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यमकेश्वर क्षेत्र में रहस्मयी वन्य जीव का आतंक। गौशालाओं की छतों को तोड़कर मार रहा मवेशी

admin
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नवीन बरमोला

क्या आप सोच सकते हैं कि आप अपने पालतू पशुओं को रात्रि में गौशाला में बांधकर ताला बंद कर दें और वह सुरक्षित रह जाएं। यदि आप ऐसा सोचते हैं तो फिर आप गलत सोच रहे हैं। पौड़ी गढ़वाल के यमकेश्वर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत पिछले करीब छह महीनों से एक रहस्यमयी जानवर ने आतंक मचा रखा है। जिससे क्षेत्रवासी की रातों की नींद उड़ी हुई है, लेकिन वन महकमा की ओर से अभी तक कोई ठोस अभियान शुरू नहीं किया जा सका।
जी हां! हम बात कर रहे हैं यमकेश्वर विधानसभा क्षेत्र के गांवों की। यहां विगत पांच सालों से सक्रिय रहस्यमयी जानवर आज तक कई गौशालाओं की छतों व पठालों को तोड़कर सैकड़ों मवेशियों को निवाला बना चुका है। जिस कारण यमकेस्वर के पशु पालकों में भय का माहौल है।

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इस खूंखार जानवर की खासियत यह है कि यह आज तक कोई नहीं देख पाया और न ही पकड़ में आ सका। यही नहीं, इस जानवर की एक और चालाकी यह है कि यह जिस जगह या गौशाला पर एक बार आक्रमण करता है, अगला आक्रमण २० से 25 किमी दूर जाकर कर रहा है। यही कारण है कि वन विभाग से लेकर शासन प्रशासन अभी तक इसकी पहचान करने में नाकाम साबित हुआ और यह रहस्यमयी बना हुआ है।
इतना ही नहीं, यह जीव इतना चालाक है कि गौशालाओं की छतों/पठालों को बड़ी तेजी व सफाई से तोड़ता है। इस रास्ते कमरे में घुसता है और जानवरों को मारकर फिर इसी रास्ते चंपत हो जाता है। इस दौरान किसी को भी इस वारदात की भनक तक नहीं लगती। क्षेत्रवासियों की समझ में नहीं आ रहा कि आखिर यह कौन सा जानवर है।

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बूंगा के क्षेत्र पंचायत सदस्य एवं सामाजिक कार्यकर्ता सुदेश भट्ट दगड्य़ा कहते हैं कि मैंने ग्रामीणों के साथ मिलकर इस रहस्यमयी जानवर की धरपकड़ व पहचान के लिए क्षेत्र में इस जानवर की आवाजाही वाले संदिग्ध स्थानों पर खोजबीन शुरू की। एक रहस्यमय झोपड़ी हम लोगों ने चार दिन पहले खोजी थी, जिसे क्षेत्र की जनता इस खूंखार जानवर का अड्डा बता रही थी।
सुदेश भट्ट बताते हैं कि लालढांग रेंज के रेंजर को मैंने फोन द्वारा अवगत कराया और इस स्थान पर तत्काल कैमरे लगाकर इसे ट्रैस करने का अनुरोध किया। जिस पर कार्यवाही करते हुए प्रभावित क्षेत्र पंचायत बूंगा व फल्दाकोट की सीमा के मध्य कैमरे लगवा दिए गए हैं।

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भट्ट कहते हैं कि वन विभाग कर्मचारियों की कमी से जूझ रहा है। आलम यह है कि 50 ग्रामसभाओं के पर सिर्फ दो विभागीय कर्मचारी ही तैनात हैं, जो क्षेत्र में हर जगह उपलब्ध हो पाने में असमर्थ हैं। सुदेश भट्ट ने यहां की विकट व दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए सरकार व वन विभाग के उच्चाधिकारियों से अनुरोध किया है कि प्रत्येक ग्रामसभा में क्षेत्र के ही बेरोजगार युवाओं को संविदा पर वन प्रहरी के रूप में नियुक्त किया जाए, ताकि क्षेत्र में रिहायशी इलाकों में जंगली जानवरों के हस्तक्षेप को कम किया जा सके और इस खूंखार व रहस्मयी जानवर को मारने के आदेश जारी किए जाए।
उपरोक्त तस्वीरों को देखकर आप स्वत: ही अंदाजा लगा सकते हैं कि उक्त जानवर कितना खूंखार होगा।
खेती-किसानी पर निर्भर लोगों की आजीविका का साधन इस जानवर की भेंट चढ़ता जा रहा है। आखिर कब तक यह सिलसिला जारी रहेगा?

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देहरादून के एसी कमरों में बैठकर पलायन-पलायन का मल्हार राग गाने वाले लोगों तक आखिर वन्य जीव के ऐसे रहस्यमयी आतंक की खबर क्यों नहीं पहुंच सकी, कई सवाल खड़े करती है। ऐसे जागरूक लोग इस समय यदि इस समस्या पर सवाल उठाएं तो पीडि़त क्षेत्रवासियों की समस्या का समाधान होने में आसानी हो सकती है, लेकिन यह मुद्दा चूंकि एक क्षेत्र विशेष का है, और इसमें संभवत: फायदा नहीं दिख रहा, ऐसे में इस पर चर्चा करने की जहमत नहीं उठाई जा रही।
सवाल यह है कि जब खेती-किसानी पर निर्भर लोगों से उनकी आजीविका का साधन छिनने लगेगा तो वह पलायन करने को विवश होगा।
सवाल यह है कि पिछले करीब छह माह से इस खूंखार जानवर का आतंक होने के बावजूद वन विभाग की तंद्रा क्यों नहीं टूटी? क्षेत्र के विधायक व अन्य प्रतिनिधियों ने आखिर इस वन्य जीव आतंक का संज्ञान लेने की जरूरत क्यों नहीं समझी। अगर समझते तो शायद यह समस्या कब की हल हो चुकी होती।
सवाल यह भी है कि अगर यह खूंखार वन्य जीव कहीं गौशालाओं के बजाय दुर्भाग्य से लोगों के घरों को तोड़कर अंदर घुस जाए तो सोचिए क्या होगा? क्या जिम्मेदार विभाग इस बात का इंतजार तो नहीं कर रहा!
बहरहाल, अब देखना यह है कि वन विभाग, क्षेत्रीय विधायक, प्रतिनिधि व अन्य जिम्मेदार इस समस्या को लेकर क्या कदम उठाते हैं!

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