शादी के बाद महिलाएं मंगलसूत्र (Mangalsutra) क्यों पहनती हैं
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
भारतीय महिलाओं के लिए मंगलसू का काफी महत्व है क्योंकि इसे सुहाग की निशानी माना जाता है। मंगलसूत्र में काले मोती में पिरोया होता है और इसे अखंड सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। हिंदू रीति-रिवाजों में शादी के वक्त पति पत्नी के गले में मंगलसूत्र पहनाता है, जिसके बाद वह उसके साथ 7 जन्मों के लिए बंध जाती हैं। मगर, क्या आप जानती हैं कि सिर्फ धार्मिक ही नहीं बल्कि सेहत के लिए लिहाज से भी मंगलसूत्र का गहरा कनैक्शन है भारतीय शादियों की रस्में काफी अलग होती हैं। यह राज्य, जाति और क्षेत्र अनुसार अलग-अलग होती हैं। शादी की हर रस्मों का मतलब भी अलग होता है। उत्तराखंड दो भागों में बटा हुआ है। इसमें गढ़वाल और कुमाऊं शामिल हैं। भारत के सबसे खूबसूरत राज्य
उत्तराखंड की शादियों की बात ही अलग होती है।मंगलसूत्र, जिसका शाब्दिक अर्थ है “पवित्र धागा” भारतीय दुल्हन के आभूषण और शादी की रस्मों का एक महत्वपूर्ण अंग है।
देश के लगभग हर समुदाय और क्षेत्र में मंगलसूत्र का अपना संस्करण है, शायद एक अलग नाम, आकार या डिज़ाइन के साथ। मंगलसूत्रों के इन असंख्य रूपों को एकजुट करना सोने का बहुतों को लाभ पहुँचाने वाला इस्तेमाल है, यह एक ऐसी परंपरा है जिसे क्षेत्रीय सीमाओं से परे शुभ माना जाता है। भारत में मंगलसूत्र की पवित्रता भाषा, संस्कृति और यहाँ तक कि धर्म की सभी सीमाओं से परे है। हिन्दू धर्म में शादी के बाद महिलाएं मंगलसूत्र पहनती हैं और ये महिलाओं के श्रृंगार का ही एक पार्ट है. हिन्दू धर्म में शादी के बाद मंगलसूत्र पहनना शादीशुदी होने का प्रतीक भी माना जाता है। दुल्हन को मंगलसूत्र पहनाना शादी की प्रमुख रस्मों में से एक है।
धर्म शास्त्रों के अनुसार, मंगलसूत्र को एक महिला के लिए सुहाग की निशानी माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि शादी के बाद मंगलसूत्र पहनने से पति की आयु लंबी बनी रहती है। शादी के बाद पति-पत्नी के रिश्तों को जोड़कर रखने वाला धागा ही मंगलसूत्र होता है, इसलिए हिंदू धर्म में मंगलसूत्र पहनना बेहद ही शुभ माना जाता है। हिंदू धर्म में मान्यता है कि शादी के बाद पति की लंबी उम्र के लिए महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं। इसमें मंगलसूत्र का सबसे ज्यादा महत्व रखता है। मंगलसूत्र महिलाएं के सुहाग को बुरी नजर से बचाता है। मंगलसूत्र का खोना, टूटना अपशगुन माना जाता है। मंगलसूत्र सदा सुहागन होने की निशानी है और दुल्हन का ये मुख्य आभूषण भी होता है। प्राचीन समय से ही मंगलसूत्र की बड़ी महिमा बताई गई है। शादी के बाद भगवान शिव और पार्वती सुहाग की रक्षा करते हैं। मंगलसूत्र कई जगहों पर पीले धागे से बनता है। मंगलसूत्र में पीले रंग का होना भी जरूरी है। पीले धागे में काले रंग के मोती पिरोए जाते हैं।
कहा जाता है कि काला रंग शनि देवता का प्रतीक होता है। ऐसे में काले मोती महिलाओं और उनके सुहाग को बुरी नजर से बचाते हैं। पीला रंग बृहस्पति ग्रह का प्रतीक होता है जो शादी को सफल बनाने में मदद करता है। मंगलसूत्र का पीला भाग पार्वती माता और काला भाग भगवान शिव का प्रतीक होता है। भारतीय वैवाहिक परंपराएँ सोने के गहनों के भारी उपयोग को दर्शाती हैं, और यही बात मंगलसूत्र के लिए भी सच है। सोना सुरक्षा, समृद्धि, दीर्घायु और स्थिरता का प्रतीक है,और सोनेकामंगलसूत्र भारतीय दुल्हन की पोशाकका एक अनिवार्य हिस्सा है। आजकल दुल्हनें अक्सर इसे मॉडर्न ट्विस्ट देते हुए, अपनी पसंद के हिसाब से कस्टमाइज़ करा रही हैं। इसका आकार, प्रकार और पद्धति समुदायों के बीच भिन्न हो सकती है, लेकिन सीमाओं और भाषाओं से इतर यह प्रेम और पवित्र मिलन के प्रतीक के रूप में महत्व रखता है।
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सदियों से ही महिलाएं अपने सौंदर्य को बढ़ाने के लिए तरह तरह के आभूषणों को धारण करती रहीं हैं। इन आभूषणों को लेकर महिलाओं में हमेशा एक आकर्षण रहा है जो आज भी बरकरार है। महिलाएं जो आभूषण अपनी खूबसूरती में चार चांद लगाने के लिए पहनती हैं उनका धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों तरह से काफी महत्व माना जाता है भारतीय सनातन परंपरा में जन्म से लेकर मृत्यु तक के बीच 16 संस्कारों का विधान है। इन 16 संस्कारों में विवाह संस्कार सबसे खास बना रहा है। वैदिक परंपराओं का विकास भले ही उत्तर भारत में हुआ, लेकिन उनका
जन्म दक्षिण भारत में ही माना जाता है। हमारी उत्तर भारतीय विवाह परंपरा की वैदिक रीतियां आधुनिक समय में, मंगलसूत्र बदलते स्वाद और जीवनशैली को प्रतिबिंबित करने के लिए विकसित हुआ है।
आज दुल्हनें ऐसे डिज़ाइन की तलाश में हैं जो समकालीन सौंदर्यशास्त्र के साथ परंपरा का सहज मिश्रण हो। तनिष्क के समकालीन मंगलसूत्र डिज़ाइन, जिसमें चिकनी चेन और अभिनव पेंडेंट शामिल हैं, आधुनिक महिला की जरूरतों को पूरा करते हैं जो विरासत और शैली दोनों को महत्व देते हैं। जबकि पारंपरिक रूप से विवाहित महिलाओं द्वारा पहना जाता है, मंगलसूत्र अपनी प्रतीकात्मक भूमिका से आगे निकल गया है और पीढ़ियों से चली आ रही एक पोषित विरासत बन गया है। मंगलसूत्र से जुड़ा भावनात्मक मूल्य इसे प्यार और प्रतिबद्धता की विरासत को आगे बढ़ाते हुए, माताओं, बेटियों और पोतियों के बीच एक ठोस संबंध में बदल देता है।
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वैज्ञानिक दृष्टि से नियमित रूप से मंगलसूत्र पहनने से शरीर का रक्त संचार बेहतर होता है। इसके अलावा, मंगल सूत्र के काले मोतियों को नकारात्मक ऊर्जा को दूर रखने के लिए जाना जाता है, और सुनहरा पेंडेंट सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाता है जिससे दोनों भागीदारों के लिए वैवाहिक जीवन खुशहाल हो जाता है। व्यक्तित्व का आकर्षण बढ़ाती है जूलरी। हम अपने मिजाज के मुताबिक जूलरी चुनते हैं, पर कुछ खास जूलरी पीस ऐसे हैं, जिन्हें शुभता का प्रतीक माना जाता है। शादी के बाद ही उन्हें पहनना शुभ कहा गया है। ऐसा ही है मंगलसूत्र के साथ, जिसे सुखमय वैवाहिक जीवन की कामना से जोड़कर देखा जाता है। भारतीय विवाहों में मंगलसूत्र पहनाने की रस्म बेहद खास मानी जाती है। इसके बिना शादी ही अधूरी मानी गई है। दक्षिण भारत में मंगलसूत्र को ताली कहा जाता है। हल्दी को शुभता का प्रतीक माना जाता है, इसलिए हल्दी से धागे को पीला करने के बाद उसमें सोने के दो लॉकेट पिरोए जाते हैं। उनमें सामान्यत: विष्णु, शिव, तुलसी और श्री की छवि अंकित रहती है।
विवाह के दौरान दूल्हा दुल्हन के गले में मंगलसूत्र पहनाता है।
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शादी के 16 दिन बाद ये लॉकेट सोने की चेन में काले मोतियों के साथ पिरोकर मंगलसूत्र को गले में डाला जाता है। यह माना जाता है कि मंगलसूत्र के काले मोती परिवार को बुरी ताकतों से बचाते हैं। दक्षिण भारतीय दुल्हन के मंगलसूत्र की ही भांति महाराष्ट्रीयन दुल्हन के मंगलसूत्र में दोहरे लॉकेट होना जरूरी है। ये दोहरे लॉकेट दो परिवारों के मिलन को प्रतिबिंबित करते हैं। इंडो-वेस्टर्न शादियों की बढ़ती संख्या के साथ, दुनिया के विभिन्न कोनों से लोग शाही भारतीय शादी संस्कृति के बारे में अधिक जान रहे हैं, और मंगलसूत्र बहुत पहले से दुल्हनों के लिए आवश्यक आभूषण वस्तुओं में से एक रहा है। लेकिन, और भी बहुत सी बातें हैं जो ज्यादातर लोग नहीं जानते हैं, खासकर मंगलसूत्र के विभिन्न प्रकारों के बारे में, जो भारत के प्रांतों के साथ-साथ बदलते रहते हैं, मंगलसूत्र के डिजाइन, उससे जुड़े रीति-रिवाज आदि।
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शादी करने के तरीके को लेकर आज भला जमाना बदल गया है। लेकिन रस्म-रिवाज आज भी पहले की तरह ही चल रही है। फेरा, कन्यादान, सिंदूरदान और मंगलसूत्र पहनाने की रस्म के साथ ही कोई भी हिंदू विवाह संपन्न माना जाता है। वहीं भारत में शादी दो लोगों के बीच नहीं बल्कि दो परिवारों के बीच होती है। शादी में दो लोग ही नहीं दो परिवारों का मिलना होता है और इस रिश्ते को सभी को बखूबी निभाना होता है।
(लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं)