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सालम क्रांति (Salam revolution) में दो सपूतों ने दिया बलिदान

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सालम क्रांति (Salam revolution) में दो सपूतों ने दिया बलिदान

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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

उत्तराखंड के सांस्कृतिक महत्व से प्रभावित होकर जहां देश के अनेक धर्मानुयाइयों ने यहां की यात्रा कर देश विदेश में यहां की धार्मिक मान्यताओं को प्रतिष्ठित किया वहीं इसी धरा पर जन्म लेकर अनेक सपूतों ने भारत माता की रक्षा के लिए अपने को समर्पित किया। उन्हीं वीर सपूतों में से एक नाम है राम सिंह धौनी। उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिलांतर्गत तल्ला सालम के ग्राम बिनौला के एक सामान्य परिवार में हिम्मत सिंह धौनी व कुंती देवी के घर एक बालक ने 24 फरवरी 1983 में जन्म लिया, जिसका नाम राम सिंह धौनी रखा गया। जो कालांतर में जयङ्क्षहद का प्रणेता व स्वतंत्रता आंदोलन का अमर सेनानी बना। बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के चलते उन्हें सालम के पहले स्नातक होने का गौरव हासिल था।

उन्होंने देश की आजादी के आंदोलन के चलते सरकारी नौकरी भी ठुकरा दी थी। राम सिंह धौनी हाईस्कूल की पढ़ाई के समय एकबार स्वामी सत्यदेव महाराज के संपर्क में आए। हाईस्कूल उत्तीर्ण करने पर उनके माता-पिता चाहते थे कि बेटा कोई रोजगार प्राप्त कर पारिवारिक जिम्मेदारियों का निर्वहन करे, किंतु धौनी के मन में समाज सुधार व देश सेवा की धुन पैदा हो गई। कुशाग्र बुद्धि के इस बालक ने मिडिल परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की और फिर इलाहाबाद के क्रिश्चियन कालेज से स्नातक डिग्री भी प्रथम श्रेणी में हासिल की। इससे धौनी जी को सालम क्षेत्र का प्रथम स्नातक होने का गौरव प्राप्त हुआ।

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प्रयाग में शिक्षा ग्रहण करते समय से ही धौनी जी झुकाव स्वतंत्रता आंदोलन की ओर हुआ तथा होम रूल लीग के सदस्य बन गए। बीए की डिग्री लेने के बाद उनकी कुशाग्र बुद्धि को देखते हुए उन्हें ब्रिटिश सरकार तत्कालीन समय में नायब तहसीलदार बनाना चाहती थी, लेकिन उन्होंने सरकारी पद को ठुकरा दिया। इसके बाद राम सिंह धौनी जयपुर में एक विद्यालय में प्रधानाध्यापक बने। भारत माता को आजाद देखने का सपना साकार करने के लिए उन्हें नौकरी रास नहीं आयी और वह वापस अल्मोड़ा लौट आए। उन्होंने जिला कांग्रेस कमेटी के महामंत्री का दायित्व भी निभाया तथा बाद में जिला परिषद के पहले अध्यक्ष निर्वाचित हुए। जिला परिषद अध्यक्ष के रूप में उन्होंने जनता की जरूरतों के अनुसार कई प्राथमिक विद्यालय व औषधालय खुलवाए। उन्होंने 1921 में सर्वप्रथम जयङ्क्षहद का उद्बोधन किया। वह साथियों को आजादी के आंदोलन में भाग लेने के लिए सदैव प्रेरित करते रहे और इसके लिए जिसे भी पत्र लिखते, तो उसमें सबसे ऊपर जयङ्क्षहद अवश्य लिखते थे। इस क्षेत्र के स्वतंत्रता सेनानी नर सिंह और टीका सिंह ने अग्रेजो से लड़ते हुए 25 अगस्त 1942 को इस स्थान पर बलिदान दिया था। उनकी बरसी पर हर साल धामदेव में यह दिवस मनाया जाता है।

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सालम के शहीद नर सिंह और टीका सिंह पाठ्यक्रम में होंगे शामिल, शिक्षा मंत्री ने किया मूर्ति का अनावरण जैंती तहसील के धामदेव में सालम क्रांति के शहीदों को याद किया गया। सालम क्रांति दिवस के मौके पर चिकित्सा शिक्षा मंत्री और जिले के प्रभारी मंत्री ने धामदेव में शहीद स्मारक पर पुष्प चक्र अर्पित कर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की। वहीं मुख्यमंत्री की घोषणा के तहत 45.71 लाख रुपए की लागत से बने शहीद स्मारक का लोकार्पण व शहीद नर सिंह व टीका सिंह की मूर्ति का अनावरण किया। 1930 में सालम के दुर्गादत्त पांडे शास्त्री जब बनारस से संस्कृत की पढ़ाई कर घर लौट आये तो उन्होंने धौनी का नेतृत्व संभाल लिया और राष्ट्रीय जन जागरण के काम में जुट गये। पुभाऊं गांव में शास्त्री जी भाषण देते समय पुलिस ने गिरफ्तार कर अल्मोड़ा कारागार में भेज दिया था। जेल से रिहा होने के बाद वे पुनः रेवाधर पांडे, प्रताप सिंह बोरा, मानसिंह, मर्चराम, जमन सिंह नेगी व मानसिंह धानक के साथ स्वराज्य प्राप्ति के अभियान में सक्रिय हो गये।1938 में सालम के एक और क्रांतिकारी रामसिंह आजाद भी स्वराज्य आंदोलन में सक्रिय हो गये।

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1941 में महात्मा गांधी के सविनय अवज्ञा आंदोलन का असर सालम में भी पड़ा कई जगहों पर सत्याग्रहों का दौर चला जिसमें यहां के दो दर्जन के करीब कांग्रेसी कार्यकताओं को गिरफ्तार कर उन्हें अल्मोड़ा जेल भेज दिया गया। सालम के प्रवेश द्वार शहरफाटक में 23 जून 1942 को मण्डल कांग्रेस के तत्वाधान में एक बड़ी सभा आयोजित की गयी। जिसमें हर गोविन्द पंत ने झण्डा फहराया। 1 अगस्त 1942 को तिलक जयन्ती पर सालम के 11 जगहों पर झण्डा फहराने का निर्णय किया। मुम्बई मेंअखिल भारतीय कांग्रेस कार्य समिति के अधिवेशन में च्भारत छोड़ो और करो या मरो का प्रस्ताव पास होने के बाद 9 अगस्त की सुबह ही महात्मा गांधी व गोविन्द बल्लभ पंत की गिरफ्तारी का असर कुमाऊं में भी पड़ा कई नेताओं व कार्यकर्ताओं की धर पकड़ हुई। सालम में भी 11 अगस्त को पटवारी दल सांगण गांव में रामसिंह आजाद के घर पंहुचा जहां बड़ी संख्या में कौमी दल के स्वयंसेवक मौजूद थे। रामसिंह आजाद शौच के बहाने से फरार हो गये।

19 अगस्त को स्वयंसेवकों के सचल दल की जब नौगांव में आगामी कार्यक्रमों की रूप रेखा तय की जा रही थी तो प्रशासन के पुलिस बल ने गांव को चारों तरफ से घेरे दिया और बैठक में शामिल 14 कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करलिया। पुलिस बल की गिरफ्त इन कार्यकर्ताओं के आजादी के गीत रात के सन्नाटे को चीरते हुए पहाड़ियों से टकरा रहे थे। गांवों में खबर फैलते ही लोग रात में ही एकत्रित हो गये। भीड़ के तेवर देखकर पुलिस का अमला बुरी तरह घबरा गया। गिरफ्तार स्वयंसेवकों को एक ओर बैठाकर जनता ने पुलिस बल को ललकारते हुए इन स्वयंसेवकों को छोड़ने को कहा। 25 अगस्त की सुबह से ही आसपास के दर्जनों गांवों की जनता तिरंगे और ढोल बाजों के साथ देशप्रेम के नारे लगाते हुए धामदेव के तप्पड़ में एकत्रित होने लगी।

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कुछ ही देर बाद सूचना मिली कि गोरों की फौज पूरी शक्तिबल के साथ थुवासिमल पहुंच गयी है जिसे कुमाऊं कमिश्नर ओर से सालम की बगावत का सख्ती से दमन करने के आदेश मिले हैं। एक ओर गोरो की फौज तो दूसरी तरफ आजादी के रणबांकुरे। पत्थरों की मार और गोलियों की धांय-धांय से चारों ओर हाहाकार  मचने लगा। दो उत्साही नौजवान चैकुना गांव का नर सिंह धानक तथा काण्डे गांव का टीका सिंह कन्याल पहाड़ी की ओट से फौज की पोजीशन देखकर पत्थरों की मार करने का निर्देश देने में लगे थे तभी गोरों की फौज की तरफ से एक गोली नर सिंह धानक के पेट में जा लगी और वह वहीं पर शहीद हो गये। गोरों की फौज के साथ सालम के रणबांकुरों का संघर्ष चल ही रहा था कि कुछ ही अन्तराल में एक गोली टीका सिंह कन्याल को भी लगी और वह गंभीर रूप से घायल हो गये। जिनकी अगले दिन अल्मोड़ा के अस्पताल में मृत्यु हो गयी। शाम होने तक आजादी के लिए किया गया यह अभूतपूर्व संघर्ष धीरे-धीरे समाप्त हो गया। बारदात के समय पकड़ गये कौमी सेवादल के कार्यकर्ताओं की रायफल के बटों से बुरी तरह पिटाई कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

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सालम के इस गोलीकाण्ड में दो लोगों के शहीद होने के साथ ही 200 से ज्यादा लोगों को चोटें आयी थी। गिरफ्तार किये गये तमाम क्रांतिकारियों में प्रताप सिंह भी शामिल थे। पुलिस जब उन्हें अपने साथ जेल ले जा रही थी स्थानीय जनता ने भारत माता की जय, शहीदों की जय के नारों के साथ ब्रिटिश फौज का मुकाबला किया। ब्रिटिश फौज ने गोलीबारी की, भीड़ तितरबितर होने लगी। इसी दौरान गोली लगने से चौगुना के नरसिंह धानक और कांडे के टीका सिंह कन्याल इस जनयुद्ध में शहीद हो गए। इस सैनिक दमन का कोई विशेष प्रभाव नहीं हुआ लेकिन ब्रिटिश हुकूमत को अपनी हनक बरकरार रखने का भ्रम बना रहा। इस कुर्बानी से आजादी की लड़ाई और तेज हो गई। सालम के संघर्ष को जनक्रांति कहा जाने लगा। अल्मोड़ा जनपद में अल्मोड़ा, चनौदा, द्वाराहाट, चौखुटिया मे भी व्यापक संघर्ष हुआ।

( लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )

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