–शंभू नाथ गौतम
दिग्गज नेता पंडित सुखराम शर्मा ने आज 95 साल की आयु में दुनिया को अलविदा कह दिया। सियासत में लंबी पारी खेलने वाले सुखराम की राजनीति जीवन काफी उथल-पुथल भरा रहा। कांग्रेस के साथ अपनी सियासी यात्रा शुरू करने वाले सुखराम कई बार सुर्खियों में भी रहे। टेलीकॉम घोटाले में नाम आने के बाद कांग्रेस ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया था। उसके बाद उन्होंने अपनी अलग पार्टी बनाई है। फिर वह भाजपा में शामिल हो गए।
सुखराम एक बार फिर से कांग्रेस में लौट आए। हिमाचल प्रदेश के दिग्गज नेताओं में शुमार रहे पंडित सुखराम शर्मा को देश में मोबाइल फोन लाने का भी श्रेय जाता है। वही पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारत में मोबाइल फोन से पहली बार बात की थी। बाद में टेलीकॉम घोटाले में नाम आने पर अदालत ने सुखराम को सजा भी सुनाई।
उनके घर से सीबीआई करोड़ों रुपए से भरा बैग भी मिला था। कुल मिलाकर पंडित सुखराम राजनीति में जितने शिखर पर रहे उतना ही वह विवादों में भी घिरे रहे। हिमाचल प्रदेश में 27 जुलाई 1927 को जन्में सुखराम ने भारत मोबाइल फोन लाने में अहम भूमिका निभाई। आइए जानते हैं देश में मोबाइल की दस्तक कैसे हुई। बता दें कि भारत में जब 90 के दशक में मोबाइल फोन की शुरुआत हो रही थी उस समय सुखराम सूचना प्रौद्योगिकी और केंद्रीय संचार मंत्री थे। केंद्र में 1991 से 96 तक नरसिम्हा राव की सरकार थी।
पंडित सुखराम शर्मा साल 1993 से लेकर 96 तक नरसिम्हा राव सरकार में केंद्रीय संचार मंत्री थे। संचार मंत्री रहते हुए सुखराम जापान दौरे पर गए । वहां उन्होंने देखा कि ड्राइवर मोबाइल से बात कर रहे हैं। उन्हें देखकर सुखराम को लगा कि जब जापान में ड्राइवर मोबाइल फोन से बात कर सकते हैं तो हमारे देश में क्यों नहीं। वहां से लौट के आने पर सुखराम ने भारत में इसकी तैयारी शुरू कर दी।
उसके बाद रिलायंस इंडस्ट्रीज के संस्थापक स्वर्गीय धीरूभाई अंबानी से इसकी पहल की। कुछ समय बाद सुखराम के संचार मंत्री रहते भारत में मोबाइल फोन से बात करने की शुरुआत हुई थी। ‘बता दें कि देश में पहली बार 31 जुलाई 1995 को दिल्ली स्थित संचार भवन से केंद्रीय संचार मंत्री सुखराम ने पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिवंगत ज्योति बसु से कोलकाता में कॉल लगा कर बात की थी’। दोनों ने नोकिया फोन से बात की थी। इसके कुछ समय बाद ही देशवासियों के हाथों में मोबाइल फोन आ गया । मौजूदा समय में मोबाइल लगभग सभी की पहुंच में है।
कांग्रेस-भाजपा में सियासी पारी खेलने वाले सुखराम को टेलीकॉम घोटाले में सजा भी हुई
अब आइए जानते हैं हिमाचल प्रदेश के दिग्गज नेता सुखराम के राजनीतिक करियर के बारे में। राजधानी दिल्ली के एम्स में पूर्व केंद्रीय संचार मंत्री पंडित सुखराम ने 95 साल की आयु में निधन हो गया। तीन दिन पहले ही उन्हें ब्रेन स्ट्रोक के इलाज के लिए हिमाचल से दिल्ली एम्स में भर्ती किया गया था। सुखराम हिमाचल प्रदेश के मंडी सीट से लोकसभा सांसद रहे। इन्होंने विधानसभा का चुनाव पांच बार एवं लोकसभा का चुनाव तीन बार जीता।
सुखराम हिमाचल के पहले मुख्यमंत्री वाईएस परमार की कैबिनेट में भी मंत्री रहे। उन्होंने राजनीतिक करियर शुरुआत हिमाचल के मंडी से की थी। वह 1963 से 1984 तक विधायक चुने गए थे। फिर उन्होंने 1984 में मंडी सीट से ही लोकसभा चुनाव जीता था। इसके बाद वो राजीव गांधी सरकार में राज्य मंत्री बनाए गए। फिर 1991 में लोकसभा सभा का चुनाव जीता। उसके बाद केंद्र में दूरसंचार विभाग का स्वतंत्र प्रभार संभाला। वह 1996 में दोबारा मंडी सीट से जीते लेकिन फिर टेलीकॉम घोटाले में नाम आने के चलते उन्हें कांग्रेस से निकाल दिया गया।
उसके बाद उन्होंने 1997 में ‘हिमाचल विकास कांग्रेस’ पार्टी बनाई। साथ ही 1998 में बीजेपी के साथ गठबंधन किया था । साल 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले सुखराम ने अपने बेटे अनिल शर्मा और पोते आश्रय शर्मा के साथ भाजपा ज्वाइन कर ली थी। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले सुखराम और आश्रय ने दोबारा कांग्रेस में शामिल हो गए।
आश्रय ने लोकसभा चुनाव भी लड़ा था लेकिन वह जीत नहीं सके थे। सुखराम को 2011 में भ्रष्टाचार के केस में पांच साल की सजा हुई। सुखराम के बेटे अनिल अभी मंडी से भाजपा विधायक हैं। उनके पोते आयुष शर्मा एक्टर हैं। उन्होंने सलमान खान की बहन अर्पिता से शादी की है। अब सुखराम हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उन्हें देश में मोबाइल से पहली बार बात करने के लिए हमेशा याद रखा जाएगा।