Header banner

उत्तराखंड में पहली बार काला चावल (black rice) का उत्पादन किया

admin
kala

उत्तराखंड में पहली बार काला चावल (black rice) का उत्पादन किया

harish

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला 

किसान की मेहनत और उसका पसीना सही से इस्तेमाल हो तो खेत में अनाज नहीं सोना उगता है भारत में सबसे पहले काले चावल की खेती असम, मणिपुर के किसानों ने 2011 में शुरू की। कृषि विज्ञान केंद ने काले चावल की खेती के बारे में किसानों को जानकारी मिली थी। इसके बाद आस पास के करीब 200 किसानों से इसकी खेती शुरू कर दी। असम, मणिपुर से होते हुए धीरे-धीरे काला चावल पूर्वोत्तर के राज्यों में
लोकप्रिय हो गया। काले धान का चावल कैंसर जैसी बीमारी से लड़ने में भी कारगर माना जाता है। औद्योगिक क्षेत्र के रूप में पहचान रखने वाले झारसुगुड़ा जिले में कैंसर तथा मधुमेह रोगियों की संख्या काफी अधिक है। इसकी खेती में रासायनिक खाद का प्रयोग न होने से इस धान की रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है।

यह भी पढें : उत्तराखंड : सहकारी समितियों (Cooperative Societies) में ओटीएस में 16 करोड़ की हुई वसूली, 30 नवंबर तक बढ़ी तारीख!

काला चावल एंटीऑक्सीडेंट के गुणों से भरपूर माना जाता है। यूं तो कॉफी और चाय में भी एंटी- ऑक्सीडेंट पाए जाते हैं लेकिन काले चावल में इसकी मात्रा सर्वाधिक होती है। इस धान से निकले चावल में विटामिन बी, ई के अलावा कैल्शियम, मैग्नीशियम, आयरन तथा जिंक आदि प्रचुर मात्रा में मिलता है। ये तत्व मानव शरीर मे एंटी ऑक्सीडेंट का काम करते है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह चावल कैंसर एवं मधुमेह रोग में उपयोगी माना जाता है। इसके सेवन से रक्त शुद्धीकरण भी होता है। साथ ही इस चावल के सेवन से चर्बी कम करने तथा पाचन शक्ति बढ़ने की बात कही जा रही है। काले धान की फसल को तैयार होने में औसतन 100 से 110 दिन लगते है।

यह भी पढें : ऐतिहासिक तपस्या की गवाह देता बालेश्वर मंदिर (Baleshwar Temple)

विशेषज्ञ बताते है कि पौधे की लंबाई आमतौर के धान के पौधे से बड़ा है। इसके बाली के दाने भी लंबे होते है। यह धान कम पानी वाले जगह पर भी हो सकता है।इसकी खेती किसानों को अच्छी कमाई भी करा सकती है। पारंपरिक चावल के मुकाबले पांच सौ गुना अधिक कमाई इस धान की खेती से हो सकती है। कई राज्यों की सरकारें इसकी खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित भी कर रही हैं।जैविक तरीके से खेती की वजह से यह धान लोगों की पसंद बन रहा है।असम के कई किसानों को इससे मोटी कमाई हो रही है। आमतौर पर जहां चावल 15 से 80 रु किलो के बीच बिकता है वहीं इसके चावल की कीमत 250 रुपए से शुरू होती है। ऑर्गेनिक काले धान की कीमत 500 रुपए प्रति किलो तक है।

यह भी पढें : सीएम धामी ने जिम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व (Jim Corbett Tiger Reserve) में की सफारी, हाथियों को खिलाया गुड़-चना

गौलापार के रहने वाले प्रगतिशील किसान नरेंद्र सिंह मेहरा ऑर्गेनिक खेती के साथ-साथ कृषि के क्षेत्र में अपना बड़ा योगदान दे चुके हैं। नरेंद्र मेहरा अब उत्तराखंड में काले चावल के उत्पादन का काम शुरू करने वाले हैं। उन्होंने बताया कि काले चावल का उत्पादन सबसे पहले चीन में हुआ था। काला चावल सिर्फ चीन के राजा महाराजा खाते थे और किसी अन्य को खाने पर प्रतिबंध था प्रदेश सरकार काले चावल को बढ़ावा दे और उत्पादन के लिए किसानों को जागरुक करे, जिससे किसानों की आय में खासा वृद्धि होगी। उन्होंने सरकार से मांग की है कि प्रदेश सरकार उत्तराखंड के किसानों को काला चावल का बीज उपलब्ध कराए, जिससे किसान अपनी आय में वृद्धि कर सकें।सब कुछ ठीक ठाक है तो काश्तकारों को ब्लैक राइस उत्पादन के लिए प्रेरित किया जाएगा। इसके लिए कार्ययोजना बनाई जाए।

स्थानीय स्तर पर मार्केटिंग की सही व्यवस्था होती है तो आने वाले दिनों में काले धान की खेती की तरफ किसानों का रुझान बढ़ेगा। सिंचाई के लिए भी ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती है। ऑर्गेनिक खेती के साथ उसका उत्पादन किया तो उस जिससे उन्हें डेढ़ कुंतल चावल का उत्पादन हुआ और इस चावल को उन्होंने संरक्षित किया है।

यह भी पढें : श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल में विश्व दृष्टि दिवस (World Sight Day) पर लिया अंधतानिवारण का संकल्प

नरेंद्र मेहरा कहते हैं कि पंतनगर विश्व विद्यालय के वैज्ञानिक भी इस काले चावल की काफी सराहना कर चुके हैं। सबसे खास बात यह चावल जितना पौष्टिक है उतना ही औषधीय गुणों से भरपूर भी है। इस चावल के लिए धान के बीज की कीमत अट्टारह सौ रुपए प्रति किलो है और ऑर्गेनिक तरीके से इसके उत्पादन पर बाजार में 600 रुपये प्रति किलो की डिमांड है। मेहरा का कहना है कि अगर राज्य सरकार काले चावल को बढ़ावा दे और किसानों को इसके उत्पादन के लिए जागरूक करें तो किसानों की आय में काफी वृद्धि हो सकती है। सरकार की ओर से इस विषय पर ठोस सकारात्मक पहल करनी होगी।

उत्तराखण्ड सरकार के अधीन उद्यान विभाग के वैज्ञानिक के पद पर कार्य कर चुके हैं वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं

Next Post

हिमालय (Himalaya) के ऊपर बढ़ता तापमान खतरे की घंटी

हिमालय (Himalaya) के ऊपर बढ़ता तापमान खतरे की घंटी डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला दुनिया में इस साल रिकॉर्ड तोड़ गर्मी पड़ रही है। वहीं कई इलाके ऐसे हैं, जहां भयानक बारिश हो रही है। यह कोई भी देख सकता है […]
h 1 4

यह भी पढ़े