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देहरादून : हिंदुत्व (Hinduism) का वैश्विक पुनर्जागरण विषय पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में बोले प्रो. सप्रे : हिन्दू चिंतन से निकालना होगा वैश्विक समस्याओं का हल

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  • हिंदुत्व (Hinduism) का वैश्विक पुनर्जागरण विषय पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में सच्चा हिंदू बनने को किया प्रेरित, प्रो. सप्रे बोले फिर से विश्व गुरू बनेगा भारत
  • अपने परिवार व प्रभाव क्षेत्र में रहने वाले लोग जितनी जल्द सच्चा हिंदू बनेंगे, उतनी जल्द फिर से विश्व गुरू बन बनेगा भारत : प्रो. सप्रे

मामचन्द शाह/देहरादून, मुख्यधारा

देहरादून के दून विवि में आज प्रज्ञा प्रवाह की उत्तराखंड इकाई देवभूमि विचार मंच, वाक्धारा पत्रिका तथा दून विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में हिंदुत्व (Hinduism) का वैश्विक पुनर्जागरण विषय पर एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर प्रख्यात वक्ताओं ने अपने ओजस्वी विचारों से हिंदुत्व को लेकर नई प्रेरणा का संचार किया। इस मौके पर मुख्य वक्ता प्रो. सदानंद सप्रे ने कहा कि यदि हम अपने परिवार व प्रभाव वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को जितनी जल्द सच्चा हिंदू बनने को प्रेरित कर सकेंगे, उतनी जल्द फिर से भारतवर्ष विश्व गुरू बन बनेगा। उन्होंने कहा कि हिन्दू चिंतन से वैश्विक समस्याओं का हल निकालना होगा।

कार्यक्रम की अध्यक्षता डा. चैतन्य भण्डारी, डा. अंजली वर्मा तथा डा. रीना चन्द्रा के द्वारा की गई। समारोह के मुख्य अतिथि कल्याण सिंह रावत पद्मश्री से सम्मानित, पर्यावरण प्रेमी तथा मैती आन्दोलन के प्रणेता हैं।

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि उत्तराखंड आयुर्वेदक विवि के कुलपति डा. सुनील जोशी तथा दून विश्वविद्यालय की कुलपति डा. सुरेखा डांगवाल थे। मुख्य वक्ता एनआईटी भोपाल के पूर्व प्राध्यापक एवं प्रज्ञा प्रवाह के केंद्रीय टोली सदस्य प्रो. सदानंद दामोदर सप्रे व अतिथि वक्ता प्रख्यात स्तंभकार विकास सारस्वत के विचारों ने सभी को ओतप्रोत किया। मंच का संचालन आयोजन सचिव डा. रवि शरण दीक्षित द्वारा बहुत कुशलता से किया गया।

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कार्यक्रम का आरंभ भारतीय संस्कृति पर आधारित वंदेमातरम गीत के साथ किया गया। इसके पश्चात मां सरस्वती के आगे दीप प्रज्वलित किया गया। सरस्वती वंदना एवं नृत्य की प्रस्तुति ने वातावरण को मधुर बना दिया। डीएवी पीजी कालेज की छात्राओं द्वारा स्वागत गीत प्रस्तुत किया गया, जिसका उद्देश्य सांस्कृतिक वातावरण निर्मित करने के साथ-साथ गीत के माध्यम से भारतीय संस्कृति की विशेषताओं का उल्लेख करना था।

देवभूमि विचार मंच की अध्यक्ष डा. अंजली वर्मा द्वारा कार्यक्रम में पधारे अतिथियों का अभिनंदन एवं स्वागत किया गया। इसके पश्चात मुख्य अतिथियों द्वारा स्मारिका का विमोचन किया गया। भारतीय परम्पराओं के अनुसार पुष्प गुच्छ एवं स्मृति चिन्ह के द्वारा मुख्य अतिथि कल्याण सिंह रावत, मुख्य वक्ता प्रो. सदानंद दामोदर सप्रे, विशिष्ट अतिथि प्रो. सुनील जोशी, कार्यक्रम अध्यक्ष डा. सुरेखा डंगवाल, अतिथि वक्ता विकास सारस्वत का स्वागत किया गया।

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कई बार दमन के बाद भी फिर से उभरी भारतीय सभ्यता: विकास सारस्वत

अतिथि वक्ता विकास सारस्वत के द्वारा अपने विचार प्रस्तुत किए गए। उन्होंने भारतीय इतिहास के द्वारा हिंदुत्व (Hinduism) का मूल भाव समझाने की कोशिश की। उन्होंने प्राचीन गुजरावाला शहर की कहानी के द्वारा भारतीय संस्कृति पर प्रकाश डाला कि भारतीय सभ्यता को कई बार दमन करने की कोशिश की गई, परंतु भारतीय सभ्यता फिर उभर कर आई। उन्होंने कहा कि जो कुछ भी विश्व को कल्याणकारी मिला है, वह भारत से मिला है। डेसिमल सिस्टम, जीरो एड सैनिटेशन सिस्टम आदि के द्वारा सब भारत से ही मिला है। मुक्त चिंतन एवं बहुलवाद भारतीय संस्कृति की विशेषता है। आज फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा हिदुत्व का फिर से पुनर्जागरण का प्रयास किया जा रहा है।

नई पीढ़ी को हिंदुत्व से रूबरू कराने की आवश्यकता : प्रो. सप्रे

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तत्पश्चात प्रो सदानंद दामोदर सप्रे ने मुख्य वक्ता के रूप में अपने विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने बताया कि हिंदुत्व का प्रभाव हजारों वर्ष तक रहा है। कई संस्कृतियां आई और मिट गई, परंतु हमने अपनी संस्कृति को मिटने नहीं दिया।

उन्होंने गुलामी के काल को संघर्ष का काल बताया। उन्होंने कहा कि आज इसके पुन: जागरण की आवश्यकता है। आज हिदुत्व के मूल सिद्धांतों को विदेशों में भी अपनाया जा रहा है। इसका व्यारण यह कि हिंदुत्व के मूल सिद्धांतों को वहाँ पर रहने वाले आम भारतीयों के द्वारा अपनी रोजमर्रा की जिन्दगी, अपने आचरण में अपनाया गया है। अगर हम हिंदुत्व का पुनर्जागरण करना चाहते हैं तो सच्चे हिन्दू का सहज स्वाभाविक व्यवहार दस सिद्धांतों के अनुसार होना चाहिए। इसके अलावा संसार की समस्याओं का समाधान जैसे पर्यावरण अन्य बड़ी समस्याओं का समाधान भी हिदुत्व के सिद्धान्तों के अनुसार होना चाहिए।

श्री सप्रे ने कहा कि सर्वप्रथम आपको अपने परिवार की नई पीढी को हिंदुत्व से रूबरू कराना होगा। इसके अलावा आप अपने प्रभाव वाले कार्यक्षेत्र में हिंदुत्व व सच्चा हिंदू बनने को प्रेरित कर सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि सच्चा हिंदू बनने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि उसे मंदिर में जाकर उपासना भी करनी पड़ेगी, बल्कि बिना मंदिर में जाकर भी सच्चा हिंदू हो सकता है। उन्होंने कहा कि अपने परिवार व प्रभाव वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को हम जितनी जल्द सच्चा हिंदू बनाने का प्रयास करेंगे, उतनी जल्द भारतवर्ष एक बार फिर से विश्व गुरू बन सकेगा।

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विश्व को भारत ने दिया प्लास्टिक सर्जरी का ज्ञान : प्रो. डा. सुनील जोशी

प्रो. डा. सुनील जोशी ने विभिन्न तकनीकी पक्षों के द्वारा हिंदुत्व की गहराई को समझाने का प्रयास किया। उन्होंने बताया कि आज हम जो भी चीजें अपने आचरण में अपना रहे हैं, जैसे बाहर से आकर हाथ धोना, नहाना, कपडा़ धोना, यह सब पहले से ही हमारी संस्कृति में शामिल है। प्लास्टिक सर्जरी का ज्ञान भी विश्व को भारत ने ही दिया। आज विश्वभर में शाकाहार को अपनाने के प्रयास किए जा रहे हैं, जो कि हिंदुत्व की ओर इशारा करता है। डेड बॉडी का अंतिम संस्कार करना Acientifically Proven है, जिसे अन्य देश भी अपना रहे हैं। आज हमारी यह जिम्मेदारी है कि हम अपने सिद्धांतों व अपने मूल्यों को विश्व में जागृत करें।

बच्चों में बोएं भारतीय संस्कृति को अपनाने के बीज: कल्याण सिंह रावत

मैती आंदोलन के प्रणेता व पद्मश्री से सम्मानित, पर्यावरण प्रेमी मुख्य अतिथि कल्याण सिंह रावत द्वारा बेहतरीन ढंग से हिंदुत्व के तत्वों को समझाया गया। उन्होंने कहा कि पुराने अतीत को फिर से लाकर दिखाना है। किसी भी देश को मजबूत बनाने में वहां की संस्कृति का बहुत अहम भूमिका होती है। मैकाले की शिक्षा नीति ने देश को प्रभावित किया है। जिनका उद्देश्य ऐसे भारतीयों का निर्माण करना है, जो शरीर से भारतीय हों, परंतु मन से अंग्रेजी को अपनाए। आज यही देखा जा रहा है। हम अपने बच्चों को समय नहीं दे पा रहे हैं। सबसे पहले उन्हें समय देना होगा। बच्चों को मूल संस्कृति के आचरण जैसे पैर छूने को प्रेरित करना होगा। स्कूली पाठ्यक्रम में भी छोटे-छोटे उपायों को अपनाना चाहिए। अपने पर्व मनाने चाहिए। आज हमें प्रकृति को बचाने की आवश्यकता है, गंगा को बचाना है।

श्री रावत ने धार्मिक ग्रंथों के विभिन्न संदर्भों के द्वारा प्रकृति को बचाने पर प्रकाश डाला। मैती आंदोलन पर भी उन्होंने विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने प्रकृति को भावात्मक रूप से जोड़ते हुए कहा कि बेटियां पेड़ लगा पर शादी के समय प्रकृति में सहयोग करेंगी तो इससे हमारे पर्यावरण की रक्षा होने के साथ-साथ हमारी संस्कृति भी जीवंत रह सकेगी।

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दून विश्वविद्यालय की कुलपति डा. सुरेखा डंगवाल के विचारों को सुनकर कार्यक्रम में उपस्थित सभी लोग ओतप्रोत हो उठे। उन्होंने बताया कि पुनर्जागरण यादि renaissance जब भी आता है तो नागरिकों की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। उन्होंने कहा कि भारत हजारों वर्ष पहले से ज्ञान, विज्ञान, मनोविज्ञान में आगे था। उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण ने पुर्नजन्म की बात कही थी कि सभी जन मुझसे ही उत्पन्न होते हैं और मुझमे ही समाते हैं। टीएस इलियट का उदाहरण देते हुए उन्होंने समझाया कि पूरा यूरोप मोटिवेशन की चपेट में आकर बंजर हो चुका है, जिसे गंगा द्वारा हिंदू संस्कृति के द्वारा ही तारा जा सकता है।

 

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कार्यक्रम की संयोजक डा. रीना चंद्रा द्वारा प्रभावी ढंग से हिंदुत्व के तत्वों को समझाया गया। उन्होंने पंडित दीनदयाल का उदाहरण देते हुए बताया कि विश्व को अपना बनाते चलो, कालेज व विश्वविद्यालयों में ऐसे कार्यक्रम हों कि हिंदुत्व के तत्व व्यक्ति के चरित्र का हिस्सा बन जाएं।

तकनीकी सत्र में अंत में शोध छात्रों ने अपने विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि हमें हिंदुत्व को अपने व्यक्तित्व का हिस्सा बनाना होगा, उसे मन से स्वीकार करना होगा।

इस अवसर पर डा. विनोद जोशी, आरती, योगराज सिंह, डा. उपेंद्र सिंह चौहान, डा. राजेश भट्ट, डा. सुनीता आर्या, डा. प्रभाकर त्यागी, डा. शिचचन्द रावत, डा. पूरन सिंह खाती, डा. अंशू सिंह एवं शोध छात्रा कु. करुणा के द्वारा अपने विचार व्यक्त किए गए।

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