विश्व के मूलनिवासियों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर न्यू फॉरेस्ट परिसर देहरादून में “देशज ज्ञान और प्रकृति” विषय पर एक संवाद कार्यक्रम आयोजित हुआ। जिसमें प्रकृति प्रेमी विद्वानों और विषय विशेषज्ञों ने अपनी बात रखी।
देशज ज्ञान के बारे में जानकारी देते हुए मानव विज्ञान के जानकार डॉ. राज कुमार ने कहा कि प्रकृति में हर समस्या का समाधान छुपा है, पर आज मानव के प्रकृति से दूर जाने की वजह से दोनो ही संकट में पड़ गए हैं। उन्होंने बताया कि मानव मात्र को होने वाली बहुत सी व्याधियां प्रकृति में पाए जाने वाले पेड़-पौधों के इस्तेमाल से दूर की जा सकती हैं, पर अब लोगों को इतनी फुर्सत नहीं है कि वे उनका इस्तेमाल करने का समय निकाल सकें। इसकी बजाय वे दवा की दुकान पर जाकर टैबलेट खरीद के खाना पसंद करते हैं। जिसकी वजह से उन्हें तत्काल राहत तो मिल जाती है, किंतु उन दवाओं के दुष्प्रभाव से वे नहीं बच पाते।
इसी विषय को आगे बढ़ाते हुए, मानवविज्ञानी डॉ. करूणा शंकर पांडे ने कहा कि दरअसल हमने अपने ज्ञान की विरासत को संभाला नहीं है। इसलिए अपने आस पास मिलने वाली प्राकृतिक औषधियों को हम पहचान भी नहीं पाते। अगर एकबारगी हम ये जान भी जाएं कि फलां औषधि से फलां रोग दूर हो सकता है तो भी हमें वो दवा बनाने का तरीका मालूम नहीं है। दादी-नानी के नुस्खों वाला ज्ञान हमारे समाज ने संभाला नहीं और अब वो उन्हीं के साथ हमारे समाज से भी गायब हो रहा है। इसको समय रहते बचाए जाने की जरूरत है।
साहित्यकार और विचारक डॉ. जितेंद्र भारती ने बताया कि देशज ज्ञान की परंपरा को तार्किक बनाये जाने पर जोर देने की आवश्यकता है। नेचर फ्रेंड फाउंडेशन के सचिव अवनीश ने कहा कि फाउंडेशन देशज ज्ञान और अपनी विरासत को लिपिबद्ध करने और सहेजने के काम में लगेगा और नई पीढ़ी को देशज ज्ञान से जागरूक करने का कार्यक्रम करेगा ताकि हमारी विरासत बची रहे।
इस अवसर पर शालिनी, प्रिंस, श्वेता, समीहा, राखी आदि वक्ताओं ने अपने विचार साझा किए।