भारत की स्वर कोकिला लता दीदी (Lata Didi) भारत रत्न के हक़दार
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
लता मंगेशकर का जन्म 28 सितंबर 1929 को लता दीदी का जन्म इंदौर के एक सिख मोहल्ले में अपनी मौसी के घर हुआ।लता दीदी ने 5 साल की उम्र से ही संगीत सिखाना शुरू कर दिया था। वहीं 9 साल की उम्र से वो अपने पिता दीनानाथ मंगेशकर के साथ शो में जाने लगी थीं।1940-41 के आसपास दिल्ली में ए.आई.आर (ऑल इंडिया रेडियो) के बुलावे पर लता दीदी पिता के साथ रिकॉर्डिंग के लिए गई थीं। ये पहली बार था जब वो पिता के साथ रेडियो के लिए गाने गई थीं। इससे पहले वो पिता की नाटक कंपनी में उनके साथ शोज किया करती थीं। पिता के साथ उनका ये आखिरी कार्यक्रम था। इसके बाद लगभग एक साल ही बीता था कि 24 अप्रैल 1942 को पिता दीनानाथ मंगेशकर का निधन हो गया।
पिता के निधन के बाद घर की पूरी जिम्मेदारी लता दीदी के कंधों पर आ गई थी।
इसी दौरान मास्टर विनायक ने उन्हें अपनी मराठी फिल्म पहिली मंगला गौर के लिए अप्रोच किया। पैसों की जरूरत थी तो उन्होंने हां कर दी और फिल्म में एक छोटा सा रोल भी किया। साथ में उन्होंने फिल्म के गाने नटली चैत्राची नवलाई गाना भी गाया। इस गाने के लिए उन्हें 25 रुपए फीस मिली थी और फिल्म में रोल के लिए कुल 300 रुपए। इसके बाद उन्होंने मास्टर विनायक की कंपनी में काम किया। बुरा वक्त इंसान को मजबूर बना देता है। ये बात लता दीदी के जीवन पर बिल्कुल सटीक बैठती है। एक वक्त था, जब पिता जीवित थे तो लता दीदी के पास फिल्म
इंडस्ट्री में काम करने के ऑफर आए थे, लेकिन तब पिता ने ही मना कर दिया था। मगर उनके निधन के बाद परिवार के गुजारे के लिए लता दीदी को ये ऑफर स्वीकार करना ही पड़ा।
यह भी पढें : बंजर होती खेती और पलायन का समाधान है मोटे अनाज (Coarse grains)
दीनानाथ मंगेशकर के निधन के बाद लता दीदी पूरे परिवार को लेकर कोल्हापुर आ गई थीं। यहां पर उनके पिता के अजीज दोस्त मास्टर विनायक ने उन्हें एक मकान रहने के लिए दे दिया था। 1947 में मास्टर विनायक का निधन हो गया। इसके बाद उनके रिश्तेदारों ने लता पर घर खाली करने का दबाव डालना शुरू कर दिया।इसी बीच एक कैमरामैन लता से मिलने आए। उन्होंने कहा- एक हरिश्चंद्र बाली हैं, जो आपसे मिलकर आप का गाना सुनना चाहते हैं। अगले दिन उन्होंने जाकर उनसे मुलाकात की। उन्होंने लता को सुना और गाना गाने का मौका दिया। इसके बदले उन्होंने लता को मोटी रकम दी। उसी पैसे से लताजी ने घर का किराया चुकाया। तब जाकर उन्हें उस घर में रहने दिया गया। 14 साल की उम्र में लता दीदी कोल्हापुर से मुंबई एकशो में गाने के लिए अपनी मौसी के साथ आई थीं। यहां वो अपने चाचा कमलनाथ मंगेशकर के घर रुकी थीं। घर पहुंचते ही वो रियाज करने लग गईं। उनकी यही कोशिश थी कि उनके पिता के नाम पर कोई सवाल ना उठाए।इस बात से उनके चाचा बहुत नाराज थे।
उनका कहना था- ये लड़की भाई दीनानाथ मंगेशकर का नाम खराब कर देगी। कहां वो एक सुधी गायक और कहा ये लड़की। ये लड़की ठीक से गा नहीं पाएगी और पूरे खानदान का नाम मिट्टी में मिल जाएगा।चाचा के जैसे ही सोच उनकी बुआ विजय की भी थी। उन लोगों की ये बात सुन लता दीदी बहुत आहत हुईं और रोने लगीं। तब उनकी मौसी ने उन्हें समझाया कि किसी का बिना सुने बस वो अपनी गायकी पर ध्यान दें। अगले दिन लता दीदी ने अधिक उत्साह के साथ अपनी परफॉर्मेंस दी। उस शो में दर्शक के रूप में एक्ट्रेस ललिता पवार भी मौजूद थीं। लता दीदी का गाना उन्हें बहुत पसंद आया। ललिता पवार ने उन्हें इनाम के रूप में सोने की बालियां भेंट कीं। जब वो हरिश्चंद्र बाली के फिल्म के गाने को रिकाॅर्ड कर रहीं थीं, तभी एक पठान ने उनकीआवाज सुनी। बिना रुके ही वो शख्स गुलाम हैदर अली से मिलने चला गया। पठान ने उनसे
कहा- कोई एक नई लड़की आई है, जो बहुत ही उम्दा गाती है। आप उसे बुलाकर एक बार जरूर सुनें। मास्टर गुलाम हैदर अली ने मिलने के लिए हामी भर दी। लता दीदी के पास मास्टर हैदर अली से मिलने का मैसेज आया। अगले दिन वो अपनी मौसेरी बहन के साथ मास्टर गुलाम हैदर अली के स्टूडियो मिलने गईं। वहां पर वो सुबह से शाम तक उनका इंतजार करती रहीं।
आखिरकार उनकी मुलाकात मास्टर हैदर अली से हुई। उन्होंने इतना लंबा इंतजार कराने के लिए माफी मांगी, फिर गाना सुनाने को कहा। वो लता के गाने से बहुत प्रभावित हुए।मास्टर हैदर अली ने लता की मुलाकात प्रोड्यूसर शशधर मुखर्जी से करवाई, जो उस समय फिल्म शहीद पर काम कर रहे थे, लेकिन उन्होंने लता को काम देने से इनकार कर दिया। मुखर्जी ने कहा- इस लड़की की आवाज बहुत पतली है। इस पर मास्टर हैदर अली ने कहा- आने वाले दिनों में प्रोड्यूसर और डायरेक्टर इस लड़की के पैरों में गिरकर अपनी फिल्म में गाना गाने की विनती
करेंगे। करियर के शुरुआती दिनों में लता दीदी घर से रिकॉर्डिंग स्टूडियो पैदल जाती थीं। गानों की रिकॉर्डिंग करने के बाद वो खाली टाइम में भी रिकॉर्डिंग स्टूडियो में बैठी रहती थीं। दिन भर बिना कुछ खाए वो पूरा दिन गुजारती थीं। वजह ये थी कि उन्हें पता ही नहीं था कि रिकॉर्डिंग
स्टूडियो में भी कैंटीन होता है।
दूसरी वजह ये भी थी कि उनके पास पैसे कम होते थे। उनके पास एक या दो रुपए होते थे इसलिए घर से भी वो स्टूडियो पैदल जातीं, ताकि उन बचे हुए पैसों से वो घरवालों के लिए सब्जी खरीद सकें। उनका मानना था कि वो भले ही भूखी रहें, लेकिन घरवालों को बिना खाए ना सोना पड़े।वो शख्स जिसके नाम के आगे ‘स्वर साम्राज्ञी’, ‘बुलबुले हिंद’ और ‘कोकिला’ जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया हो उन्हें ये देश भला कैसे भूल सकता है। ये कोई और नहीं स्वर कोकिला लता मंगेशकर हैं।
लता मंगेशकर वो नाम है जो भारतीय फिल्म जगत को अंतरराष्ट्रीय बुलंदियों पर ले गया। लता मंगेशकर भले ही इस दुनिया को अलविदा कह चुकी हों, लेकिन उनकी आवाज अटल है, जिसे आने वाली पीढ़ियां भी नजरअंदाज नहीं कर सकतीं। सुर साम्राज्ञी की 94वीं जयंती है। लता मंगेशकर ने आखिरी बार आमिर खान की ‘फिल्म रंग दे बसंती’ में अपनी आवाज दी। उन्होंने फिल्म का क्लासिक गाना ‘लुका छुपी’ गाया था। इस गाने ने मां-बेटे के रिश्ते को नई परिभाषा दी थी। आज भी लोग अपनी भावना इस गाने के जरिये बयां करते हैं। ऐ मेरे वतन के लोगों ज़रा आंख में भर लो पानी, जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो क़र्बानी,यह मशहूर देशभक्ति गीत कवि प्रदीप ने लिखा था। इस गीत को संगीत से सजाया था सी.रामचंद्रा ने।
यह भी पढें : मिट्टी के घड़े का उत्क्रम परासरण का पानी पीने स्वास्थ्य के लिए भी उतना ही फायदेमंद
वहीं, लता मंगेशकर ने अपनी दिलकश आवाज़ा से इस गीत को लाफ़ानी बना दिया है। इस गीत में 192 में भारत-चीन युद्ध के दौरान मारे गए सैनिकों को याद किया गया है। लता मंगेशकर ने इस गीत को पहली बार 27 जनवरी 1963 को नई दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में गया था। उस दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन और तत्कालीन प्रधानमंत्री भी कार्यक्रम में मौजूद थे।
ऐ मेरे वतन के लोगों
तुम ख़ूब लगा लो नारा
ये शुभ दिन है हम सब का
लहरा लो तिरंगा प्यारा
पर मत भूलो सीमा पर
वीरों ने है प्राण गंवाए
कुछ याद उन्हें भी कर लो
जो लौट के घर न आये
ऐ मेरे वतन के लोगों
ज़रा आंख में भर लो पानी
जो शहीद हुए हैं उनकी
ज़रा याद करो क़ुर्बानी
जब घायल हुआ हिमालय
ख़तरे में पड़ी आज़ादी
जब तक थी सांस लड़े वो
फिर अपनी लाश बिछा दी
संगीन पे धर कर माथा
सो गये अमर बलिदानी
जो शहीद हुए हैं उनकी
ज़रा याद करो क़ुर्बानी
जब देश में थी दीवाली
वो खेल रहे थे होली
जब हम बैठे थे घरों में
वो झेल रहे थे गोली
थे धन्य जवान वो आपने
थी धन्य वो उनकी जवानी
जो शहीद हुए हैं उनकी
ज़रा याद करो क़ुर्बानी
कोई सिख कोई जाट मराठा
कोई गुरखा कोई मदरासी
सरहद पर मरनेवाला
हर वीर था भारतवासी
जो खून गिरा पवर्अत पर
वो खून था हिंदुस्तानी
जो शहीद हुए हैं उनकी
ज़रा याद करो क़ुर्बानी
थी खून से लथ पथ काया
फिर बंदूक उठाके
दस दस को एक ने मारा
फिर गिर गये होश गंवा के
जब अन्त -समय आया तो
कह गये के अब मरते हैं
खुश रहना देश के प्यारों
अब हम तो सफ़र करते हैं
क्या लोग थे वो दीवाने
क्या लोग थे वो अभिमानी
जो शहीद हुए हैं उनकी
ज़रा याद करो क़ुर्बानी
तुम भूल न जाओ उनको
इस लिये कही ये कहानी
जो शहीद हुए हैं उनकी
ज़रा याद करो क़ुर्बानी
जय हिंद.
लता मंगेशकर का आखिरी गाना साल 2006 में रिलीज हुआ था। इसके अलावा लता मंगेशकर ने ‘वीर-जारा’ की एल्बम के लिए कई गाने गाए थे। इनमें ‘तेरे लिए हम हैं जिए’,’ऐसा देस है मेरा’,’हम तो भाई जैसे हैं’,’दो पल रुका ख्वाबों का कारवां’ जैसे शानदार गाने शामिल हैं।संगीत की दुनिया की शान लता मंगेशकर को तीन बार राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था ये सम्मान उन्हें 1972, 1975 और 1990 में दिया गया था। इसके बा.. 1958, 1962, 1965, 1969, 1993 और 1994 में उन्हें फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिला। गायिकी के दम पर लता 1969 में पद्म भूषण पुरस्कार लेने में भी सफल रहीं। उन्हें 1989 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1993 में लता की झोली में फिल्म फेयर का लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार आया। इसके साथ ही 1999 में उन्हें पद्म विभूषण भी मिला। लता यहां भी नहीं रुकीं और 2001 में उन्हें भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से नवाजा गया।
इन सारे अवॉर्ड्स के अलावा लता को राजीव गांधी पुरस्कार, एन. टी. आर. पुरस्कार, महाराष्ट्र भूषण, स्टारडस्ट का लाइफटाइम अचीवमेंट, जी सिने का लाइफटाइम अचीवमेंट जैसे अवॉर्ड्स से भी सम्मानित किया गया था. लता जी को साल 1959 में आज रे परदेसी के लिए दिया गया था फिल्मफेयर अवॉर्ड. फिर 1963 में उन्हें कहीं दीप जले कही दिल क लिए अवॉर्ड से नवाजा गया था। साल 1966 में तुम्ही मेरे मंदिर तुम्ही मेरी पूजा के लिए सम्मानित किया गया था। साल 1970 में आप मुझे अच्छे लगने लगे के लिए अवॉर्ड दिया गया। साल 1993में लता को लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से नवाजा गया। साल 1994 में दीदी तेरा देवर दीवान के लिए फिल्मफेयर अवॉर्ड दिया गया। साल 2004 में उन्हें फिल्मफेयर स्पेशल अवॉर्ड से नवाजा गया। लता का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी शामिल है। दुनिया में सबसे ज्यादा गाना गाने के लिए उनका नाम शामिल किया गया था।
लता मंगेशकर को भारत की सुर साम्राज्ञी कहा जाता रहा है। लता मंगेशकर का योगदान भारतीय संगीत के क्षेत्र में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। उन्होंने 36 भाषाओं में50,000 से ज्यादा गीतों को अपनी मधुर आवाज में गाया, जिससे वे एक अनगिनत गायिका के रूप में प्रसिद्ध हुईं। भारतीय सिनेमा में उनसे बड़ी गायिका किसी और को नहीं माना जाता है। बड़े-बड़े संगीतकार भी एक बार उनके साथ काम करने के लिए सालों इंतजार करते रहते थे। देश में ही नहीं विदेश में भी उनकी गायिकी के लोग दीवाने थे. आज वो भले ही हमारे बीच नहीं हैं पर उनके गाए सदाबहार गानों की वजह से वो आज भी करोंड़ों लोगों के दिलों में जिंदा हैं।
( लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )