नीरज कंडारी/पोखरी चमोली
आजकल चमोली जिले के साढ़ साथ पूरे पर्वतीय जिलों में धान की कटाई-मड़ाई जोरों पर चल रही है। पोखरी ब्लाक के गुनियाला गाँव में भी धान की मड़ाई चल रही है। वहीं स्थानीय ग्रामीण जंगली जानवरों के आतंक से परेशान हैं काश्तकारों की पकी पकाई फसल वन्य जानवर चौपट कर रहे हैं। ऐसे में किसानों के सामने बड़ी कठिनाइयां आ रही है।
बताते चलें कि इस समय धान की फसल तैयार होकर किसान उसे काटते और मंड़ाई करते हैं, मगर इस साल समय पर बारिश कम होने से फसलों की उपज कम हुई है तो वहीं लगातार जंगली जानवरों के आतंक से हो रहे फसलों की बर्बादी से ग्रामीण मायूस भी हो रहे हैं।
उत्तराखण्ड के पर्वतीय इलाकों में पिछले 15 सालों से बन्दरों व सुअरों का आतंक उस प्रकार बढ़ते जा रहा है कि अब ज्यादातर किसान खेती से मोह त्याग रहे हैं, क्योंकि किसान बड़ी मेहनत करके खेती करते हैं। जैसे ही फसले बढ़ने लगती हैं तो दिन मे बन्दर और रात को जंगली सुअर उसे बर्बाद कर देते हैं। ग्रामीण इनके बचाव के लिए चौकीदारी भी करते हैं, लेकिन उसके बाद भी इन्हें नहीं रोक जा सकता है।
ग्रामीणों का कहना है कि राज्य बनने से पहले तक हम इसी खेती के से पूरे परिवार का भरण पोषण करते थे। साथ ही बच्चों की शिक्षा भी करते थे, किंतु अपना राज्य होने के बाद हालत यह हो गई कि अब मुश्किल से 1-2 महीने का ही अनाज हो पाता है। इसका मुख्य कारण है कि सरकार की किसानों के प्रति कोई गम्भीर नीति व प्लानिंग नही है। कई बार वन विभाग, प्रशासन व प्रतिनिधियों से गुहार लगा चुके हैं, मगर समाधान करने के लिए कोई आगे नहीं आ रहे। यही कारण है कि लोग गाँव व खेती से मोह त्याग कर पलायन करने को मजबूर हैं।
बहरहाल, वन्य जीवों के आतंक से परेशान ग्रामीण खेती छोड़ने को मजबूर हैं। यही कारण है कि उत्तराखंड के पहाड़ों से प्रतिवर्ष पलायन भी जारी है। अब देखना यह है कि ऐसी विकट समस्याओं के समाधान को लेकर प्रदेश सरकार कितनी सरोकार दिखाती है!