सत्यपाल नेगी/रुद्रप्रयाग
चमोली जनपद के विकासखंड पोखरी के अंतर्गत नागनाथ पोखरी का एक ऐसा स्कूल, जो अंग्रेजों के जमाने का एकमात्र मिडिल स्कूल हुआ करता था। 8वीं तक की पढ़ाई के लिए पूरे गढ़वाल-रुद्रप्रयाग एवं चमोली के छात्र यहीं पढ़ाई करने आते थे। यह स्कूल ऐतिहासिक स्कूलों में से एक है, लेकिन आज इसकी ऐसी जर्जर हालत है कि सरकारी तंत्र पर सवाल खड़े हो रहे हैं। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि जिस ऐतिहासिक स्कूल को कभी अंग्रेजों ने बसाया था, उसे आज अपने ही उजाड़ रहे हैं।
जी हां! यहां बात हो रही है अंग्रेजों के जमाने के पोखरी ब्लाॅक के नागनाथ पोखरी के एकमात्र स्कूल की। आस-पास के क्षेत्रों के बच्चों को इसी स्कूल में आठवीं तक की शिक्षा हासिल हुई। अब आप कल्पना कीजिए कि उस जमाने मे जब सड़कें नहीं हुआ करती थी, लेकिन क्षेत्रवासी कोसों दूर पैदल चलकर इस स्क्ूल में शिक्षा ग्रहण करने जाते रहे। जब नागनाथ से 8वीं पास करके आगे पढऩा होता था तो तब पौड़ी के कांसखेत में कुछेक किस्मत वालों को ही 10वीं तक की पढ़ाई करने का मौका मिलता था।
आज एक सदी पूर्व 120 साल पुराने इस शिक्षा के मंदिर को खण्डहर देख कर इससे सरोकार रखने वाला प्रत्येक जिम्मेदार नागरिक को ऐतिहासिक धरोहरों को संरक्षित न रख पाने का दुख जरूर होता होगा। सवाल यह है कि इस स्कूल के अगल-बगल नए भवन बना दिए गए हैं, लेकिन इस ऐतिहासिक पुरानी धरोहर को खण्डहर की दशा में अपने हाल पर ही छोड़ दिया गया है?
सरकार और प्रशासन की इस तरह की घोर अनदेखी पर सरकार व जनप्रतिनिधियों पर भी आम जन की ओर से सवाल उठने लाजिमी हैं। होना तो यह चाहिए था कि शिक्षा के इस ऐतिहासिक मंदिर को एक भव्य यादगार स्थल के रूप में संजोया जाता, संरक्षित रखा जाएगा, लेकिन शायद जिम्मेदारों को ऐसे ऐतिहासिक धरोहरों से सरोकार नहीं रह गया है। ऐसे में स्थानीय लोग वर्तमान व अपनी आने वाली पीढिय़ों को यह समझाने से वंचित रह जाएंगे कि हम सभी के दादा, नाना, पिता आदि पूर्वजों ने इतनी दूर जाकर शिक्षा ग्रहण की थी।
लेखक सामाजिक चिंतक होने के नाते उत्तराखण्ड सरकार और चमोली जिला प्रशासन से अपील करते हैं कि इस 1901 में निर्मित इस ऐतिहासिक भवन को शीघ्र ठीक करवाकर पुरानी शैली में ही संजोकर संरक्षित किया जाए। यहां पर एक भव्य आकृति देकर म्यूजियम व पुस्तकालय बनाकर भी इस ऐतिहासिक धरोहर को जिंदा रखा जा सकता है।
बहरहाल, अब देखना यह है कि नागनाथ पोखरी के इस ऐतिहासिक स्कूल की सुध सरकार व प्रशासन आखिर कब तक लेता है!
(लेखक सामाजिक चिंतक हैैं।)