ज्वलंत सवाल: उत्तराखंड में पुलों के गिरने का कारण (cause of bridge collapse) खराब निर्माण या अवैध खनन!
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड में नदियों व पहाड़ों का सीना छलनी करने वाला अवैध खनन तेजी से फल फूल रहा है। चाहे वह बजरी, पत्थर या रेत का खनन हो अथवा खडिय़ा का, हर जगह खनन माफिया अवैध खनन में लगे हैं। इसका एक मुख्य कारण अवैध खनन के जरिये मिलने वाले खनिज का बाजार भाव से सस्ता होना है। दूसरा कारण खनन नीति में राजस्व लक्ष्य को बढ़ाने के लिए रायल्टी की दर को बढ़ाना है। अवैध खनन में न तो रायल्टी चुकानी पड़ती है और न ही माल वाहनों को ले जाने के लिए रवन्ना कटता है। इस कारण खनन माफिया इसे सस्ती दरों पर बेचते हैं।अवैध खनन में काफी पैसा होने के कारण खनन माफिया निरीक्षण व जांच दलों पर हमला करने से नहीं चूकते। उत्तराखंड में भी कई ऐसे प्रकरण सामने आ चुके हैं। सफेदपोशों से संरक्षण मिलने के कारण इन पर कभी ठोस कार्रवाई नहीं हो पाती।
उत्तराखंड में खनन का बड़ा कारोबार है। वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए सरकार ने 1000 करोड़ रुपये का लक्ष्य रखा है। वर्ष 2021-22 में यह लक्ष्य 750 करोड़ रुपये था। इसके सापेक्ष विभाग को 575 करोड़ का राजस्व मिला। जानकारों की मानें तो प्रदेश में स्वीकृत खनन से कहीं बड़ा बाजार अवैध खनन का है। नदी तल उपखनिज पूरे प्रदेश में पाया जाता है। दूसरे स्थान पर प्रदेश में लाइम स्टोन व सोपस्टोन, यानी चूने के पत्थर व खड़िया का खनन होता है। अवैध खनन के व्यापार से जुड़े माफिया अमूमन ऐसी नदियों में खनन के लिए सक्रिय रहते हैं, जहां खनन
प्रतिबंधित है। यहां इनका कोई प्रतिस्पर्धी नहीं होता। इन्हें रोकने के लिए जाने वाले वन विभाग, राजस्व विभाग, खनन विभाग और पुलिस विभाग के दलों से इनका टकराव होता रहता है।
अवैध खनन में काफी पैसा होने के कारण कई सफेदपोश भी खनन माफिया को संरक्षण देते हैं। इसके चलते अवैध खनन करने वालों पर कभी ठोस कार्रवाई नहीं हो पाती। इस कारण खनन माफिया का हौसला इतना बढ़ जाता है कि ये सरकारी कर्मचारियों व अधिकारियों पर भी हमला करने से नहीं घबराते। पूर्व में ऐसी कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं, जब खनन माफिया अधिकारियों पर हमले कर चुके हैं। अवैध खनन रोकने के लिए नीति में कोई ठोस व्यवस्था नहीं है। जो व्यवस्था है, वह भी अमल में नहीं आ पाई है।कहने को नीति में सभी व्यवस्थाओं को आनलाइन करने, वाहनों में जीपीएस ट्रेकिंग सिस्टम लगाने, ई-रवन्ना काटने व मोबाइल चेकपोस्ट बनाने की व्यवस्था की बात कही गई है, लेकिन ये बेहद धीमी गति से आगे बढ़ रही हैं।
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इस मानसून सीजन में अभी तक प्रदेश के 83 पुल क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। यहां पुलों पर अस्थायी यातायात खोलने के लिए 3.87 करोड़ रुपये चाहिए। वहीं, सभी पुलों को पुरानी अवस्था में लाने के लिए 92.47 करोड़ रुपये खर्च होंगे। बेतहाशा खनन के चलते नदियों पर बने पुलों की नींव खोखली हो चुकी है, जिससे पुल कभी भी गिर सकते हैं। वक्त रहते हुए सतर्क रहने की आवश्यकता है इसके लिए कोई भी कठोर कदम उठाए जा सकते हैं। उत्तरााखंड सरकार अवैध खनन को रोकने के लिए कई कदम उठा चुकी है। लेकिन अवैध खनन अभी भी जारी है। सरकार को अवैध खनन को रोकने के लिए और कड़े कदम उठाने की जरूरत है। सरकार को अवैध खनन करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। सरकार को अवैध खनन करने वालों को सजा देनी चाहिए। अवैध खनन एक गंभीर समस्या है। यह नदियों को, पुलों को, पर्यावरण को और लोगों को नुकसान पहुंचा रहा है।
सरकार को अवैध खनन को रोकने के लिए और कड़े कदम उठाने की जरूरत है. सरकार की खनन नीति पर सवाल उठाते हुएकहते हैं कि रेत बजरी के लिए नदियों में होने वाला खनन माइनर मिनरल के तहत आता है, जिसको लघु वनोपज भी कहा जाता है, वर्ष 1993 में हुए 73 वें संशोधन के अनुसार लघु वनोपज का अधिकार भी पंचायतों को मिलना चाहिए, यदि ये अधिकार पंचायतों को मिलता तो खनन करने का अधिकार पंचायतों के पास होता जिससे गांव के बेरोजगार युवाओं को विभिन्न प्रकार के रोजग़ार गांव के आस पास ही मिल जाते और गांव का युवा अपने गाँव में जिम्मेदारी के साथ खनन करता और यदि कोई अवैध गतिविधि भी करता तो उसको रोका जा सकता था, लेकिन ऐसा नहीं है। आज अधिकांश खनन माफ़िया क्षेत्र के बाहर से आते हैं जो केवल अपने मुनाफे के बारे में सोचते हैं, क्षेत्र की जनता और क्षेत्र की ज़मीन को होने वाले नुकसान के बारे में नहीं।
आज खनन माफ़िया पर्वतीय जिलों तक पहुंच चुका है, जो राज्य की शांति प्रिय संस्कृति को भी प्रभावित कर रहा है। आज सरकार से यह
सवाल पूछना बहुत जरुरी हो जाता है कि क्यों सरकार अवैध खनन के इतने बड़े मुद्दे को लेकर कोई ठोस निति नहीं बना पा रही है? क्यों73 वें संशोधन को पूर्ण रूप से लागू नहीं किया जा रहा है? अंधाधुंध होने वाले खनन के कारण राज्य के तमाम पुल क्षतिग्रस्त हुए हैं, सरकार ने राज्य के अंदर कोई भी नदी नाला, गदेरा ऐसा नहीं छोड़ा है। जबकि स्थानीय लोगों का कहना है कि पुल गिरने के कारण यहां होने वाला अवैध खनन है। जिसके बारे में प्रशासन को कई बार अवगत कराया गया, पर कभी कोई कार्यवाई नहीं हुई। अधिकतर सोशल मीडिया यूजर्स ने स्पीकर के
अधिकारियों की जवाबदेही तय किए जाने के अंदाज को बेहतर बताया है। वहीं, कुछ यूजर्स ने अपने रिएक्शंस में कहा है कि काश, इसी अंदाज में पहले ही अफसरों की जिम्मेदारी फिक्स की जाती तो पुल टूटने की नौबत नहीं आती।
(लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )