जंगल (Forest) में राजा मर रहे अज्ञात मौत, हाथी-गुलदार का भी पता नहीं
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड को वनसंपदा और वन्यजीवों की आबादी के लिहाज से समृद्ध माना जाता है वन्यजीव सप्ताह के तहत इन दिनों स्कूल, गांव व अन्य जगहों पर जागरूकता अभियान चल रहे हैं। बाघ, हाथी और गुलदार के व्यवहार के बारे में बताया जा रहा है, ताकि मानव-वन्यजीव संघर्ष पर नियंत्रण पाया जा सके, मगर जंगल के अंदर इन वन्यजीवों के साथ क्या हो रहा है और क्या हो चुका है, वन विभाग को खुद वर्षों बाद भी कुछ नहीं पता है। मामला अज्ञात मौतों से जुड़ा है, जिसमें जंगल का राजा यानी बाघ और हाथी-बाघ भी शामिल है। चौंकाने वाली बात यह है कि पिछले 11 साल में कुमाऊं की अहम डिवीजन तराई केंद्रीय में अज्ञात मौतों का आंकड़ा कोई पांच-दस प्रतिशत नहीं, बल्कि 50 प्रतिशत से ज्यादा है।
जुलाई में जारी बाघ गणना के अनुसार यहां 560 बाघ हैं। वहीं हाथी तीन साल पहले हुई गिनती में 2026 पाए गए थे। बाघ और हाथियों की ज्यादा संख्या तराई के क्षेत्र में है। पश्चिमी वृत्त के तहत आने वाली तराई केंद्रीय डिवीजन में हल्द्वानी, भाखड़ा, टांडा, पीपलपड़ाव, गदगदिया, रुद्रपुर और बरहैनी रेंज आती है।आरटीआइ से जानकारी मांगी थी जनवरी 2012 से जनवरी 2023 के बीच कितने बाघ, गुलदार और हाथियों की मौत हुई।
वन विभाग ने दैनिक जागरण को आरटीआइ में बताया है कि 2012-13 में तीन, 2013-14 में दो, 2016-17 में दो, 2017-18 में दो, 2019-20 में दो, 2020-21 में एक और 2022-23 में एक गुलदार की मौत की वजह पता नहीं चली, जबकि बाघों की 2013-14 में एक, 2016-17 में एक, 2017-18 में दो, 2018-19 में एक, 2021-22 में एक की अज्ञात मौत हुई है। वहीं, 2013-14 में एक हाथी, 2015-16 में दो, 2017-18 में तीन, 2018-19 में दो, 2019-20 में एक और 2021-22 में तीन हाथियों की मौत की वजह पता नहीं चल सकी।जवाब मिला कि इन 11 साल में नौ बाघ, 22 हाथी और28 गुलदारों की डिवीजन के जंगल में मौत हुई है। 58 में से 28 की मौत की वजह वन विभाग को पता है, लेकिन 31 मामलों में उसने ‘अज्ञात’ जवाब दिया। इसमें 13 गुलदार, 12 हाथी और छह बाघ शामिल हैं।
दूसरी तरफ वन विभाग सालों बाद भी पता नहीं लगा सका कि इनके मरने की वजह क्या थी। प्रदेश में मानव-वन्यजीव संघर्ष में इस वर्ष अब तक लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। मानव और वन्यजीवों के बीच बढ़ते टकराव की वजह से नुकसान दोनों को ही हो रहा है। वन महकमा और
विशेषज्ञ इस बात को लेकर चिंतित हैं। वन विभाग ने इन घटनाओं को रोकने लिए कुछ प्रयास तो किए हैं, लेकिन वह नाकाफी साबित हो रहे हैं। दुनिया भर में शेरों को ‘जंगल का राजा’ कहा जाता है, लेकिन इनको जंगल में कई खतरों का सामना करना पड़ता है, जहां इन खतरों में वनों की कटाई या अवैध शिकार के खतरों, मनुष्यों के साथ संघर्ष, जलवायु परिवर्तन और कमी के कारण निवास स्थान का नुकसान शामिल है। शेर अपनी अपार ताकत और शक्ति के कारण दूसरे जानवरों से नहीं डरता और उन्हें आसानी से मार देता है। इसी वजह से उसे जंगल का राजा कहा जाता है।
हालांकि जंगल का राजा होने के कारण कुछ जानवर उसके दुश्मन होते हैं जिनसे वह डरता है। उन्हें देखकर चुपचाप छुपने की कोशिश करता है। वहीं चीता, तेंदुआ और बबून जैसे जानवर शेर के बच्चों के लिए घातक होते हैं और मौका मिलने पर शावकों को मारने के लिए जाने जाते हैं। इसलिए शेर अपने शावकों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए भी हाथी समेत कुछ जानवरों से खौफ खाता है।ऐसे स्वस्थ एवं खुशहाल उत्तराखण्ड के लिये जमीनी स्तर पर कार्य करने की जरूरत है।
(लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )