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पद्मश्री बसंती देवी (Basanti Devi) पर्यावरण संरक्षण के लिए असाधारण योगदान

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पद्मश्री बसंती देवी (Basanti Devi) पर्यावरण संरक्षण के लिए असाधारण योगदान

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

देश के भीतर आज बहुत सी महिलाएं ऐसी हैं जिन्होंने पर्यावरण, संस्कृति और समाज सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। 2022 में उत्तराखंड की रहने वाली ऐसी ही एक महिला को देश के चौथे बड़े नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया गया था, इनका नाम था बसंती देवी, इससे पहले भी इन्हें देश का सर्वोच्च नारी शक्ति पुरस्कार मिल चुका है। मूल रूप से पिथौरागढ़ के कनालीछीना निवासी बसंती सामंत शिक्षा के नाम पर मात्र साक्षर थीं। 12 साल की आयु में उनका विवाह हो गया था। कुछ ही समय के बाद पति की मृत्यु हो गई। दूसरा विवाह करने की बजाय उन्होंने पिता की प्रेरणा से मायके आकर पढ़ाई शुरू कर दी। इंटर पास करने के बाद गांधीवादी समाजसेविका राधा बहन से प्रभावित होकर सदा के लिए कौसानी के लक्ष्मी आश्रम में आ गईं।

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वर्तमान में आश्रम संचालिका नीमा बहन ने बताया कि बसंती बहन कुछ समय से पिथौरागढ़ में ही रह रही हैं उत्तराखंड के पिथौरागढ़ की रहने वाली बसंती देवी 14 साल की उम्र में ही विधवा हो गईं थीं, फिर उन्होंने अपने पिता के साथ मिलकर समाज सेवा की मुहिम शुरू की। आज वह महिलाओं के खिलाफ समाज में फैली हुई कुरीतियों को दूर करने का काम कर रही हैं, इसके अलावा पर्यावरण को लेकर भी उनकी सक्रियता बनी हुई है। पंचायतों के भीतर भी महिला सशक्तिकरण पर बसंती देवी का असर अब खुलकर दिखने लगा है। पर्यावरण संरक्षण की धर्मयोद्धा कही जाने वाली 64 वर्षीय बसंती देवी ने 14 वर्ष की आयु में अपने पति को खोने के बाद कभी सोचा तक नहीं था कि कौसानी आश्रम की यात्रा उन्हें सामाजिक कार्य के लिए प्रेरित करेगी और आगे चलकर उन्हें प्रतिष्ठित पद्म पुरस्कार मिलेगा।

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सेव कोसी मूवमेंट और पर्यावरण संरक्षण के लिए 2022 में पद्म सम्मान पाने वाली बसंती देवी को महिला सशक्तीकरण की पैरोकार भी माना जाता है। उन्होंने अपने 40 साल के कार्यों को याद करते हुए कहा कि वह एक रिश्तेदार से मिलने के लिए अल्मोड़ा में महिला कौसानी आश्रम गई थीं और वहां के माहौल से प्रेरित एवं प्रभावित हुईं, जो छूआछूत तथा सामाजिक भेदभाव की बुराई से मुक्त था। देवी ने कहा, “मेरा जन्म 1958 में पिथौरागढ़ जिले के कनालीछीना ब्लॉक के दीगरा गांव में हुआ था। जब मैं पांचवीं कक्षा में थी, मेरी शादी 11वीं कक्षा के एक छात्र से हो गई। लेकिन शादी के शीघ्र बाद मेरे पति की मृत्यु हो गई और मैं विधवा हो गई। “उनके रिश्तेदारों ने जब उन्हें फिर से शादी करने के लिए मनाने की कोशिश की थी, तब देवी ने अपने पिता से आग्रह किया कि वह इसके बजाय पढ़ाई जारी रखना चाहती हैं।

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देवी ने कहा,”उन दिनों मेरे रिश्तेदार का एक अशक्त लड़का सरला बहन द्वारा स्थापित महिला आश्रम कौसानी में अध्ययन कर रहा था। जब मैं वहां उससे मिलने गई तब मैं वहां के माहौल से, जो छुआछूत और भेदभाव की बुराई से मुक्त था और महिलाओं की गरिमा से पूर्ण था, इतनी प्रभावित हुई कि मैंने अपने पिता की सहमति से वहीं रहने का फैसला कर लिया।”उन्होंने कहा कि आश्रम में आने के बाद उन्हें कोसी नदी बेसिन के गांवों में जल और पर्यावरण संरक्षण का कार्य सौंपा गया क्योंकि वहां जलस्रोतों का जलस्तर तेजी से गिर रहा था। देवी ने कहा,जब हमने कोसी इलाके में काम शुरू किया तो महिलाओं की स्थिति दयनीय थी। वे जंगल में ईंधन की लकड़ी एकत्र करने जाती थीं और खेतों में काम करती थीं। मैंने उनसे पेड़ नहीं काटने का अनुरोध किया क्योंकि पेड़ों की कटाई के चलते इलाके का जल स्तर घट रहा था।”देवी और उनकी टीम ने बड़े पेड़ों की कटाई रोकने के लिए वन विभाग से भी लड़ाई लड़ी।

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उन्होंने कहा,जब गांव की महिलाएं मेरी सलाह मानने के लिए राजी हो गईं तब हमने उन्हें कौसानी से सोमेश्वर में कतली गांव तक करीब 50 गांवों में महिला संगठनों में शामिल किया।”देवी ने कहा, “महिलाओं ने अब समाज कार्य में भाग लेना शुरू कर दिया है। वह पेड़, पर्यावरण संरक्षण, महिला सशक्तीकरण करने और ग्रामीणों के बीच शराब का सेवन खत्म करने के लिए 20 वर्षों तक कोसी क्षेत्र में 50 गांवों का दौरा करती रहीं। उन्होंने कहा कि उनकी मेहनत रंग लाई और कोसी क्षेत्र के कभी शुष्क हो चुके इलाके में अतिरिक्त जल संचित हो गया। उन्होंने कहा कि सोमेश्वर के ग्रामीणों ने धान की रोपाई शुरू कर दी। देवी को 2016 में नारी शक्ति पुरस्कार भी प्रदान किया गयाथा।बसंती देवी ने सबसे पहले 2003 में कोसी नदी को बचाने के लिए महिलाओं का एक संगठन बनाया। इस संगठन के माध्यम से उन्होंने वनों के दोहन को रोकने का कार्य किया। शुरुआत में उन्हें निराशा लगी, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। वह महिलाओं को समझाने में कामयाब हो गईं कि अगर जंगल और पानी नहीं बचा तो सब बर्बाद हो जाएगा। उनकी इस अभियान से पेड़ों के कटान पर रोक लगी और सरकार ने भी उनके अभियान को सराहा। पर्यावरण के संरक्षण और समाज सेवा के कार्यों में पूरा जीवन समर्पित करने वाली बसंती देवी को 2022 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया।

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उन्होंने महिलाओं को घरेलू हिंसा और उत्पीड़न से बचाने के लिए भी जन जागरुकता अभियान चलाया है, आज बसंती देवी महिला  सशक्तिकरण के लिए एक मिसाल बन चुकी है।  पद्मश्री के अलावा बसंती देवी को देश का सर्वोच्च नारी शक्ति पुरस्कार भी मिल चुका है। कौसानी आश्रम की एक आकस्मिक यात्रा ने उन्हें सामाजिक कार्य करने के लिए प्रेरित किया और उन्होंने वहीं रहने और मानवता की सेवा में अपना जीवन समर्पित करने का फैसला किया। आश्रम में, उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी करने के साथ-साथ दूर-दराज के गाँवों में बच्चों के लिए मनोरंजन केंद्र, बाल बाड़ी खोलने के साथ जुड़ गईं, जो उनके पोषण पर भी ध्यान देता था।इसके बाद उन्हें कोसी नदी बेसिन के गांवों में पानी और पर्यावरण को बचाने का काम दिया गया क्योंकि वहां जल स्रोतों का स्तर लगातार घट रहा था। उत्तराखंड में कोसी नदी एक महत्वपूर्ण संसाधन है। नदी बिहार में बड़ी बाढ़ के लिए जिम्मेदार है जो हजारों हेक्टेयर भूमि और दस लाख लोगों को प्रभावित कर सकती है। देवी ने एक लेख पढ़ा जिसमें अनुमान लगाया गया था कि यदि पेड़ों की कटाई वर्तमान दर से जारी रही तो एक दशक में नदी का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। वह स्थानीय महिलाओं से बात करने गई और उन्हें बताया कि यह उनका जंगल और उनकी जमीन है और नदी के सूख जाने के बाद वे क्या करेंगी। यह लोगों को समझाने लगा और दोनों ग्रामीणों के साथ-साथ लकड़ी बनाने वाली कंपनियां नई लकड़ी काटने के लिए तैयार हो गईं। ग्रामीणों ने सहमति व्यक्त की कि वे पुरानी लकड़ियों को ही जलाएंगे।  पर्यावरण संरक्षण के लिए संघर्षरत बसंती बहन ने सूखती कोसी नदी का अस्तित्व बचाने के लिए महिला समूहों के माध्यम से सशक्त मुहिम चलाई। घरेलू हिंसा और महिला उत्पीडऩ रोकने के लिए उनका जनजागरण आज भी जारी है उत्तराखंड की महिलाओ के श्रम को पहचान, उन्हे पद्मश्री प्रदान की गई है। उत्तराखंड की मेहनतकश महिलाओ की बदोलत ही उत्तराखंड चलायमान है। उत्तराखंड के हरे-भरे पहाडो को जिंदा रखना है तो, जंगल को बचाऐ। जंगल मे आग लगने पर बुझा।

(लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं)

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