अवैध खनन (Illegal Mining) पर अंकुश की रोकथाम हमेशा से ही एक बड़ी चुनौती है
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखण्ड में अवैध खनन का काला कारोबार कुछ दशकों में ही जबर्दस्त कमाई का जरिया बन गया है। यह कारोबार राजनेताओं,अफसरों और माफियाओं की मिलीभगत की वजह से एक संगठित अपराध का रूप ले चुका है और जमकर फल फूल रहा है। खनन माफियाओं को न तो उत्तरा खण्ड हाईकोर्ट के निर्णयों की परवाह है और न जीरो टोलरेंस वाली उत्तराखण्ड सरकार का कोई डर। सभी निर्णय और आदेश खनन माफियाओं ने ठेंगे पर रखे हैं। सरकार के नुमाइंदे और शासन के तमाम बड़े अधिकारी इन खनन माफियाओं से मिलीभगत कर भ्रष्टाचार में लिप्त हैं लाखों करोड़ों के वारे न्यारे कर रहे हैं।
उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय के निर्णय एवं उत्तराखण्ड खनिज (अवैध खनन, परिवहन एवं भण्डारण निवारण) नियमावली 2021 के प्राविधानों का उल्लघंन उत्तराखंड में अब आम बात हो चुकी है। उत्तराखण्ड की सभी नदियों में पोकलेण्ड व जेसीबी मशीन के प्रयोग पर हाईकोर्ट उत्तराखण्ड में याचिकाकर्ता गगन पारसर द्वारा दाखिल याचिका संख्या 169/2022 पर 19/12/2022 के निर्णयानुसार एवं उत्तराखण्ड खनिज (अवैध खनन, परिवहन एवं भण्डारण निवारण) नियमावली 2021 के नियमों का जमकर उल्लंघन हो रहा है, जिसके अन्तर्गत नदी में खनन कार्य करने वाली पोकलैंड मशीनों एवं जेसीबी मशीनों को खान अधिकारी एवं राजस्व अधिकारियों द्वारा सीज़ करने के आदेश हैं। यदि ऐसा करता पाया गया तो मशीन मालिकों व खनन कारोबारियों पर लाखों रुपए का जुर्माना लगाया जाना है। इसके बावजूद मालिकों द्वारा अपने रसूख और सांठगांठ का प्रयोग करके इन मशीनों से खनन बेरोक टोक धड़ल्ले से कर रहे हैं। जब इन पोकलैंड व जेसीबी मशीनों को सीज़ किया जाता है तो खनन कारोबारी द्वारा आनन फानन में इनको छुड़ा लिया जाता है तथा जुर्माना वसूली की कोई रसीद भी सार्वजनिक नहीं की जाती है।
अवैध खनन में लिप्त इन खनन माफियाओं के खिलाफ किसी प्रकार की कानूनी कार्रवाई भी कभी सार्वजनिक नहीं की गई। अवैध खनन माफिया अपने रसूख और धन बल का प्रयोग करते हुए अपने पोकलैंड मशीनों और जेसीबी को छुड़ाने में हमेशा कामयाब रहते हैं तथा दिन-रात उत्तराखंड की नदियों का सीना चीर कर अवैध खनन में करोड़ों के वारे न्यारे कर रहे हैं।विस्तार पूर्वक इस मामले में बात की जाये तो
2,000 करोड़ रुपये से अधिक के वार्षिक कारोबार के साथ पर्यटन के बाद उत्तराखंड में खनन (ज्यादातर अवैध) को दूसरा सबसे बड़ा पैसा कमाने का स्रोत कहा जाता है। यह बात सर्वविदित है कि सभी खनन माफिया चुनावी चंदा एकत्रित करते हैं और सभी राजनीतिक दलों में उनकी हिस्सेदारी है।
हर वर्ष अवैध खनन के भ्रष्टाचार में लिप्त लगभग 150-200 करोड़ रुपये प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उत्तराखण्ड के आला अधिकारियों से लेकर राजनेताओं तक पहुंचता है, जिसमें अवैध खनन पर नाममात्र की कार्यवाही करते हुए आला अधिकारी अपनी कुर्सी बचाते हुए अपने अधीनस्थ छोटे कर्मचारियों पर रसूखदारों और खनन माफियाओं के दबाव में स्थानांतरण जैसी कार्यवाही करते हुए छोटे कर्मियों को परोक्ष रुप से खनन
में सहयोग करने का दबाव भी बनाते हैं।सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि विभिन्न राज्यों में अवैध खनन जारी है। खनन के लिए नियम मौजूद हैं लेकिन राज्यों के स्तर पर उनका उल्लंघन हो रहा है समस्या की जड़ पर अंगुली रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि च्समय के साथ महसूस किया गया है कि कमी कानूनों में नहीं हमारे चरित्र में है। उत्तराखंड में अब अवैध खनन पर लगाम लगने वाली है। अवैध तरीके से हो रहे खनन को रोकने के लिए अब विभाग ने तैयारी कर ली है।
औद्योगिक विकास विभाग (खनन) अब सभी जिलों में हाईटेक चेकपोस्ट तैयार करने की तैयारी कर रहा है। इन चेकपोस्ट पर सेंसर और कैमरे लगाए जाएंगे, जिनसे गुजरने वाले वाहनों के बारे में पता चल सकेगा कि उस वाहन ने रवन्ना काटा है या नहीं। साथ ही वाहन क्षमता के हिसाब से खनन सामग्री के बारे में भी जानकारी मिल सकेगी।पहले विभाग की योजना जीपीएस के जरिये अवैध खनन पर नजर रखने की थी, लेकिन यह परवान नहीं चढ़ पाई। प्रदेश का खनन विभाग सबसे अधिक राजस्व देने वाले विभागों में से एक है। इस वर्ष सरकार ने खनन से लगभग 850 करोड़ रुपये का राजस्व लक्ष्य तय किया है। इसके लिए जरूरी है कि अवैध खनन पर अंकुश लगाया जाए। प्रदेश में प्रदेश में अवैध खनन की रोकथाम हमेशा से ही एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आया है।
नदियों में खनन के लिए निर्धारित क्षेत्र से बाहर जाकर बड़े पैमाने पर बेतरतीब ढंग से खनन, एक ही रवन्ने से कई-कई फेरे उपखनिज का ढुलान जैसी शिकायतें आम हैं। इससे जहां सरकार को राजस्व की हानि हो रही है, वहीं नदियों में अवैज्ञानिक ढंग से हुआ खनन बाढ़ के खतरे का
सबब भी बन रहा है।इसे देखते हुए वर्ष 2019 में सरकार के निर्देश पर शासन ने खनन विभाग को ऐसे सभी वाहनों में जीपीएस लगाने के निर्देश दिए, जिनका उपयोग खनन सामग्री के ढुलान में किया जा रहा है।
उद्देश्य यह देखना था कि वाहन कब खनन लाट से बाहर निकल कर रहे हैं, कहां जा रहे हैं, जीपीएस लगने से इसकी पूरी जानकारी विभाग के पास रहेगी। हालांकि, विभिन्न कारणों से यह योजना परवान नहीं चढ़ पाई।अब विभाग उत्तर प्रदेश की तर्ज पर खनन क्षेत्रों के आसपास हाईटेक चेकपोस्ट बनाने की तैयारी कर रहा है, जिसमें कैमरे व सेंसर लगे होंगे। इन पर नजर रखने के लिए मुख्यालय में कंट्रोल एवं कमांड सेंटर बनाया जाएगा। सचिव औद्योगिक विकास (खनन) का कहना है कि अवैध खनन पर नजर रखने के लिए उत्तर प्रदेश की तर्ज पर चेकपोस्ट बनाए जाएंगे।यही नहीं अवैध खनन ढोने में जिन वाहनों को लगाया गया था, उनमें से हजारों नंबर एंबुलेंस, शव वाहन और प्राइवेट गाड़ियों यानी गैर वाणिज्यिक निकले।
कैग की रिपोर्ट के अनुसार, अवैध खनन में लगे 2,969 सरकारी वाहनों से एक लाख 24 हजार 474 मीट्रिक टन खनन सामग्री ढोई गई। इसी तरह से 835 यात्री वाहनों से 97 हजार मीट्रिक टन और ढाई हजार टैक्सी वाहनों 1.52 मीट्रिक टन खनन सामग्री ढोई गई। 57 हजार से अधिक वाहन ऐसे थे, जो पंजीकृत ही नहीं थे। इसके अलावा एंबुलेंस, अग्निशमन वाहन, शव वाहन, रोड रोलर, एक्सरे वैन के नंबरों वाले वाहनों में करीब ढाई हजार टन अवैध खनन का परिवहन किया गया है। कैग ने सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की ओर से तैयार किए गए वाहनों के डाटा बेस के साथ रवन्नों में उल्लेखित वाहन नंबरों की जांच की। कैग की ओर से रवन्ना वाले 4.37 लाख वाहनों में से 1.18 लाख वाहनों का मिलान किया गया। कैग ने पाया कि 1.18 लाख वाहनों में से 0.43 लाख वाहन से अवैध खनन सामग्री ढोई है।इन्हीं वाहनों में एंबुलेंस, कैश वैन, अग्निशमन वाहन, दो पहिया और ई-रिक्शा तक शामिल थे।प्रतिबंधित क्षेत्रों में अवैध खनन पर कार्यवाही के साथ ही खनिजों के अवैध उत्खनन, परिवहन और भंडारण की स्थिति में पट्टेदार, परिवहनकर्ता और ठेकेदारों के विरुद्ध भी कड़ी कार्यवाही सुनिश्चित की जाए। लेखक के अपने विचार हैं।
( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )