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पहाड़ों की हकीकत : …तो इसलिए हो रहे Uttarakhand के गांव खाली!

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मामचन्द शाह

ट्रांसफर-पोस्टिंग के दौर में उत्तराखंड (Uttarakhand) के सीमांत जनपद पिथौरागढ़ से पहाड़ों की हकीकत बयां करने वाली खबर सामने आ रही है। यह खबर ऐसे विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले प्रदेश से है, जिसके गठन के 21 साल पूर्ण हो चुके हैं। यहां एक बीमार महिला को डोली में उठाकर 30 किमी. दूर दुर्गम क्षेत्रों को पार करते हुए अस्पताल तक पहुंचाया जा सका। यह 21वीं सदी के चकाचौंध वाले युग में  हकीकत बयां करने के लिए पर्याप्त है।

यह मामला पिथौरागढ़ के मुनस्यारी क्षेत्र का है, जहां बारिश के कारण भूस्खलन के चलते झापुली-बोना सड़क क्षतिग्रस्त होने से यातायात प्रभावित है। जानकारी के अनुसार क्षेत्र के बोना अस्पताल में काफी लंबे समय से ग्रामीणों की मांग के बावजूद चिकित्सक तैनात नहीं है। बताया गया कि यहां ग्रामीण गीता देवी पत्नी कुंदन बृजवाल की तबियत बिगड़ गई। पास के अस्पताल में डॉक्टर न होने के कारण उन्हें ग्रामीणों की मदद से डोली में बिठाकर करीब 30 किमी. दूर मदकोट नामक हॉस्पिटल तक पहुंचाया गया। इस बीच गांव से हॉस्पिटल तक के रास्ते में खतरनाक भूस्खलन वाले रास्तों व उफनाई नदी-नालों को पार करना पड़ा। तब जाकर बीमार अस्पताल को उपचार मिल पाया।

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एनएययूआई से जुड़े विक्रम दानू बताते हैं कि बोना अस्पताल में बीते आठ महीनों से डॉक्टर ही नहीं है। उन्होंने बताया कि झापुली से बोना तक की सड़क करीब सात-आठ दिनों से बंद है। ऐसे में ग्रामीणों को पैदल चलने में भी भारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। क्षेत्रवासियों ने जिलाधिकारी से हॉस्पिटल में डॉक्टर तैनात करने की मांग करते हुए क्षतिग्रस्त सड़क मार्ग को शीघ्र खुलवाने की मांग की है।

जौनपुर ब्लॉक में प्रसव पीड़िता कई घंटे पैदल चलकर पहुंच पाई हॉस्पिटल

बीती जून 2022 के अंतिम पखवाड़े में टिहरी जनपद के जौनपुर ब्लॉक के अंतर्गत लग्गा गोठ गांव की प्रसव पीड़ा से जूझती एक महिला को रात्रि के घनघोर अंधेरे में टॉर्च की रोशनी के सहारे परिजनों के साथ करीब पांच-छह घंटे पैदल चलकर सड़क तक पहुंचाया गया था। तब जाकर उसे अस्पताल पहुंचाया जा सका। गनीमत यह रही कि अस्पताल पहुंचकर उक्त महिला ने एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया।

दरअसल उपरोक्त घटना 22 जून की रात्रि की है। ग्रामवासी बताते हैं कि उस दिन करीब 10 बजे रात्रि अंजू देवी पत्नी सोमवारी लाल गौड़ को प्रसव वेदना शुरू हुई। कोई अन्य साधन उपलब्ध न देख सोमवारी लाल ने पत्नी को पैदल ही अस्पताल पहुंचाने की हिम्मत जुटाई और रात्रि 11 बजे अन्य परिजनों के साथ जंगल के घनघोर अंधेरे में, जहां जंगली जानवरों का खौफ भी बना रहता है, सड़क तक पहुंचने के लिए निकल पड़े। उन्हें सड़क तक पहुंचने में करीब पांच-छह घंटे की पैदल यात्रा करनी पड़ी। इस दौरान गर्भवती महिला प्रसव वेदना से जूझते हुए लगातार चलती रही। सड़क पर पहुंचने के बाद वे किराये की टैक्सी के सहारे मसूरी स्थित हॉस्पिटल पहुंचे। जहां अंजू ने पुत्र को जन्म दिया।

बताते चलें कि सड़क से लग्गा गोठ गांव की दूरी लगभग ढाई किमी. है। इस गांव में 122 परिवार रहते हैं। यहां के वासियों को दुख-तकलीफ या प्रसव पीड़ा में घोड़े-खच्चर या फिर पालकी में सड़क तक पहुंचाया जाता है।

ग्राम प्रधान लाखीराम चमोली हकीकत बयां करते हुए बताते हैं कि कई बार जिलाधिकारी व विधायक को समस्या से अवगत कराया जा चुका है। उनके माध्यम से मुख्यमंत्री को भी सड़क निर्माण की मांग के लिए पत्र भेज चुके हैं, किंतु अभी तक कोई सकारात्मक कार्यवाही नहीं हुई।

उपरोक्त प्रकरणों से समझा जा सकता है कि उत्तराखंड के गांव वासी इन मूलभूत आवश्यक समस्याओं से जूझने के चलते खासे परेशान हैं। यदि स्वास्थ्य व शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं ही गांवों तक नहीं पहुंच पाएंगी तो इसमें कतई संदेह नहीं कि गांव निरंतर यूं ही खाली होते रहेंगे।

बताते चलें कि उत्तराखंड (Uttarakhand) की धामी सरकार में शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे अहम महकमों का नेतृत्व तेजतर्रार एवं अनुभवी कैबिनेट मंत्री डॉ. धन सिंह रावत कर रहे हैं। ऐसे में उनके पास इन दोनों महकमों की दयनीय स्थिति को सुधारने की न सिर्फ कड़ी चुनौती है, बल्कि एक सुनहरा अवसर भी है।

अब देखना यह होगा कि इस तरह के ज्वलंत प्रकरणों का मंत्री धन सिंह रावत कब तक संज्ञान लेते हैं और इन महकमों को सुधारने के लिए वे क्या कदम उठाते हैं!

 

यदि आपके क्षेत्र में भी इस तरह की ज्वलंत समस्याएं हैं तो #मुख्यधारा के WhatsApp नंबर  94583 88052 या ईमेल: [email protected] पर फोटो सहित पूरी डिटेल भेजें। 

 

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