लूशुन टोडरिया
पापा की पाँचवी पुण्यतिथि 5 फरवरी को मैं उनके द्वारा एक लेख शेयर कर रहा हूँ । मुझे पूर्ण विश्वाश है कि आप आज भी किसी न किसी रूप में मेरा मार्गदर्शन कर रहे हो। मैं शायद आपकी तरह लिख नहीं सकता, बोल नहीं सकता, परन्तु मैं आपकी सोच, संघर्ष और लड़ाई को उस मुकाम तक ले जा जरूर सकता हूं, जिसका आपने सपना देखा था।
राजेन टोडरिया की कलम से
हमारे पुरखों ने बताया कि तलवारों के बिना सिर्फ पत्थरों से भी युद्ध जीते जा सकते हैं। उन्होने बताया कि पुलों के बिना भी बर्फीली नदियां पार की जा सकती हैं। उन्ही के संकल्प ने हमने जाना कि नंगे पैरों से कांटो भरी सख्त जमीन पर महान यात्रायें संभव हैं। हमारे पुरखों ने बताया कि हिम्मत और हुनर हो तो कंदारओं में भी सभ्यतायें फलफूल सकती हैं। आज हमारे पास नदियों पर पुल हैं लेकिन नदियों के वेग पर जीत हासिल करने वाले सीने नहीं हैं , रहने के लिए घर हैं, लेकिन घर बचाने के लिए लड़ने का हौसला नहीं है। चलने के लिए अच्छी सड़कें, जूते और गरम जुराबें हैं पर लंबी यात्राओं के लिए न पैर हैं और न साहस है। पिछले 12 सालों में उत्तराखंड के पहाड़ यदि पराजित हुए हैं तो किसी और से नहीं खुद से पराजित हुए हैं। क्या हम पराजयों के इस सिलसिले को तोड़ना चाहते हैं? क्या हम निहत्थे होकर भी उस युद्ध के लिए तैयार हैं जो एक जाति के रुप में हमारे अस्त्तिव के लिए सबसे ज्यादा जरुरी है।
मात्र लाइक पर क्लिक कर एक निष्क्रय समर्थन न दें कुछ बोलें, केवल बोलें नहीं बल्कि कुछ करें। बारुद की तरह ऐसे भड़कें कि आपकी चिनगारियां बहुत दूर से दिखें भी और बहुत दूर तक सुनी भी जांय।