प्रतिभा: प्रख्यात कुमाऊंनी गीत ‘झन दिया बौज्यू छाना बिलौरी’ की गायिका बीना तिवारी (Beena Tiwari)
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
अल्मोड़ा निवासी रमेश चन्द्र तिवारी (जो शिक्षा विभाग में डिप्टी डायरेक्टर रहे) के पुत्र मुकुल कुमार तिवारी के साथ 22 जनवरी 1976 को बीना दी का विवाह हुआ जो डिग्री कॉलेज में अध्यापक थे। बीना दी का मायका मूल रुप से अल्मोड़ा के खल्ट में है और ससुराल अल्मोड़ा के ही चौंसार में। इनके ससुर मूल रुप से हवालबाग के ज्योली गांव के थे। प्रसिद्ध जनकवि गिरीश तिवारी ‘गिर्दा ‘ बिरादरी के आधार पर बीना दी के जेठ थे. बीना दी के दो लड़के यादवेन्द्र और चिन्मय हैं। दोनों हल्द्वानी में ही रहते हैं.।यादवेन्द्र की शादी हो चुकी है। उनके एक लड़का और एक लड़की है, जबकि चिन्मय अभी अविवाहित हैं। वह रामपुर के दयावती मोदी एकेडमी में संगीत की अध्यापक भी कुछ सालों तक रहीं। बदायूँ के स्नातकोत्तर महाविद्यालय का प्रधानाचार्य रहते हुए ही बीना दी के पति मुकुल तिवारी जी का असमय निधन 24 अक्टूबर 2005 को हो गया।
बढ़ती उम्र के कारण वह बहुत अधिक इधर – उधर आने – जाने की स्थिति में नहीं हैं। पर, अपने समय में कुमाउनी लोकगीत, संगीत को बहुत कुछ देने वाली बीना दी को आज सामाजिक तौर पर उपेक्षा का दंश बहुत सालता हैं। कहती हैं कि जिन्होंने कुमाउनी लोक संगीत, गीत को
एक पहचान दी और नई ऊँचाई तक पहुँचाया उन्हें यह समाज कैसे भूल सकता है? क्या समाज में इतना गैर जरुरी बदलाव आ गया है कि वह अपने लोगों को उनके जीते जी उन्हें भुला देने पर आमादा है ? उनकी यह पीड़ा हमारे समाज के उस आइने को दिखाता है, जो बहुत जल्द ही
अपनी पूर्व पीढ़ियों के योगदान को एक ही झटके में भूला देने को आतुर दिखाई दे रहा है। बीना दी की इस पीड़ा का मेरे पास कोई जवाब नहीं था। वह दौर रेडियो का था, बल्कि रेडियो तक पहुंच भी कुछ सम्पन्न घरों तक सीमित थी।
एक प्रकार से कहें तो रेडियो से ट्रांजिस्टर युग का संक्रमण काल था पिछली सदी के साठ का दशक। जब बड़े आकार के बिजली से चलने वाले
रेडियो की जगह बैटरी से चलने वाले पोर्टेबल ट्रांजिस्टर ने दखल दी और आम लोगों तक अपनी पहुंच बनानी शुरू की। समाचारों के माध्यम से सूचनाओं को प्राप्त करने, संस्कृति , संगीत, कला के प्रसार के साथ ही मनोरंजन का यह एक मुख्य जरिया बन गया। 1962 में भारत-चीन
युद्ध के बाद पर्वतीय क्षेत्र के सीमान्त जिलों को राष्ट्रीय धारा में जोड़ने के उद्देश्य से वर्ष 1963 में आकाशवाणी लखनऊ ने शुरू किया उत्तरायण कार्यक्रम।
शुरूआती दौर में 15 मिनट से प्रारम्भ होकर, इसने इतनी लोकप्रियता हासिल कर ली कि इसे पूरे एक घण्टे का कर दिया गया। उत्तराखण्ड के पर्वतीय जनजीवन को दिन भर के जी-तोड़ मेहनत के बाद शाम 5.45 बजे उत्तरायण कार्यक्रम का बेसब्री से इन्तजार रहा करता था। अपने पहाड़ से दूर देश की सीमाओं पर मुस्तैद फौजी जवान भी उत्तरायण कार्यक्रम में बजने वाले कुमाऊनी व गढ़वाली लोकगीतों को सुनकर क्षणभर के लिए खुद को परिवार के ही इर्द-गिर्द पाते। उस दौर में गिने-चुने गायक कलाकार हुआ करते , जिनके गीत आकाशवाणी लखनऊ से इस कार्यक्रम में प्रसारित होते। शेर दा अनपढ़, गोपाल बाबू गोस्वामी , गोपाल दत्त भट्ट, मोहन सिंह रीठागाड़ी ,रमेश जोशी ,हीरा सिंह राणा, केशव अनुरागी, चन्द्र सिंह राही , जीत सिंह नेगी,नरेन्द्र सिंह नेगी आदि गायकों के अलावा गायिकाओं में विशेष रूप से कुमाउनी लोकगीतों के गायन में वीना तिवारी एक ऐसा नाम था, जिनका गीत कार्यक्रम में लगभग हर रोज सुनने को मिलता।
उस दौर की अन्य कुमाउनी गायिकाओं में कबूतरी देवी तथा चन्द्रकला पन्त के अतिरिक्त दूसरे नाम मुझे याद नहीं आ रहे हैं। जहॉ मुझे याद है कि हर सोमवार व बृहस्पतिवार को कुमाउनी व गढ़वाली लोकगीतों का फरमाईशी कार्यक्रम हुआ करता, जिसमें वीना तिवारी एक ऐसा नाम था , जिनके गीत एक ही फरमाईशी कार्यक्रम में कई-कई बार सुनने को मिलते। टेलीविजन तो था नहीं जो लोग गायक अथवा गयिका की शक्ल देख पाते, बस रेडियो में उनके गीत सुनकर ही उनकी काल्पनिक छवि बना लेते। वीना तिवारी एक ऐसा नाम था जिसे शक्ल-सूरत से भले कोई न जानता हो , कम से कम गायिका के नाम से हर श्रोता परिचित था और उनके गाये गीतों को बतौर बाथरूम सिंगर ही सही गुनगुनाता जरूर था। वरिष्ठजन तो उनके गीतों के साक्षी रहे ही, लेकिन आज 30 की उम्र पार कर चुके युवा लोग भी वीना तिवारी के गीतों को सुनते हुए ही बढ़े हुए।
लोकगायकों के एक से एक बेहतरीन गीत होते हैं लेकिन उनमें से कोई एक गीत लोकगायक की स्थायी पहचान बन जाता है। “झन दिया
बौज्यू छाना बिलोरी” एक ऐसा ही लोकगीत है, जो बरबस बीना तिवारी का स्मरण करा देता है। संभवतः उनका आकाशवाणी के लिए गाया पहला गीत तो ज् के संध्या झूली रै छ ज् था लेकिन ये भी सच है कि “झन दिया बौज्यू छाना बिलोरी” गीत को सर्वप्रथम गाया वीना तिवारी ने ही
था। हालांकि इसे बाद में अन्य गायकों द्वारा भी गाया गया , यहां तक कि हाल ही में इस गीत को आसाम मूल के बालीवुड गायक पापोन ने भी गाने का प्रयास किया है, जो सोशल मीडिया में वायरल हो रहा है। लेकिन “छाना बिलोरी” गीत तो वीना तिवारी नाम से चिपककर उनकी अमिट पहचान बन गया।
शेर दा अनपढ़ के साथ जुगलबन्दी में वीना तिवारी द्वारा गाया गीत- ओ परूवा बौज्यू चप्पल के ल्याछा यस भला कौन भूला है ? अगर इस हास्य गीत को छोड़ दें , तो जहॉ तक मैं सुन पाया हॅू , उन्होंने वही गीत गाये है, जिनके भावों में गम्भीरता है तथा पर्वतीय लोकजीवन व लोकसंस्कृति की छवि झलकती है। बेटी की ससुराल पर विदाई का चित्र प्रस्तुत करता- बाट लागी बरात चेली बैठ डोली मा अथवा “दे दिया बाबा ज्यू कन्या को दान” किस पत्थर दिल इन्सान की भी ऑखे नम नहीं कर देता। 1963 में आकाशवाणी लखनऊ द्वारा उत्तरायण कार्यक्रम की शुरूआत की जिम्मेदारी सौंपी गयी। गढ़वाल के रंगमंचीय कलाकार जीत जरधारी तथा कुमाउनी साहित्य के मर्मज्ञ वंशीधर पाठक “जिज्ञासु” को। जो उत्तरायण के संवाद कार्यक्रमों में परस्पर एक दूसरे को दद्दा वीर सिंह और भुला शिवानन्द के नाम से संबोधित करते।
जिज्ञासु उत्तरायण कार्यक्रम के प्रति कुछ इस तरह समर्पित थे, कि लखनऊ की गलियों में पैदल ही खाक छानते और ढॅूढ-ढॅूढकर पहाड़ियों के मुहल्लों से पर्वतीय प्रतिभाओं को कार्यक्रम से जोड़ते। वीना तिवारी का परिवार भी तब लखनऊ में रहता। एक ओर वे भातखण्डे संगीत महाविद्यालय से संगीत की शिक्षा ले रहे थी, उसी दरम्यान वे आकाशवाणी लखनऊ से बी हाई ग्रेड कलाकार के रूप में जुड़़ गयी। संयोगवश जिज्ञासु से मिलना सोने में सुहागा था। उनके कुछ ही गीतों के प्रसारित होने के बाद उनकी खनकती आवाज का हर एक कायल हो गया। फिर तो वो दौर भी आया कि हर गीतकार अपने गीत को वीना तिवारी की आवाज में ही गंवाना चाहता था। उस समय के कुमाउनी कवि गौर्दा, चारूचन्द्र पाण्डे , गोपाल दत्त भट्ट, शेरदा अपनढ़, गिरीश तिवाड़ी ज्गिर्दाज्, वंशीधर पाठक ज्जिज्ञासुज् और हीरा सिंह राणा के कई गीतों को वीना तिवारी ने स्वर दिया। चारूचन्द्र पाण्डे द्वारा लिखा और वीना तिवारी द्वारा गाया होली गीत – फूल बुरांशी को कुमकुम मारो आज भी उतना ही लोकप्रिय है , जितना तब रहा होगा। उनके अन्य चर्चित गीतों में “आ लिली बाकरी ली ली छू-छू” पारा का भिड़ पन जांणियां बटोवा रे तथा ज्पारा बुरूशी फूलि रैछ तथा कुमाउनी लोरी गीत जैसे दर्जनों गीत हैं।
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पेशे से संगीत शिक्षिका वीना तिवारी ने न केवल कुमाउनी लोकगीतों को अपने सुमधुर स्वर से झंकृत किया बल्कि, गढ़वाल की प्रचलित लोकगाथा रामी बौराणी के पार्श्व गायन सहित कई लोकगीतों को उसी अधिकार पूर्वक गाया, जिस तरह कुमाउनी लोकगीतों में उनकी पकड़ थी । वर्ष 1964 से शुरू हुआ संगीत का उनका सफर अनवरत् जारी है और उम्र के इस पड़ाव में भी हम उनसे लोकसंगीत की दशा व दिशा पर मार्गदर्शन की अपेक्षा करते हैं । न केवल लोकगीतों तक उनका गायन सीमित रहा बल्कि आकाशवाणी रामपुर से कई गीत व गजल भी उन्होंने गाये। लेकिन दुख इस बात का है कि वे इनका संग्रह नहीं कर पायी। आज की तरह उस समय ध्वन्याकंन की सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं थी , आकाशवाणी द्वारा मैग्नेटिक टेप पर गीतों की रिकार्डिंग होती थी , जो आकाशवाणी के संग्रहालय तक ही सीमित रहती । कैसिट का दौर तो
अस्सी के दशक में आया। वीना तिवारी को खुद याद नहीं कि उन्होंने कितने गीत आकाशवाणी से गाये, एक अनुमान के अनुसार वे बताती हैं कि लगभग चार-पांच सौ गीत तो उन्होंने गाये ही होंगे।
वीना तिवारी बताती हैं कि प्रारंभिक दौर में एक गीत रिकार्ड करने का भुगतान आकाशवाणी द्वारा मात्र 20 रूपये के चैक से किया जाता और उस समय वह धनराशि भी पर्याप्त लगती और वह पैसा लहण (फलीभूत) होता था। अस्सी के दशक में आम लोगों तक टेलीविजन के प्रवेश से रेडियो के प्रति लोगों का आकर्षण धीरे-घीरे कम होने लगा और लोग भूलने लगे उन रेडियो कलाकारों को जो कभी उनकी जिन्दगी का हिस्सा हुआ करते थे। जो कलाकार मंचीय थे, वे तो खुद को जिन्दा रख पाये, लेकिन वीना तिवारी ने न तो मंच से गायन किया और न दूसरे प्लेटफार्म पर कोई म्यूजिक एलबम बनाने की सोची। सिवाय नैनीताल में आयोजित माटी से मंच तक एक मंचीय कार्यक्रम के जिसमें उन्होंने रिश्ते में अपने जेठ लगने वाले गिर्दा के साथ साझोदारी की। हालांकि आकाशवाणी द्वारा समय-समय पर आयोजित होने वाले कन्सर्ट कार्यक्रमों में भागीदारी करती रही।
27 जनवरी 1978 को जब आकाशवाणी नजीबाबाद के उद्घाटन समारोह का कार्यक्रम था, तब भी उन्हें आमंत्रित किया गया। लेकिन आकाशवाणी के स्टूडियों व कन्सर्ट प्रोग्राम के अलावा मंचीय कार्यक्रमों में उनकी भागीदारी उतनी नहीं रही , कि श्रोता उनसे ज्फेस टू फेस ज् जुड़ सकें। पुराने दिनों के गौरवपूर्ण क्षणों को याद कर वे भावुक हो जाती हैं, वे नृत्य सम्राट बिरजू महाराज तथा भजन सम्राट अनूप जलोटा जैसे ख्याति प्राप्त कलाकारों से भी सम्बद्ध रहीं। आज वीना तिवारी के गाये कितने गीत आकाशवाणी संग्रहालय में संग्रहित होंगे, कहना मुश्किल है, लेकिन यदि सभी गीत संग्रहित हों तो उनका डिजिटलाइजेशन किया जाना लोकहित में होगा । सौभाग्य से वह पीढ़ी अभी जिन्दा है, जिन्होंने वीना तिवारी को खूब सुना है । जिसका प्रमाण है कि नई पीढ़ी के युवा लोगों की पहल पर कुमाऊनी शब्द सम्पदा के फेसबुक पेज पर म्यर
पहाड़ म्येरि पच्छ्याणश्रृंखला के अन्तर्गत उनका साक्षात्कार पिछले महीनों आयोजित किया गया।
लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार नवीन जोशी द्वारा उनका साक्षात्कार लिया गया , जिसमें कुरेद-कुरेद कर नवीन जोशी ने उनकी पुरानी स्मृतियों को तरोताजा किया और एक बार वर्षों से विस्मृत वीना तिवारी पुनः चर्चा में आई। इसी वर्ष दिल्ली की अभिव्यक्ति कार्यशाला द्वारा अभिव्यक्ति गौरव सम्मान से उन्हें नवाजा गया, किसी कलाकार को इससे अधिक चाहिये ही क्या? अब एक और सुखद खबर आई है कि आगामी 30 अप्रैल को वीना तिवारी को केदारनाथ साहनी ऑडिटोरियम में ज्यंग उत्तराखण्ड सिने अवार्ड 2022 के अन्तर्गत यंग उत्तराखण्ड लीजेंडरी सिंगर अवार्ड 2022 प्रदान किया जा रहा है । विस्मृत सी हो चुकी इस लोकगायिका को इस संस्था द्वारा याद किया गया , इसके लिए जूरी के सदस्यों के प्रति आभार तो बनता ही है। हकीकत तो ये है कि लोग कलाकार के व्यक्तित्व को लोग भले भूल जायें, लेकिन उनका समाज को जो अवदान रहता है, वह कभी भूला नहीं जाता।
वीना तिवारी का नाम भले लोग भूल जायें, लेकिन ज्छाना बिलोरी ज् गीत तो उनकी पहचान जीवन्त रखेगा। मॉ शारदे की वरद्पुत्री वीना तिवारी के गीतों के स्वरों में जो मिठास और सरसता है , लोकव्यवहार में भी वह उतनी ही सहज, सरल , सौम्य , मृदु भाषी एवं आत्मीयता से परिपूर्ण
है अपने लोगों से सदैव अपनी ही लोकभाषा में बात करना कुमाउनी के प्रति उनके अगाध स्नेहको दर्शाता है। हम उनके स्वस्थ एवं चिरायु जीवन की कामना करते हैं, ताकि लम्बे समय तक वे संगीत प्रेमियों का मार्गदर्शन व प्रेरणा देती रहें ।
( लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )