रूट स्टाक आधारित सेब प्रजाति से संवरेगी जिंदगी - Mukhyadhara

रूट स्टाक आधारित सेब प्रजाति से संवरेगी जिंदगी

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उत्तरकाशी। आने वाले समय में रंवाई घाटी में रूट स्टाक आधारित सेब बागवानी आय का बडा जरिया बन सकती है। जो ग्रामीण काश्तकारों की आर्थिकी को मजबूत करने के साथ ही रोजगार का बडा जरिया बन कर पलायन पर रोक लगाने में सहायक होगा। घाटी में इसकी शुरुआत कोका-कोला तथा इंडो डच कम्पनी ने संयुक्त रूप से कर दी है।
कोका-कोला व इंडो डच हार्टिकल्चर कम्पनी के संयुक्त प्रयास से रवांई घाटी के मध्यम ऊंचाई वाले क्षेत्रों को रूट स्टाक फलपटी के रूप में विकसित करने की योजना का क्रियान्वयन शुरु कर दिया है।
योजना के तहत कंपनी ने रवांई घाटी के बंगाण क्षेत्र में 2017-18 में 100 यूनिट रूट स्टाक पर आधारित सेब बाग लगाये हैं। गुरुवार को इटली के बागवानी विशेषज्ञ व वीटा फ्रूट कंपनी इटली के इंडोडच हार्टिकल्चर के पाटनर फलोरियन ने पुरोला के डेरिका में डेमोस्ट्रेशन सेंटर में रूट स्टाक पर आधारित एक वर्ष पूर्व लगाये गये सेब उद्यान का निरीक्षण कर उद्यानपतियों को मध्यम ऊंचाई में पैदा होने वाली सेब,खुमानी,पल्म,आड़ू,नाशपत्ति,अखरोट आदि की नई बागवानी तकनीकी की जानकारी दी।
इटली के उद्यान विशेषज्ञ डा0 जेकब ने जहां रूट स्टाक बागवानी के जरिए लोगों को शीघ्र अधिक फल उत्पादन कर स्वरोजगार के रूप में बहुत उपयोगी बताते हुए जानकारी दी कि विदेशों में खासकर अमेरिकी वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गई रूट स्टाक एम-6,एम-116,एम-111 तथा आधुनिक सीरीज़ के रूप में जी- 202,जी-16, व जी-41 सहित कई रोगरोधक क्षमता वाली विकसित प्रजातियां किसी भी प्रकार की जमीन में बागवानी करने की अपील की।
तकनीकी विशेषज्ञ फलोरियन ने कहा कि एक एकड़ में 100 पेड लगाये जाते हैं वहीं नयी विधि से 1 हजार से 1200 पेड लगाये जा सकते हैं जो प्रथम वर्ष से ही फल देने लगेगें जो हर वर्ष 4 हजार से 6 हजार किलो तक फल देगा। डा0 फलोरियन ने पौध रोपण की जानकारी देते हुए बताया कि नालियों में पौधे एक मीटर की दूरी पर लगाये जाने चाहिए साथ ही लाईन से लाईन की दूरी तीन मीटर होनी चाहिए ।
विशेषज्ञों ने बागवानों को पेडो में लगने वाली फफूंदीरोग,सफेद चूर्ण रोग यानी पेड के पते सफेद होना,कैंकर,माईट व जड़ों का सडना, गलना के बारे में जानकारी देते हुए फफूंदी को मेकाजेब डायथेन एम 45, सफेद चूर्ण के लिए केराथिन का छिडकाव व कैंकर के लिए अलसी के तेल,कापर औक्सीक्लोराइड,सिन्दूर का घोल बनाकर पेड के घाव पर लेप लगाने का सुझाव दिया।
विशेषज्ञों ने पोरा,मेहराना,आराकोट,कास्टा समेत फरवरी मार्च में लगाये गये पौधों का निरीक्षण किया तथा लोगों को पेडो पर लगने वाले रोगों व उपचार के बारे में बताया।

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