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देवभूमि (Devbhoomi) में सुरक्षित नहीं हैं महिलाएं, नहीं सुधरे हाल

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देवभूमि (Devbhoomi) में सुरक्षित नहीं हैं महिलाएं, नहीं सुधरे हाल

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

उत्तराखंड की सरकार अपनी यूसीसी कानून लाने जैसी उपलब्धियों रही हो जिसमें महिलाओं को अधिकारों से सशक्त बनाने का दावा किया जा रहा है लेकिन बेटी पढ़ाओ और बेटी बचाओ का नारा लगाने वाली भाजपा सूबे में बेटियों की हिफाजत करने में पूरी तरह से नाकाम साबित हो रही है। बीते कल जब सूबे की सरकार विधानसभा में कानून और व्यवस्था के सवाल पर चर्चा कर रही थी उस समय विधानसभा भवन से चंद कदमों की दूरी पर एक किशोरी द्वारा एक फ्लैट में फांसी लगाने को लेकर हंगामा चल रहा था।

कानून व्यवस्था को लेकर सरकार से दो-दो हाथ कर रहे विपक्ष के सदस्यों को जब यह जानकारी मिली कि फ्लैट में काम करने के लिए नौकरी पर रखी गई एक 15 वर्षीय किशोरी ने उत्पीड़न से तंग आकर आत्महत्या कर ली है तो समूचा विपक्ष सदन की कार्यवाही का बहिष्कार कर घटनास्थल पर पहुंच गया। आरोपी परिवार पर जबरन काम कराने और किशोरी से मारपीट करने का आरोप है। युवती के पोस्टमार्टम में हालांकि पुलिस द्वारा दुष्कर्म जैसी बातों के साबित न होने की बात कही जा रही है लेकिन 15 साल की लड़की से बाल श्रम कराने मारपीट करने के साथ ही पोक्सो एक्ट में भी मुकदमा दर्ज किया गया है। धर्मपुर क्षेत्र के विधायक ने बाल श्रम मामले में पुलिस को लताड़ लगाते हुए कहा कि आखिर ऐसा हो कैसे रहा है। भले ही जनप्रतिनिधि आंखें मूंदे बैठे रहे लेकिन दून के तमाम आवासीय फ्लैटो में बड़ी संख्या में नाबालिक लड़कियों से मजदूरी कराई जा रही है। अब जब एक नाबालिक लड़की ने अपने उत्पीड़न से तंग आकर इस फ्लैट में जहां वह काम करती थी
अपनी जान दे दी गई या उसकी जान ले ली गई पुलिस और नेताओं को अपने कर्तव्यों की याद आ रही है।

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प्रदेश की कानून और व्यवस्था का क्या हाल है यह किसी से छुपा नहीं है।राजधानी दून में दिन दहाड़े ज्वेलरी शोरूम में करोड़ोंकी लूट से लेकर हत्या और आत्महत्याओं के मामले इसकी गवाही दे रहे हैं। लेकिन अगर महिलाओं की सुरक्षा की बात करें तो स्थिति अत्यंत ही खराब है। अंकिता हत्याकांड से लेकर उत्तरकाशी के एक होमस्टे में युवती की मौत से लेकर बीते दो- चार दिन पूर्व प्रकाश में आए सहसपुर क्षेत्र में एक नाबालिक के साथ दुराचार के मामले तक तमाम घटनाएं यह बताती है कि स्थिति अत्यंत ही गंभीर हो चली है। लव जेहाद की घटनाओं को लेकर अभी बीते दिनों हमने उत्तरकाशी और चमोली में बड़े-बड़े जन आंदोलनों को देखा था। उत्तरकाशी और पुरोला के लोग शासन प्रशासन के खिलाफ सड़कों पर उतर आए थे। लेकिन राज्य में महिलाओं और लड़कियों के उत्पीड़न तथा हिंसा और हत्या तथा आत्महत्याओं के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। जो सूबे की कानून व्यवस्था पर बड़े सवाल खड़े करते हैं।

तमाम कानून और दावों के बीच हालात बिगड़ते ही जा रहे हैं। पुलिस प्रशासन और सरकार ऐसी घटनाओं को रोकने में नाकाम साबित हो रही है। देवभूमि उत्तराखंड में महिलाओं के खिलाफ हिंसा और अपराध के आंकड़े लगातार बढ़ते जा रहे हैं।

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आंकड़े बताते हैं कि हर साल महिलाओं पर अपराधों की संख्या में इजाफा हो रहा है। बलात्कार से लेकर छेड़खानी और घरेलू हिंसा के मामले उत्तराखंड में लगातार बढ़ रहे हैं। उत्तराखंड पुलिस के आंकड़े ही इस बात की तस्दीक कर रहे हैं और बताते हैं कि राज्य में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की दर लगातार बढ़ रही है। हालंकि, सरकार और पुलिस महकमा दावे जरूर कर रहा है, लेकिन आंकड़ों के पीछे जो भयानक मंजर है, वो तो जस का तस है। वहीं, महिलाओं पर हो रही हिंसा पर आवाज उठाने वाली समाजसेवी भी कहती हैं,”आज दूरस्थ क्षेत्रों में महिलाओं के साथ लगातार अत्याचार हो रहा है, लेकिन महिलाओं की आवाज न तो कानून सुनता है और न कानून के रखवाले। ऐसे में वो खुद आगे आकर पीड़ित महिलाओं की आवाज उठा रही हैं। कुल मिलाकर तीन साल में महिलाओं से उत्पीड़न के 6000 मामले सामने आए हैं। “जिसे सरकार को गंभीरता से चिंतन करने की जरूरत है तथा इस तरह के अपराधों को अंजाम देने वालों पर सख्त कार्रवाई किए जाने की जरूरत है। जिससे की राज्य बनाने के सुनहरे सपने को साकार किया जा सके।

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( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )

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