रूप से पौड़ी जिले के रहने वाले डॉ. जयंती ने बताया, हिंदी भाषा की रैकिंग के संबंध में साल 2005 में उन्होंने एथ्नोलोग को अपनी आपत्ति दर्ज कराई थी। इसके साथ ही उन्होंने अपने शोध की प्रति भी भेजी थी। उस दौरान एथ्नोलोग के तत्कालीन संपादक पॉल लेविस ने 15 वें संस्करण के प्रकाशन का कार्य पूरा होने की बात कहकर अगले संस्करण में प्रकाशित करने की बात कही थी। लेकिन वह नहीं हो पाया। वह हर दो साल में अपने शोध पत्रों का नवीनतम संशोधित संस्करण एथ्नोलोग को जारी करते हैं। डॉ. जयंती ने बताया उन्होंने अपने शोध की प्रामाणिकता सिद्ध करने के लिए 30 चरणों में परीक्षण किया। जिसमें शोध पर विश्वविद्यालयों में विद्वानों के विचार-विमर्श, विशिष्ट संगोष्ठियों में
परीक्षण, भाषा प्राधिकारियों का परीक्षण, भाषाविदों एवं हिंदी के विद्वानों के विचार-अभिमत आमंत्रित करके शोध की सत्यता का पता लगाया गया। इन सभी चरणों में यह शोध प्रामाणिक सिद्ध हुई है। इसी आधार पर भारत सरकार के वित्त मंत्रालय ने सभी बैंकों, बीमा कंपनियों एवं वित्तीय संस्थाओं को निर्देश देते हुए सभी हिंदी कार्यशालाओं में इस शोध को अनिवार्य रूप से पढ़ाने और गृह पत्रिकाओं में इसे प्रकाशित करने को कहा।

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देहरादून के रायपुर में रहने वाले डॉ. जयंती प्रसाद नौटियाल यूनियन बैंक ऑफ इंडिया से उप महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। अंतरराष्ट्रीय राजनीति और मंचों पर अपना दबदबा रखने वाले अमेरिका में हिंदी को विरासत भाषा का दर्जा प्राप्त है और सौ विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती है। छुट्टियों में चलने वाली विशेष कक्षाओं में भारतीय मूल के अलावा अमेरिकी बच्चे भी हिंदी पढ़ते हैं। कुछ बच्चे तो बॉलीवुड फिल्में देखने के लिए हिंदी पढ़ते हैं। संपूर्ण विश्व में हिंदी बोलने या जानने वालों की संख्या 18 फीसदी है। वहीं, अमेरिका में 22,12,415 लोग हिंदी बोलते और जानते हैं। फिर भी अमेरिकी सरकार हिंदी को बढ़ावा देने के लिए हिंदी कार्यक्रम चलाती है। अमेरिकी सरकार के शिक्षा विभाग में हिंदी कार्यक्रम के निदेशक बताते हैं कि अमेरिका में हिंदी को विरासत की भाषा का दर्जा प्राप्त है और सौ विश्वविद्यालयों में हिंदी शिक्षा की व्यवस्था है। हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए युवा हिंदी संस्थानम और हिंदी संगम फाउंडेशन की स्थापना की है। इसके जरिये छुट्टियों में
अलग कक्षाएं भी चलाई जाती हैं। वह बताते हैं कि इस दौरान वे छात्रों को केवल भाषा का ही ज्ञान नहीं देते, बल्कि उन्हें भारत की विरासत के बारे में भी जानकारी देते हैं। अमेरिका में हिंदी विरासत भाषा, सौ विश्वविद्यालयों में हो रही पढ़ाई. लेखक के अपने विचार हैं।

( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )

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