ह्यूम पाइप (Hume Pipe) को टनल से किसने और क्यों निकाला?
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड में में गंगोत्री और यमुनोत्री धाम को जोड़ने वाली 121 किलोमीटर लंबी रेल लाइन की फाइनल DPR तैयार हो गई है। इस रेल लाइन का 70% हिस्सा सुरंगों से होकर गुजरेगा। इस प्रोजेक्ट के तहत टिहरी जिले में जाजल और मरोड़ के बीच 17 किमी लंबी देश की सबसे लंबी रेल सुरंग भी बनेगी। इस प्रोजेक्ट में लगभग 20 सुरंग हैं।अगले दस साल में उत्तराखंड देश में सर्वाधिक रेल-रोड सुरंगों वाला प्रदेश होगा। यहां
फिलहाल 18 सुरंग संचालित हैं और 66 सुरंग बनाए जाने की योजना है। सुरंगों के जाल से हिमालयी राज्य उत्तराखंड में कनेक्टिविटी बढ़ेगी।चीन से लगती सीमाओं को सुरक्षित रखने के लिए ऑल वेदर रोड भी सेना की आवाजाही के लिए सहायक साबित होने वाली है। लेकिन हिमालय की संवेदनशील भौगोलिक परिस्थितियों के लिए कुछ विशेषज्ञ इन सुरंगों से भूकंपों का खतरा बढ़ने की आशंका भी जता रहे हैं।
हिमालय पर्वत दुनिया के सबसे नए और कच्चे पहाड़ हैं। शोध में सामने आया है कि बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य से भूस्खलन का खतरा बढ़ता है। सड़कें बनाने से भी भूस्खलन की घटनाएं सामने आती हैं।सुरंगों के निर्माण से अंडर वॉटर स्प्रिंग्स (भूमिगत जलस्रोत) हमेशा के लिए खत्म हो जाते हैं। इससे क्षेत्र में वनस्पति पनपने की प्रक्रिया घीमी हो जाती है। टनल निर्माण मलबे का निस्तारण भी समस्या के रूप में सामने आता है। सुरंगों का निर्माण करने से हिमालय के क्षेत्र को ज्यादा खतरा उत्पन्न नहीं होता है। नॉर्वे जैसे पहाड़ी देश में 900 से ज्यादा रोड-रेल टनल हैं। नॉर्वे की इकॉनोमी पूरी तरह से रोड और रेल टनल पर निर्भर है। सुरंग निर्माण में हमारे यहां भी आधुनिक तकनीक का उपयोग होता है। ऐसे में सुरंगों से किसी प्रकार के खतरे की कोई आशंका नहीं है। अब वक्त आ गया है कि हम एक कदम पीछे लेकर उस प्रक्रिया का दोबारा आकलन करें जिसके माध्यम से ऐसी परियोजनाओं को मंजूर किया जाता है।
चार धाम जैसी सामाजिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण परियोजनाओं के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति इस बात का विकल्प नहीं हो सकती है कि वे तकनीकी रूप से व्यावहारिक हैं भी या नहीं।यह आकलन करना भी आवश्यक है कि ऐसे निर्माण के लिए इंजीनियरिंग कौशल का आकलन किया जाए तथा यह देखा जाए कि क्रियान्वयन करने वाली एजेंसियां इसके योग्य हैं या नहीं। खासतौर पर जलवायु परिवर्तन के कारण आई
अतिरिक्त जटिलताओं को देखते हुए। इन तमाम बुनियादी बातों के बीच हिमालय क्षेत्र की पारिस्थितिकी संवेदनशीलता की चिंताओं को ध्यान में रखना आवश्यक है। यह क्षेत्र एक विशिष्ट जैवीय इलाका है जिसे विशेष देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता है।उत्तरकाशी के सिलक्यारा में हुआ टनल हादसा प्राकृतिक नहीं इंसानी भूल का नतीजा है।
भू वैज्ञानिक ने ये बात कही है। उन्होंने कहा कि टनल निर्माण के दौरान जोन के हिसाब से सपोर्ट सिस्टम लगाया गया होता तो ये हादसा नहीं होता। उन्होंने हिमालय के लिए सुरंग निर्माण को सबसे सुरक्षित बताया। जहां से टनल कोलेप्स हुई, वह जोन काफी कमजोर था। टनल बनाने के दौरान निर्माण टीम को जो डिजाइन पैटर्न दिया गया था, उसी पर वह काम करते रहे।रॉक मास के हिसाब से उन्होंने सपोर्ट सिस्टम में बदलाव नहीं किया। बताया कि टनल निर्माण के दौरान लगातार भूगर्भीय हालातों की भी निगरानी करनी पड़ती है, जिससे नाजुक जोन में अलर्ट मिलता है और उसी हिसाब से सपोर्ट सिस्टम (सुरक्षा उपाय) बदलने पड़ते हैं। यानी भूगर्भीय परिस्थितियों के हिसाब से डिजाइन पैटर्न में बदलाव किया जाता है।
उन्होंने कहा कि हादसे में अभी तक जो तथ्य सामने आ रहे हैं, उससे स्पष्ट है कि टनल का ये हादसा प्राकृतिक नहीं मानवीय भूल का नतीजा है। सुरंगों से हिमालय को कोई खतरा नहीं है। सुरक्षित तरीके से टनल निर्माण होने के बाद ये 100 से 150 साल तक चलती है। जबकि सामान्य तौर पर सड़कें हर साल आपदा में टूट जाती हैं। उत्तरकाशी की मनेरी भाली-2 परियोजना की 16 कि मी की टनल का निर्माण में हुआ था। इस सुरंग में 500 मीटर का हिस्सा ऐसा था, जिसे “श्रीनगर थ्रस्ट” बोलते हैं। बताया कि इस हिस्से की मिट्टी बेहद भुरभुरी थी, जो जरा सी ड्रिल पर नीचे जा रही थी। लिहाजा, उसी हिसाब से डिजाइन पैटर्न में बदलाव करके काम किया गया, जो कि बिना रुकावट के पूरा हुआ। टनल में आपातकाल में बचाव के लिए ह्यूम पाइप क्यों नहीं था यह कंपनी की कार्यशैली पर सवालिया निशान लगाता है। यह सीधे तौर पर निर्माण करा रही कंपनी की लापरवाही को बताता है। लेकिन, यह लापरवाही तब अपराध बन जाती है जब यह पता चलता है कि पाइप तो था मगर उसे कुछ समय पहले ही निकाल लिया गया था। सवाल यह है कि आखिर क्यों इस पाइप को निकाला गया और किसके कहने पर।
दरअसल, सुरंग निर्माण की शुरुआत में ही आपातकाल में बचाव के मद्देनजर ह्यूम पाइप बिछाया जाता है। जहां तक टनल की खोदाई हो जाती है वहां तक इस पाइप को बढ़ाया जाता है। उत्तरकाशी की इस सुरंग का निर्माण लगभग पूरा हो गया था। यहां पर भी नियमानुसार पाइप बिछाया गया था। ताकि, यदि कभी कोई ऐसा हादसा हो तो इस पाइप से मजदूर बाहर आ सकें। लेकिन, मौके पर मौजूद सूत्रों के मुताबिक यहां पर बिछे इस पाइप को कुछ समय पहले ही निकाल लिया गया था। हालांकि, इसके पीछे क्या मंशा थी इस बात का पता लगाया जा रहा है।
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माना जा रहा है कि कंपनी को लगा होगा कि इस सुरंग का निर्माण लगभग पूरा हो चुका था। यही सोचकर कि अब आखिरी तराशी का काम हो रहा है तो इस पाइप को निकाल लिया गया होगा। मगर, बहुत लोग और संगठन ह्यूम पाइप न होने पर सवाल उठा रहे हैं। इसे कंपनी की लापरवाही मान रहे हैं। मुख्य विपक्षी दल भी इस पर कंपनी को घेर चुकी है। अब यह और भी ज्यादा बड़ा चर्चा का विषय बन गया है किआखिर क्यों इसे निकाल लिया गया। जबकि, इस पाइप को तभी निकाला जाना चाहिए था जब सुरंग आवाजाही के लिए बिल्कुल तैयार हो जाती।पहाड़ का यह हिस्सा हमेशा से संवेदनशील रहा है। ऐसे में किसी भी खतरे की आशंका हर वक्त बनी थी। फिर क्यों इतनी बड़ी चूक हुई। बताया जा रहा है कि मजदूरों के बचाव के बाद इस मामले में बड़ी कार्रवाई भी हो सकती है। लेखक, के व्यक्तिगत विचार हैं
( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )