शिक्षा निदेशालय के अधिकारियों की मनमर्जी के चलते नहीं हो पा रही 300 शिक्षकों की पहाड़ वापसी
आचार संहिता की आड़ लेकर लटका रहे मामला
पर्वतीय जनपदों में चरमराई शिक्षा व्यवस्था की स्थिति किसी से छिपी नही हैं। फिर भी शिक्षा विभाग के अधिकारी अपने चहेते शिक्षकों को मैदानी जनपदों और सुगम स्थानों में बनाये रखने के लिए विभागीय मंत्री और शासन के आदेशों को भी अपनी मर्जी के अनुसार ही मानते हैं।
मालूम हो कि कॉंग्रेस सरकार में पर्वतीय जनपदों से 500 प्राथमिक शिक्षकों को नियम विरुद्ध मैदानी जनपदों में अटैच किया गया था। इनकी पहाड़ वापसी का मामला लम्बे समय से सुर्खियों में बना हुआ है।
इस मामले में शासन द्वारा उच्च न्यायालय नैनीताल के आदेश 26- 10 -2018 का अनुपालन करते हुए बीती 27 सितंबर 2019 को 300 शिक्षकों की मूल संवर्ग/ जनपद वापसी का आदेश जारी हो गया था। अब उत्तराखंड में पंचायत चुनाव भी सकुशल सम्पन्न हो गए हैं। अब आचार संहिता की केवल औपचारिकता मात्र शेष रह गयी हैं। शासन द्वारा 27 सितम्बर को शिक्षकों की पहाड़ वापसी का आदेश जारी कर शिक्षा निदेशालय को कड़ाई से आदेश का पालन करने के लिए निर्देशित किया गया था। राज्य निर्वाचन आयोग के दिशा निर्देशों के अनुसार स्थानीय निकायों शहरी क्षेत्रों और हरिद्वार जनपद में आचार संहिता लागू नहीं की गई थी।
शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे के निर्देशों के बाद सचिव शिक्षा आर मीनाक्षी सुंदरम ने 27 सितंबर 2019 को पंचायत चुनाव की आचार संहिता के मद्देनजर रखते हुए इन सभी शिक्षकों को कार्यमुक्त करने के लिए कहा, लेकिन अधिकारियों ने कह दिया कि आयोग से इन शिक्षकों के मामले में अनुमति नहीं मिल पाई। लेकिन सवाल यह है कि जब हरिद्वार जनपद में आचार संहिता लागू ही नहीं होती है तो फिर इन शिक्षकों की पहाड़ वापसी क्यों नहीं की जा रही है?
सूत्रों के अनुसार पहाड़ वापस जाने वाले शिक्षकों की अधिकतर संख्या देहरादून नगर क्षेत्रों और हरिद्वार जनपद में ही है, लेकिन फिर भी निदेशालय के अधिकारियों की मनमर्जी के चलते अभी तक शासन और कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया गया। यूं तो समय रहते निर्वाचन आयोग से अनुमति ली जा सकती थी, लेकिन निदेशालय स्तर पर की जा रही लापरवाही के चलते मामले को अब तक लटकाया हुआ है। प्रदेश में आचार संहिता के चलते ही अन्य विभागों में कई जरूरी कार्य भी निर्वाचन आयोग की समय से अनुमति लेकर किये गए हैं। जिनमे समूह ग के पदों पर भर्ती की अनुमति भी हो गयी। इससे लगता हैं कि ये मामला निदेशालय स्तर से जानबूझकर लटकाया जा रहा है। इससे राज्य में अधिकारियों की मनमानी का पता चलता है कि अधिकारी अपनी मर्जी से ही आदेशों का पालन करते हैं। अभी हाल ही में इसी आचार संहिता के दौरान ही शिक्षा विभाग द्वारा कई कार्य किये गए। जिनमें जनपद हरिद्वार के प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी ब्रह्मपाल सैनी को देहरादून में शिक्षा निदेशालय में अटैच किया गया है और आनन्द भारद्वाज को अपने ही गृह जनपद में मुख्य शिक्षा अधिकारी का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है और साथ ही जनपद हरिद्वार और देहरादून में कई स्थानान्तरण आदेश भी हुए हैं, लेकिन केवल इसी मामले को आचार संहिता की आड़ लेकर चहेते शिक्षकों को बचाने का प्रयास किया जा रहा है।
शिक्षा का अधिकार कानून के तहत प्रयेक विधालय में 2 शिक्षक अनिवार्य होने चाहिए, परन्तु जनपद पौड़ी, अल्मोड़ा, बागेश्वर, पिथौरागढ़ में अनेक विद्यालय एकल शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इन्ही जनपदों से ही इन शिक्षको को सुगम तथा मैदानी जनपदों में नियम विरुद्ध अटैच किया गया था। सरकार द्वारा जहां पर शिक्षा में गुणवत्ता लाने के लिए प्रशिक्षण के नाम पर शिक्षकों की ट्रेनिंग में करोड़ों खर्च किये जाते हैं, वहीं एकल शिक्षक के भरोसे सारे कार्य मिड डे मील से लेकर तरह तरह के दिवस मनाने में और विभागीय प्रशिक्षण में ही पूरा वर्ष यूं ही निकल जाता है। ऐसे में शिक्षा में गुणवत्ता की बात करना बेमानी होगी।
शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे के अधिकारियों को दिए गए कड़े निर्देश इन अधिकारियों की मर्जी के आगे मजाक बन कर रह गए हैं। अब तो लगने लगा है कि आचार संहिता खत्म होने के बाद भी पहाड़ के बच्चे यूं ही शिक्षकों की बाट जोहते रहेंगे?