Uttarakhand: भारतीय वन सेवा के इस सेवानिवृत्त अधिकारी के महत्वपूर्ण सुझावों (Important suggestions) से पर्वतीय राज्य उत्तराखंड के विकास और भावी स्वरूप को दी जा सकती है नई दिशा
दीप चंद्र पंत
23 साल का उत्तराखंड आज भी मूलभूत बुनियादी सुविधाओं के लिए जूझ रहा है। पृथक पर्वतीय राज्य उत्तराखंड के विकास और भावी स्वरूप को लेकर कुछ महत्वपूर्ण सुझाव समीचीन और प्रसांगिक प्रतीत होते हैं, जिनको अपनाकर एक सशक्त और सुखद राज्य की नींव रखी जा सकती है।
सर्वोदय, स्वराज और स्वरोजगार आधारित दृष्टिकोण राज्य और जनता की आर्थिक दशा सुधारने हेतु विकसित किया जाना आवश्यक है। इस संदर्भ में लोकनायक जयप्रकाश नारायण द्वारा दिखाई गई दिशा उपयुक्त हो सकती है। स्वराज का दृष्टिकोण लोगों की अनावश्यक भागदौड़ बचाएगा और शासन और न्याय स्थानीय स्तर पर सुलभ हो सकता है।
राज्य की भौगोलिक और भूगर्भीय स्थिति अनुरूप विकास की दिशा और स्वरूप तय किया जाना। इस हेतु महान वैज्ञानिक डा. डीडी पंत जिनके द्वारा पृथक पर्वतीय राज्य की कल्पना की गईं का नजरिया प्रसांगिक हो सकता है।
ग्रीष्म काल में दवानल का कारण बन रहे पिरुल को आग के बजट से ग्रामीणों द्वारा समेटने और प्रवजलनशीलता के कारण कंपैक्ट कर शवदाह और डामरीकरण हेतु प्रकाष्ठ बनाया जा सकता है।
महाराष्ट्र में किसी एनजीओ द्वारा एग्री वेस्ट से मोक्ष प्रकाष्ठ बनाना और नगर निगम द्वारा शवदाह हेतु अनुमति दिया जाना पता चला है। भविष्य में निकटवर्ती राज्यों से प्रदूषण का कारण बन रहे पराली को आयात कर रोजगार की नई संभावना उत्पन्न की जा सकती है।
कृषि क्षेत्र में सुवारों द्वारा की जा रही क्षति और तेंदुए के बढ़ते आतंक को रोकने हेतु कृत्रिम सियार पुनर्जनन कर जंगल में छोड़ना मानव वन्य जीव संघर्ष तथा पलायन को रोकने की दिशा में सार्थक प्रयास हो सकता है। भोजन की तलाश में गए इन जानवरों की अनुपस्थिति में नवजात शिशुओं को सियार चट कर प्राकृतिक नियंत्रक का कार्य करता हूं।
आवश्यक सुविधाओं के अभाव में पलायन तीव्र गति से बढ़ा है। विकास के नाम पर भूगर्भीय रूप से कमजोर हिमालयी पहाड़ियों को जलेबीनुमा सड़कों से काटने पर भूगर्भीय अस्थिरता ही उत्पन्न हो रही है । दूरस्थ क्षेत्रों तक पहाड़ काटकर सड़क बनाने की जगह उसी व्यय से यदि वर्तमान सड़कों के समीप ही उपयुक्त स्थलों का चयन कर दूरस्थ गांवों को बसाने और वहां आवश्यक सुविधाओं को जुटाया जा सके तो पलायन रोका जा सकता है।
यूरोप और अमेरिका भी पहाड़ हैं पर सुविधाओं के कारण पलायन की नौबत नहीं आती। दूरस्थ गांवों में होमस्टे के माध्यम इको टूरिज्म विकसित किया जा सकता है। जिस हेतु ट्रैक रूट और रोपवे बनाए जा सकते हैं। विकास का वर्तमान स्वरूप उपयुक्त प्रतीत नहीं होता। यदि जोशीमठ ही नहीं रहा तो बद्रीनाथ और केदारनाथ कैसे जा पाएंगे?
सगन्ध पौध कृषिकरण उत्तराखण्ड की अर्थव्यवस्था को नई दिशा दे सकता है। इससे न केवल गंध के कारण सुवर प्रतिकर्षित हो सकते हैं, अपितु सुगंधित तेल व इत्रादि के लघु उद्योग बेरोजगारी व पलायन की समस्या का समाधान भी कर सकते हैं। बाड़ों में चारों ओर सगन्ध पौध रोपण कर फल, फूल, भेषज, चाय, मसाले आदि लाभप्रद फसल पैदा की जा सकती हैं। तीखी गंध और स्वाद के कारण हल्दी, मिर्च, अदरक आदि पैदा हो सकते हैं। प्रजातियों का चयन स्थल और सुविधा के अनुसार किया जा सकता है।
(प्रतिवर्ष लगने वाली आग रोक वनों की जैव विविधता संरक्षण कर हानिकारक वन्य जीव आबादी की ओर नहीं आयेंगे तथा मानव वन्यजीव संघर्ष की नौबत नहीं आयेगी। पर इस हेतु स्वराज की धारणा विकसित किया जाना आवश्यक है। जब तक लोग जंगल को अपनी संपदा नही समझेंगे, तब तक वे इसे नहीं बचायेंगे। लोकतंत्र में है तो सब जनता की ही संपत्ति। लोकतंत्र तभी सफल हो सकता है जब जनता को लगे कि वास्तविक नियंत्रण उसका ही है।)
उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति बड़े उद्योग और निर्माण कार्य हेतु उपयुक्त नहीं है। ऐसे में कुटीर उद्योगों की स्थापना के साथ शिक्षा, पर्यटन और फिल्म निर्माण ( प्राकृतिक सौंदर्य के कारण) के हब के रूप में राज्य को विकसित किया जा सकता है।
ग्राम स्तर पर उपयोज्य और विक्रय योग्य लाभकारी फसलों का उत्पादन और कुटीर उद्योगों की नीति तथा विपणन के साधन विकसित करने की दिशा में सोचा जा सकता है। इससे आर्थिक समृद्धि भी आयेगी और पलायन भी रुकेगा।
इंजिनयर्ड वुड जो वर्तमान में महानगरों के फर्नीचर और बहुमंजिला इमारतों के चोखट, दरवाजे आदि हेतु काम आ रहा के कुटीर उद्योग की संभावना भी देखी जा सकती है।
उक्त सभी कार्यों में अग्निवीर, शिक्षामित्र आदि को प्राथमिकता देकर भविष्य के असंतोष की संभावना को समाप्त किया जा सकता है। यदि सत्ताधारी दल इस राह पर कार्य करते हैं तो आगामी चुनाव उनके लिए जनविश्वास की नई संभावना के रूप में देखा जा सकता है।
(लेखक भारतीय वन सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं।)