हिंदी पत्रकारिता दिवस : पत्रकारिता (journalism) का बदलता स्वरूप, प्रिंट से शुरू हुआ सफर डिजिटल में समाहित हुआ, जानिए लंबे कालखंड का इतिहास
मुख्यधारा डेस्क
हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र का आज सबसे बड़ा गौरवशाली दिन है। हर साल 30 मई को ‘हिंदी पत्रकारिता दिवस’ मनाया जाता है। आज ही के दिन 197 साल पहले 30 मई 1826 को कलकत्ता (कोलकाता) से पहला हिंदी अखबार ‘उदन्त मार्तण्ड’ निकाला गया था। भारतीय लोकतंत्र के संरक्षण और संवर्धन में पत्रकारिता, प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक का महत्वपूर्ण योगदान है । देश में इसे ‘चौथा स्तंभ’ भी कहा जाता है। देश की आजादी में हिंदी पत्रकारिता ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आजादी के बाद हिंदी पत्रकारिता ने भारत की प्रगति और भारतीयों का कल्याण सुनिश्चित किया। वहीं आपातकाल में भी भारतीय प्रेस ने और हिंदी पत्रकारिता ने जटिल परिस्थितियों का सामना किया। तमाम बाधाओं, प्रतिबंध और प्रतिकूल परिस्थितियों के बाद भी भारतीय पत्रकारिता ने अपनी विकास यात्रा तय की। अपने 197 साल के लंबे कार्यकाल में पत्रकारिता भी बदलती चली गई।
पिछले दो दशकों से डिजिटल क्रांति आने से पत्रकारिता का स्वरूप बदल गया है। सोशल मीडिया पर तीव्र गति से समाचारों सूचनाओं का आदान-प्रदान होने लगा है। मौजूदा समय में दुनिया के किसी भी देश में घटित होने वाली घटना आज चंद मिनटों में लोगों के पास पहुंच जाती है। मीडिया के विभिन्न माध्यमों द्वारा सूचना की बौछार की जा रही है। मीडिया का स्वरूप परंपरागत मीडिया से अलग सोशल मीडिया लेता जा रहा है। मीडिया की यह विशेषता होती है कि किसी भी समाचार को उसके विभिन्न रूपों में पढ़ा और देखा जा सकता है। यानी जो खबरें समाचार-पत्रों में छपती हैं, उन्हीं के डिजिटल स्वरूप को हम मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। साथ ही जिस समाचार को टेलीविजन पर दिखाया जाता है, उसको हम यूट्यूब चैनल पर भी देख सकते हैं। इस तरह हम देखें तो समाचार एक ही होता है, लेकिन उसके प्रस्तुतीकरण के माध्यम अलग-अलग होते हैं।
इस तरह कहा जा सकता है आज मीडिया में रोजगार की कोई कमी नहीं है बल्कि उसके प्लेटफॉर्म अलग-अलग हो गए हैं। भारत में डिजिटल मीडिया और परंपरागत मीडिया मिलकर काम कर रहे हैं जिससे इन दोनों का भविष्य उज्ज्वल है। डिजिटल प्लेटफॉर्म के पाठकों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। ग्लैमर से जुड़ा होने की वजह से मीडिया के क्षेत्र में युवाओं की विशेष दिलचस्पी रहती है। लेकिन इस क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को सदैव दबाव में काम करना पड़ता है। इसलिए इस क्षेत्र में काम करने वाले विद्यार्थियों के भीतर जुनून का होना आवश्यक है क्योंकि इस क्षेत्र में हमेशा डेडलाइन के मुताबिक काम करना पड़ता है। खबरों तक पहुंचने के लिए एक पत्रकार को दिन-रात लगातार काम करना पड़ सकता है संक्षिप्त रूप में, जन-संचार का क्षेत्र कार्य संतुष्टि, नाम व प्रसिद्धि देने वाला तो है साथ ही चुनौतीपूर्ण भी होता है।
30 मई 1826 को पंडित युगल किशोर शुक्ल ने पहला हिंदी अखबार उदन्त मार्तण्ड का प्रकाशन किया था-
कानपुर के रहने वाले पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने 30 मई साल 1826 को पहला हिंदी अखबार निकाला गया था। इसके संपादक पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने ‘उदन्त मार्तण्ड’ को भारत के हिंदी भाषी राज्यों तक पहुंचाने का लक्ष्य तय किया लेकिन आर्थिक तंगी ऐसी रही कि इसके मात्र 79 अंक ही प्रकाशित हो पाए और डेढ़ साल के भीतर ही इसे बंद करना पड़ा।
बता दें कि ‘उदन्त मार्तण्ड’ के पहले अंक में 500 प्रतियां छापी गई थीं। उस समय इस साप्ताहिक अखबार के ज्यादा पाठक नहीं थे। इसका कारण था इसकी भाषा हिंदी होना, चूंकि ये अखबार कोलकाता से निकलता था, और वहां हिंदी भाषी कम थे इसलिए इसके पाठक न के बराबर थे। फिर भी पंडित जुगल किशोर इसे पाठकों तक पहुंचाने के कड़ी जद्दोजहद करते थे इसके लिए वे इसे डाक से अन्य राज्यों में भेजने की कोशिश करते थे। लेकिन अंग्रेजी हुकुमत ने इस अखबार को डाक सुविधा से भी वंचिंत रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी, जिस कारण अखबार को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा था। नतीजा ये रहा कि इस अखबार को 19 महीने बाद ही बंद करना पड़ा गया। पंडित जी की आर्थिक परेशानियों और अंग्रेजों के कानूनी अड़ंगों के चलते 19 दिसंबर 1827 में इस अखबार की प्रकाशन बंद हो गया।