Header banner

महान तपस्या और त्याग की वजह उत्तराखंड के गांधी कहलाए इंद्रमणि बडोनी (Indramani Badoni)

admin
i 1 2

महान तपस्या और त्याग की वजह उत्तराखंड के गांधी कहलाए इंद्रमणि बडोनी (Indramani Badoni)

harish

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

उत्तराखंड को अलग राज्य बना ने के लिए आंदोलन की शुरुआत करने वाले इंद्रमणि बड़ोनी को उत्तराखंड का गांधी यूं ही नहीं कहा जाता है, इसके पीछे उनकी महान तपस्या व त्याग रही है। राज्य आंदोलन को लेकर उनकी सोच और दृष्टि को ण को लेकर आज भी उन्हें शिद्दत से याद किया जाता है। इंद्रमणि बड़ोनी आज ही के दिन यानी 24 दिसंबर, 1925 को टिहरी जिले के जखोली ब्लॉक के अखोड़ी गांव में पैदा हुए थे। उनके पिता का नाम सुरेश चंद्र बडोनी था। साधारण परिवार में जन्मे बड़ोनी का जीवन अभावों में गुजरा। उनकी शिक्षा गांव में ही हुई।

देहरादून से उन्हों ने स्नातक की उपाधि हासिल की थी। वह ओजस्वी वक्ता होने के साथ ही रंगकर्मी भी थे। लोकवाद्य यंत्रों को बजाने में निपुण थे। उत्तराखंड का गांधी यूंही नहीं कहा जाता है, इसके पीछे उनकी महान तपस्या व त्याग रही है। राज्य आंदोलन को लेकर उनकी सोच और दृष्टि कोण को लेकर आज भी उन्हें शिद्दत से याद किया जाता है। वर्ष 1953 का समय, जब बड़ोनी गांव में सामाजिक व सांस्कृतिक कार्यों में जुटे थे। इसी दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की शिष्या मीरा बेन टिहरी भ्रमण पर पहुंची थी। बड़ोनी की मीरा बेन से मुलाकात हुई।इस मुलाकात का असर उन पड़ा। वह महात्मा गांधी की शिक्षा व संदेश से प्रभावित हुए। इसके बाद वह सत्य व अहिंसा के रास्ते पर चल पड़े। पूरे प्रदेश में उनकी ख्याति फैल गई। लोग उन्हें उत्तराखंड का गांधी बुलाने लगे थे।इंद्रमणि बडोनी जब नेता के तौर पर उभर गए थे।

यह भी पढें : मूल निवास प्रमाण पत्र (original residence certificate) पर सरकार का बड़ा फैसला

वर्ष 1992 में मकर संक्रांति के दिन बागेश्वर के प्रसिद्ध उत्तरायणी कौतिक से उन्होंने उत्तराखंड की राजधानी गैरसैंणसैं करने की घोषणा कर दी थी। हालांकि आज तक गैरसैंणसैं स्थायी राजधानी नहीं बन सका। पहाड़ के लोग पहाड़ में ही राजधानी बनाने के लिए संषर्घरत हैं। उत्तराखंड क्षेत्र में बडोनी का कद बहुत ऊंचा हो चुका था। वह महान नेताओं में गिने जाने लगे। सबसे पहले वर्ष 1961 में अखोड़ी गांव में प्रधान बने। इसके बाद जखोली खंड के प्रमुख बने। इसके बाद देवप्रयाग विधानसभा सीट से पहली बार वर्ष 1967 में विधायक चुने गए। इस सीट से वह तीन बार विधायक चुने गए। हालांकि उन्होंने सांसद का भी चुनाव लड़ा था। कांटे की टक्कर हुई थी। अपने प्रतिद्वंद्वी ब्रहमदत्त से 10 हजार वोटों से हार गए थे।

नेताओं में नई पीढ़ी के युवा नेता बडोनी के जन्मदिवस पर उन्हें याद करते हैं और कहते हैं,बड़ोनी के सपने को साकार होना है। बड़ोनी जैसे महान नेताओं ने राज्य को जो विजन दिया था, उत्तराखंड आंदोलन के इतिहास में इन्द्रमणि बडोनी का नाम स्वर्णाक्षरों में लिया जायेगा। 1994 के राज्य आन्दोलन के वे सूत्रधार थे। 2 अगस्त 1994 को पौड़ी प्रेक्षागृह के सामने आमरण अनशन पर बैठकर उन्हों ने राजनीतिक हलकों में खलबली मचा दी । 7 अगस्त 1994 को उन्हें जबरन मेरठ अस्पताल में भरती करवा दिया गया और उसके बाद सख्त पहरे में नई दिल्ली स्थित आयुर्विज्ञान संस्थान में। जनता के भारी दबाव पर 30वें दिन उन्होंने अनशन समाप्त किया। इस बीच आन्दोलन पूरे उत्तराखंड में फैल चुका था । उत्तराखंड की सम्पूर्ण जनता अपने महानायक के पीछे लामबन्द हो गयी।

यह भी पढें : जम्मू कश्मीर में सर्वोच्च बलिदान देने वाले कोटद्वार निवासी राइफलमैन गौतम कुमार व चमोली के वीरेन्द्र सिंह के पार्थिव शरीर पर सीएम धामी (CM Dhami) ने किया पुष्पचक्र अर्पित

बी बी सी ने तब कहा था , यदि आपने जीवित एवं चलते-फिरते गांधी को देखना है तो आप उत्तराखंड की धरती पर चले जायें। वहाँ गांधी आज भी अपनी उसी अहिंसक अन्दाज में विराट जनांदोलनों का नेतृत्व कर रहा है। 1 सितम्बर 1994 को खटीमा और 2 सितम्बर को मसूरी के लोमहर्षक हत्या कांडों से पूरा देश दहल उठा था। 15 सितम्बर को शहीदों को श्रद्धांजलि देने हेतु मसूरी कूच किया गया , जिसमें पुलिस ने बाटा घाट में आन्दोलनकारियों को दो तरफा घेर कर लहूलुहा न कर दिया। दर्जनों लोगों को गिरफ्तार किया गया। बडोनी को जोगीवाला में ही गिरफ्तार कर सहारनपुर जेल भेजा गया। इस दमन की सर्वत्र निन्दा हुई।

मुजफ्फरनगर के जघन्य कांड की सूचना मिलने के बाद 2 अक्टूबर की दिल्ली रैली में उत्तेजना फैल गई। मंच पर अराजक तत्वों के पथराव से बडोनी चोटिल हो गये थे। मगर ‘उत्तराखंड के इस गांधी’ ने उफ तक नहीं की और यूपी हा ऊस आते ही फिर उत्तराखंड के लिए चिन्तित हो गये। उन तूफानी दिनों में आन्दोलनकारी जगह-जगह अनशन कर रहे थे, धरनों पर बैठे थे और विराट जलूसों के रूप में सड़कों पर निकल पड़ते थे। इनमें सबसे आगे चल रहा होता था दुबदुला -पतला , लम्बी बेतरतीब दाढ़ी वाला शख्स- इन्द्रमणि बडोनी ।

यह भी पढें :धूमधाम से मनाया गया राठ जन विकास समिति (Rath Jan Vikas Samiti) का 23वां स्थापना दिवस

अदम्य जिजी विषा एवं संघर्ष शक्ति ने उन्हें इतना असाधारण बना दिया था कि बड़े से बड़ा नेता उनके सामने बौना लगने लगा। इन्द्रमणि बडोनी का जन्म 24 दिसम्बर 1925 को तत्कालीन टिहरी रियासत के जखोली ब्लॉक के अखोड़ी गाँव में पं. सुरेशा नन्द बडोनी के घर हुआ उस समय सामन्ती मकड़जाल में छटपटाते टिहरी रियासत में बच्चों को पढ़ने से हतोत्साहित किया जाता था । टिहरी के कम ही लोग लेज तक की पढ़ाई कर पाते थे। बडोनी ने गाँव से शुरू कर नैनीताल और देहरादून में शिक्षा प्राप्त की। 19 वर्ष की उम्र में उनका विवाह सुरजी देवी से हुआ, जो राज्य बन जाने के बाद भी मुनिकी रेती के अपने जर्जर घर में उपेक्षित व अक्सर अकेली रहती हैं।जीवन के प्रारंभिक काल से बडोनी विद्रो ही प्रकृति के थे। उन दिनों टिहरी रियासत में प्रवेश करने के लिए चवन्नी टैक्स देना हो ता था।

एक बार जब बालक बडोनी अपने साथियों के साथ नैनीताल से आते हुए पौड़ी से मन्दाकिनी पार कर तिलवाड़ा के रास्ते टिहरी में प्रवेश कर रहे थे तो उन्होंने चवन्नी टैक्स देने से इंकार कर दिया। उन्हें गिरफ्तार कर स्थानीय मालगुजार के समक्ष पेश किया तो वहाँ भी टैक्स देने से बेहतर उन्हों ने जेल जाना समझा। बहरहाल उस भले मालगुजार ने अपनी जेब से चवन्नी जमा कर उस समय उन्हें जेल जा ने से बचा लिया।डी .ए.वी . कॉलेज देहरादून से स्नातक की डिग्री लेने के बाद वे आजीविका की तलाश में बम्बई चले गये। लेकिन स्वास्थ्य खराब होने की वजह से उन्हें वापस गाँव लौटना पड़ा। तब उन्होंने अखोड़ी गाँव और जखोली ब्लाॅक को अपना कार्यक्षेत्र बना लिया।

यह भी पढें : श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति कर्मचारी सेवा नियमावली मंजूरी का किया स्वागत

सन् 1953 में गांधी की शिष्या मीरा बेन टिहरी के गाँवों के भ्रमण पर थीं। जब अखोड़ी पहुँच कर उन्होंने किसी पढ़े-लिखे आदमी से ग्रामोत्थान की बात करनी चाही तो गाँव में बडोनी के अलावा कोई पढ़ा -लिखा नहीं था और वे भी उस समय पहाड़ की चोटियों की तरफ (छानियों में) मवेशियों के सा थ प्रवास पर थे। उन्हें वहाँ से बुलवाया गया । मीरा बेन की प्रेरणा से ही इन्द्रमणि बडोनी सामाजिक कार्यों में तन-मन से समर्पित हुए। 1961 में वे गाँव के प्रधान बने और फिर जखोली विकासखंड के प्रमुख। बाद में उन्होंने उत्तर प्रदेश विधानसभा में तीन बार देवप्रया ग क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। 1977 के विधानसभा चुनाव में निर्दलीय लड़ते हुए उन्हों ने कांग्रेस और जनता पार्टी प्रत्याशियों की जमानतें जब्त करवायीं। पर्वतीय विकास परिषद के वे उपाध्यक्ष रहे। उस दौरान उनके विधानसभा में दिये गये व्याख्या न आज भी समसामयिक हैं। वे सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली और पेयजल योजनाओं पर बोलते हुए व्यक्ति के विकास पर भी जोर देते थे।

यह भी पढें : श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल (Mahant Indiresh Hospital) में धूमधाम से हुआ क्रिसमस सेलीब्रेशन

उत्तराखंड में विद्यालयों का सबसे ज्यादा उच्चीकरण उसी दौर में हुआ।आज तक हमारे नेता उसे पूरा नहीं कर पाए। वह राज्य को समृद्ध बनाना चाहते थे। शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यटन, रोजगार को लेकर बहुत अधिक सजग रहा करते थे। उत्तराखंड के गांधी स्व. इंद्रमणि बडोनी की जयंती पर नगर निगम प्रशासन उनकी प्रतिमा की साफ-सफाई करना तक भूल गया। शहर के मुख्य चौराहे पर लगी उनकी प्रतिमा धूल फांक रही है। उनकी प्रतिमा के आसपा स टूटी मा ला एं और ता र लटके हुए हैं।नगर निगम की ओर से उत्तराखंड के गांधी और राज्य आंदोलनकारी स्व. इंद्रमणि बडोनी को श्रद्धांजलि देने के लिए पूर्व में नटराज चौक के मुख्य चौराहे पर उनकी भव्य प्रतिमा स्थापित की थी। जिसके तहत पूर्व में नटराज चौक कहे जाने वाले चौराहे का नाम स्व. इंद्रमणि बडोनी चौक रखा गया। लेकिन स्व. बडोनी को श्रद्धांजलि देने का प्रयास अधिकारियों की लापरवाही के कारण निरर्थकर्थ साबित हो रहा है। आज की सर्वग्रार्व ही राजनीति के समय में महात्मा गांधी और पहाड़ी गांधी की
प्रासंगिकता पूरी व्यवस्था में डर पैदा करती है। इसलिए इनको क्रमशः भूलना ही बेहतर है?

लेखक वर्तमान में दूनविश्वविद्यालय कार्यरत हैं

Next Post

जयंती पर शहीद सरदार ऊधमसिंह के चित्र पर मंत्री गणेश जोशी (Ganesh Joshi) ने किए श्रद्धा सुमन अर्पित

जयंती पर शहीद सरदार ऊधमसिंह के चित्र पर मंत्री गणेश जोशी (Ganesh Joshi) ने किए श्रद्धा सुमन अर्पित रुद्रपुर/मुख्यधारा कैबिनेट मंत्री एवं जनपद ऊधम सिंह नगर के प्रभारी मंत्री गणेश जोशी ने मंगलवार को रुद्रपुर पहुंचकर सरदार उधम सिंह की […]
j 1 11

यह भी पढ़े