नैनीताल/मुख्यधारा
उत्तराखंड के प्रत्येक प्रभागीय वनाधिकारियों (DFO) पर 10-10 हजार रुपए का जुर्माना (Fine on DFO) लगाया गया है। जुर्माने की ये धनराशि राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में जमा करने को कहा गया है। कोर्ट द्वारा ये कार्रवाई उत्तराखंड में प्लास्टिक कचरा निस्तारण में लापरवाही बरतने की साथ ही ग्राम पंचायतों का मानचित्र अपलोड नहीं करने पर की गई है।
बताते चलें कि अल्मोड़ा के रहने वाली जितेंद्र यादव ने हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी। जिसमें उनके द्वारा कहा गया था कि उत्तराखंड सरकार ने वर्ष 2013 में प्लास्टिक के उपयोग व उसके निस्तारण को लेकर नियमावली बनाई थी, किंतु उन नियमों का वर्तमान में पालन नहीं हो रहा है।
याचिका में यह भी कहा गया था कि वर्ष 2018 में भारत सरकार ने प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल बनाए थे। जिसमें उत्पादनकर्ता, परिवहनकर्ता व विक्रेता को जिम्मेदारी सौंपी गई थी कि वह जितना भी प्लास्टिक से निर्मित चीजें वे बेचेंगे, उतनी ही मात्रा में प्लास्टिक को उनके द्वारा वापस लिया जाएगा। उसमें यह भी शर्त थी कि यदि वे ऐसा नहीं करते तो संबंधित निकायों को फंड दिया जाएगा, जिससे वह इसका निस्तारण कर सकेंगे, किंतु इन तमाम नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है।
इस मामले को लेकर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने पीसीसीएफ, सदस्य सचिव प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के साथ ही गढ़वाल और कुमाऊं कमिश्नर को 15 दिसंबर को व्यक्तिगत रूप से होने के लिए कहा गया है। कोर्ट ने सवाल पूछते हुए कहा कि उक्त आदेशों का पालन न करने पर क्यों न आपके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की जाए।
इसके अलावा कोर्ट ने प्लास्टिक कूड़ा निस्तारण को लेकर सख्ती कर दी है। कोर्ट ने निर्देश देते हुए कहा है कि अब होटल, मॉल, पार्टी लॉन संचालक स्वयं अपना कचरा रीसाइक्लिंग प्लांट तक ले जाएंगे। सचिव शहरी विकास और पंचायतीराज निदेशक इसे लागू कर रिपोर्ट न्यायालय में पेश करेंगे।
प्रमुख सचिव पीसीबी के साथ प्रदेश में आ रही प्लास्टिक बंद वस्तुओं का आकलन करेंगे। इसके अलावा प्लास्टिक पैकिंग की वस्तुओं की सूची जिलाधिकारियों को उपलब्ध करवाना होगा। प्लास्टिक पैकिंग वाला सामान बेचने वाली कंपनी अपना कचरा 15 दिन के भीतर अपने आप ले जाएंगे या फिर स्थानीय निकायों को इसका मुआवजा देंगे।