देहरादून/मुख्यधारा
दून विश्वविद्यालय में विभिन्न पदों पर भर्ती में धांधली का गंभीर मामला सामने आया है। विश्वविद्यालय की भर्तियां कराने में भी यूकेएसएसएससी की परीक्षाएं कराने वाली आरएमएस कंपनी की भागीदारी रही है। इसके अलावा सहायक अभियंता और सहायक लेखाकार के पदों की योग्यता मनमाने ढंग से तय की गई है। साथ ही परीक्षा पेपर तैयार कराए जाने की प्रक्रिया में भी गोपनीयता गंभीर ढंग से भंग हुई है।
उत्तराखंड क्रांति दल (UKD) के केंद्रीय मीडिया प्रभारी शिवप्रसाद सेमवाल ने सरकार और जनता का ध्यान आकृष्ट करते हुए बताया कि दून विश्वविद्यालय द्वारा जून 2021 में विभिन्न नॉन टीचिंग पदों पर भर्ती के लिये विज्ञापन जारी किया गया था। उसमें विश्वविद्यालय द्वारा भर्ती हेतु जिस आरएमएस टेक्नो सोल्यूशन, लखनऊ का चयन किया गया, उसके लिए क्या ‘उत्तराखण्ड राज्य प्रोक्योरमेन्ट नियम’ का पालन किया गया है? इसके साक्ष्य सरकार या विश्व विद्यालय जनता के सामने उजागर करें! क्योंकि भर्ती प्रक्रिया हेतु जिस “आरएमएस टेक्नो सोल्यूशन, लखनऊ” फर्म का चयन किया गया, वह विवादों से भरी हुयी है। हाल में उत्तराखण्ड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के पेपर लीक मामले में उक्त कम्पनी की भूमिका साफ तौर पर उजागर हुयी है।
‘उक्रांद’ (UKD) का दावा है कि उक्त भर्तियों में खुलकर रेवड़ी बांटने का काम हुआ है। मीडिया के माध्यम से ‘उक्रांद’ ने ज़ीरो टोलरेंस का नारा देने वाली सरकार के वर्तमान मुख्यमंत्री से सवाल पूछा कि भर्ती विज्ञापन जारी करने के बाद विश्वविद्यालय द्वारा कुछ तकनीकी पदों की शैक्षिक एवं तकनीकी योग्यता में चुपचाप बदलाव किया गया, जिसके लिए जनसामान्य के सूचनार्थ वेबसाइट में कोई नोटिफिकेशन क्यों प्रकाशित नहीं किया गया?
श्री सेमवाल ने कहा कि विश्वविद्यालय की कोई सेवा नियमावली न होने के कारण पदों की शैक्षिक एवं तकनीकी योग्यतायें मनमाफिक तरीके से निर्धारित की जाती हैं। आखिर क्यों? उदाहरणार्थ सहायक अभियन्ता के पद हेतु डिप्लोमा के साथ किसी शासकीय उपक्रम में 10 वर्ष का अनुभव या बीटेक की उपाधि, साथ ही शासकीय उपक्रम में 3 वर्ष का कार्यानुभव की योग्यता रखी गयी है और बकि इस स्तर के पद लोक सेवा आयोग के माध्यम से भरे जाते हैं। जो योग्यता लोक सेवा आयोग द्वारा निर्धारित की गयी है, उससे भिन्न विश्वविद्यालय द्वारा रखी गयी है। इससे यह स्पष्ट है कि यह योग्यता किसी व्यक्ति विशेष को लाभ पहुँचाने के उददेश्य से निर्धारित की गयी है।
उन्होंने कहा कि उच्च श्रेणी के किसी भी तकनीकी पद हेतु लिखित परीक्षा में कम से कम 70 प्रतिशत सम्बन्धित विषय के एवं शेष 30 प्रतिशत रीजनिंग एवं सामान्य ज्ञान इत्यादि क्षेत्र से प्रश्न पूछे जाते हैं, ताकि अभ्यर्थियों की उचित दक्षता का परीक्षण हो सके। फिर क्यों ‘उक्त सहायक अभियन्ता’ की परीक्षा में ऐसा नहीं किया गया।
उन्होंने यह भी कहा कि आखिर क्यों 50 प्रतिशत ही सम्बन्धित विषय से प्रश्न पूछे गये और शेष 50 प्रतिशत सहायक लेखाकार वाले प्रश्नों को कॉपी पेस्ट किया गया है? यह सरासर नियम विरुद्ध है।
इन सब बातों से विश्व विद्यालय की चयन प्रक्रिया पर तो सवाल उठता ही है। साथ ही जिस आरएमएस कंपनी के माध्यम से भर्ती का काम किया गया उसका तो सच जनता और आप समझ ही चुके हैं। यहाँ भी इस कंपनी ने पूरा घालमेल किया है। कंपनी की सोची समझी चालों के कारण सहायक अभियन्ता, सहायक लेखाकार एवं अन्य सभी पदों के लिये तुलनात्मक रूप में आवेदन बहुत ही कम संख्या में प्राप्त हुये हैं और वह इसलिये कि विश्वविद्यालय द्वारा जिस आरएमएस टेक्नो सोल्यूशन, लखनऊ फर्म के माध्यम से परीक्षा सम्बन्धी कार्य किया गया है। तब बार बार साफ्टवेयर को खराब होना तो कभी सर्वर का धीमा हो जाना जैसे काम बहुत हुए, जिस वजह से कई योग्य अभ्यर्थी आवेदन निश्चित समायावधि में नहीं कर सके। ये सब सिर्फ इसलिए ही किया गया था कि कम से कम अभ्यर्थी आवेदन फार्म भर सकें एवं हुआ भी ऐसा ही। यह विश्वविद्यालय एवं आरएमएस टेक्नो सोल्यूशन, लखनऊ फर्म की मिलीभगत को सीधे तौर पर दर्शाता है।
उक्त भर्ती प्रक्रिया में गोपनीयता बड़े स्तर पर भंग हुई है। विश्वविद्यालय ने 19 जून, 2022 को सहायक लेखाकार एवं सहायक अभियन्ता के पद हेतु लिखित परीक्षा आयोजित की। इस लिखित परीक्षा में विश्वविद्यालय द्वारा जरूरी गोपनीयता को दरकिनार कर कई लापरवाहियां की गयी।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उक्त दोनों पदों में से एक पद जो कि सिविल इन्जीनियर का है तथा लेवल 10 का है, तथा दूसरा पद सहायक लेखाकार जो कि लेवल 5 का है, दोनों के लिये सामान्य ज्ञान के 50 प्रतिशत प्रश्न रखे गये और दोनों परीक्षाओं के लिये वही कॉपी पेस्ट किये गये थे। दोनों के लिये प्रश्न पत्र के एक ही मानक कैसे हो सकते हैं। नियमानुसार लेवल-10 के पद पर भर्ती लोक सेवा आयोग के माध्यम से की जानी चाहिये थी।
शिव प्रसाद सेमवाल ने कहा कि प्रश्न पत्रों का अवलोकन करने पर देखा गया कि ये किसी प्रिन्टिंग प्रेस में न छापकर अपने ही कार्यालय में ही छाप लिए गये हैं। प्रश्न पत्रों को प्रिन्ट कर उनके सेट बनाये गये होंगे तो जाहिर है इसमें कुलसचिव के अलावा अन्य कर्मचारियों को भी सम्मिलित किया गया होगा। इस प्रकार इस परीक्षा की गोपनीयता तो पहले ही भंग हो चुकी है।
उन्होंने कहा कि लोकायुक्त आंदोलन के संयोजक सुमन बडोनी द्वारा मांगी गई, सूचना के अधिकार से ये ज्ञात हुआ है कि इस लिखित परीक्षा की प्रक्रिया के दौरान विश्वविद्यालय द्वारा सभी गोपनीय कार्यों में विश्वविद्यालय के शिक्षकों को सम्मिलित किया गया था। विश्वविद्यालय में सीनियर प्रोफेसर होने के बावजूद जूनियर शिक्षकों यहां तक कि जो परीविक्षा अवधि में हैं, उनको भी इसके कार्यों का दायित्व दिया गया। वहां पर पूर्व से कार्यरत संविदा कर्मी भी इन परीक्षाओं में सम्मिलित हुए। इससे साफ जाहिर है कि अपनों को लाभ पहुंचाने के लिए सीनियर की जगह जूनियर शिक्षकों को इस प्रक्रिया में सम्मिलित किया गया।
यूकेडी (UKD) ने सवाल उठाया है कि, विश्वविद्यालय के कुलसचिव जो कि सबसे मुख्य कार्यकारी अधिकारी होते हैं, कहीं भी इस प्रक्रिया में शामिल क्यों नहीं थे? क्या उन्होने अन्य लोगों को यह कार्य सौंप दिया? क्योंकि गोपनीय कार्यों सम्बन्धी दस्तावेजों में कहीं भी उनका उत्तरदायित्व नहीं दिखता है। इससे कुलसचिव की भूमिका पर भी संदेह होता है।
शिवप्रसाद सेमवाल ने कहा कि 3 सितम्बर 2022 को विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर सहायक इन्जीनियर की लिखित परीक्षा का परिणाम डाला गया। हैरानी की बात यह है कि इस परीक्षा परिणाम में किसी के हस्ताक्षर भी संलग्नकर क्यों नहीं है? यदि कोई अभ्यर्थी न्यायालय की शरण में जाता है तो बिना हस्ताक्षर वाले इस परिणाम को क्या न्यायालय में माना जायेगा?
विश्वविद्यालय में वर्ष 2010 में हुई भर्ती प्रक्रिया में अनियमितता एवं लापरवाही का मामला उजागर होने पर पूरी प्रक्रिया को रद्द कर दिया गया था। इस तरह कब तक उत्तराखंड के युवाओं को छलने का काम होता रहेगा?
दून विश्वविद्यालय में पदों पर भर्ती हेतु कोई सेवा नियमावली अथवा भर्ती हेतु कोई नियमावली क्यों नहीं बनाई गई है? आखिर कैसे दून विश्वविद्यालय अपनी मनमर्जी से नियमों को ताक पर रखकर, भर्ती प्रक्रिया कर रहे हैं और नियम विरुद्ध जाकर भर्तियों को अंजाम दे रहे हैं।
उच्च शिक्षा विभाग पहले से ही विवादों के घेरे में रहा है। शायद सभी जानते हैं, दून विश्वविद्यालय के कुलसचिव, उच्च शिक्षा मंत्री के चहेते अधिकारी रहे हैं।
दून विश्वविद्यालय में चल रही मनमानी और अनियमित भर्ती प्रक्रिया पर एसटीएफ से जाँच के आदेश सीएम कब तक देंगे, यह बड़ा सवाल है? उत्तराखंड क्रांति दल (UKD) ने मांग की है कि यदि इन भर्ती घोटाले की जांच के आदेश जल्द नहीं किए जाते हैं तो उत्तराखंड क्रांति दल जल्द बड़ा आंदोलन शुरू करेगा।
प्रेस वार्ता का सम्बोधन उत्तराखंड क्रांति दल के केंद्रीय मीडिया प्रभारी शिवप्रसाद सेमवाल ने किया साथ ही केंद्रीय प्रवक्ता अनुपम खत्री और लोकायुक्त आंदोलन के संयोजक सुमन बडोनी, सुलोचना इष्टवाल (केंद्रीय अध्यक्ष महिला मोर्चा), जिलाध्यक्ष संजय डोभाल, डॉ भगवान सिंह बिष्ट आदि शामिल थे।