भरत गिरी गोसाई
तेजपत्ता एक औषधीय पौधा है जिसका वैज्ञानिक नाम लॉरस नोबिलिस है, जोकि लाॅरसी परिवार का सदस्य है। तेजपत्ता को हिंदी मे तेजपात अथवा दालचीनी, अंग्रेजी मे इंडियन बे लीफ, संस्कृत मे तामलपत्र, तमिल मे कटटू-मुका॔इ, तेलुगू मे आकुपत्ती, बंगाली मे तेजपत्रा, मराठी मे दालचिनिटिकी, अरबी मे जनारब तथा फारसी मे सद्रसु से कहा जाता है। भारत के अलावा चीन, पाकिस्तान, भूटान, सिक्किम आदि देशों मे तेजपत्ता 900 से 2400 मीटर की ऊंचाई पर प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। भारत मे तेजपत्ता का ज्यादातर उत्पादन उत्तर प्रदेश, बिहार, केरल, कनाडा के अलावा उत्तर पूर्वी पहाड़ी क्षेत्रो मे होता है। तेजपत्ता का पौधा सदाबहार होता है, जिसकी अधिकतम ऊंचाई 12 मीटर होती है। परिपक्व तेजपत्ता का आकार 5 सेंटीमीटर चौड़ा और 10 सेंटीमीटर लंबा होता है।
तेजपत्ता मे पाए जाने वाले आवश्यक तत्व: प्रति 100 ग्राम तेजपत्ता मे 313 किलो कैलोरी ऊर्जा, 74.97 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 8.36 मिलीग्राम वसा, 7.61 मिलीग्राम प्रोटीन, तथा कैल्सियम 834 मिलीग्राम, पोटैशियम 529 मिलीग्राम, सोडियम 23 मिलीग्राम, आयरन 43 मिलीग्राम, फास्फोरस 113 मिलीग्राम, मैग्नीज 8.17 मिलीग्राम, नियासिन 2.1 मिलीग्राम के अलावा पर्याप्त मात्रा मे विटामिन ए तथा विटामिन सी पाया जाता है। तेजपत्ता मे यूकेलिप्टोन के अलावा प्लेवोन, फ्लेवोनॉयड्स, एल्कलॉइड्स, टैनिन, यूजेनाल तथा एंथोसायनिन नामक औषधीय तत्व पाये जाते है। इसके अलावा तेजपत्ता के तेल मे 81 विभिन्न प्रकार के तत्व पाये जाते है जोकि औषधी निर्माण मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।
तेजपत्ता के औषधीय गुण: तेजपत्ता मे मौजूद एंटीइन्फ्लेमेटरी, एंटीफंगल तथा एंटीबैक्टीरियल गुणो के कारण प्राचीन काल से ही इसकी पतियों, तना की छाल, पेड़ की जड़ एवं तेल का प्रयोग विभिन्न प्रकार के बीमारियों के इलाज मे किया जा रहा है। क्लीनिकल बायोकेमेस्ट्री एंड न्यूट्रिशन जनरल (2016) मे प्रकाशित वैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार 30 दिन तक तेजपत्ता के सेवन से टाइप-2 डायबिटीज ठीक हो सकता है।
साथ ही साथ 26% तक कोलस्ट्रोल घटाया जा सकता है। तेजपत्ता मे कैफीक एसिड, क्वेरसेटिन तथा इयूगिनेल नामक तत्व मौजूद होते है जोकि कैंसर जैसी घातक बीमारी को होने से रोकता है। तेजपत्ता का काढ़ा पीने से पेट की समस्याओ से आराम मिलता है। दमा, खांसी, पीलिया, पथरी, जोड़ों का दर्द, सिर दर्द, निमोनिया सहित कई रोगों के इलाज मे तेजपत्ता का प्रयोग किया जाता है।
अर्थराइटिस के दर्द की समस्या को दूर करने में तेजपत्ता कारगर साबित होता है। इसके सेवन से कोलस्ट्रोल को नियंत्रण करने मे मदद मिलती है, जिससे हृदय को स्वस्थ रखा जा सकता है। तेजपत्ता मे मौजूद हाइड्रॉक्सीप्रोलाइन गुण के कारण घाव को जल्दी भरने मे सहायक होता है।
तेजपत्ता का रायते का सेवन करने से भूख ना लगने की समस्या से छुटकारा मिलती है। तेजपत्ता को हल्दी, नागकेसर तथा मंजिष्ठा के साथ पीसकर मकड़ी के काटने पर लगाने से मकड़ी का बिष समाप्त किया जाता है। लीवर की समस्याओ को तेजपत्ता द्वारा दूर किया जा सकता है। इसके अलावा तेजपत्ता के सेवन से किडनी तथा त्वचा संबंधित समस्याओ से छुटकारा पाया जा सकता है। इसके अलावा भोजन को स्वादिष्ट एवं जायकेदार बनाने मे तेजपत्ता को मसाले के रूप मे भी प्रयोग किया जाता है।
उत्तराखंड मे तेजपत्ता की खेती: तेजपत्ता के अधिक उत्पादन के लिए कार्बन युक्त मिट्टी जिसका पीएच मान 6 से 8 के बीच मे हो उपयुक्त माना जाता है। तेजपत्ता की भी खेती करने वाले किसानो को राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड द्वारा 30% का अनुदान दिया जाता है।
पौधरोपण करने के 5 साल बाद तेजपत्ता का लाभ मिलना शुरू हो जाता है। 1 हेक्टेयर भूभाग मे प्रतिवर्ष 30 क्विंटल पत्तियों का उत्पादन होता है, जिससे किसानो को प्रति हेक्टेयर 1.5 लाख की आमदनी होती है। वर्तमान मे उत्तराखंड राज्य मे लगभग 365 हेक्टेयर क्षेत्रफल मे तेजपत्ता की खेती 6200 किसानो द्वारा की जा रही है।
इससे लगभग 900 टन पत्तियो का उत्पादन प्रतिवर्ष हो रहा है। जिससे किसानो की आजीविका मे वृद्धि हो रही है। तेजपत्ता की पत्तियों मे लगने वाले कीटो मे एफिड्स, शैलेड स्केल तथा माईट्स प्रमुख है। कीट पतंगो से छुटकारा पाने के लिए रासायनिक कीटनाशक तथा नीम के तेल का प्रयोग किया जाता है।
(लेखक शहीद हंसा धनाई राजकीय महाविद्यालय अगरोड़ा (धारमंडल) टिहरी गढ़वाल (उत्तराखंड) में वनस्पति विज्ञान के सहायक प्राध्यापक हैं।)