Header banner

उत्तराखंड के दशरथ मांझी!

admin
d 1 4

उत्तराखंड के दशरथ मांझी!

harish

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

उत्तराखंड के एक वीर योद्धा ने पहाड़ का सीना चीर सुरंग बनाई थी ताकि नदी का पानी उनके गांव तक पहुंच सके। इसके लिए वे अपने बेटे की बलि देने से भी पीछे नहीं हटे। ऐसे वीर पुरुष का नाम था माधो सिंह भंडारी टिहरी जिले में उनकी बनाई गई गूल से आज भी चंद्रभागा नदी का पानी मलेथा गांव तक पहुंचता है। माधो सिंह भंडारी टिहरी के राजा के सेनापति थे। उनके वीरता व साहस के चलते टिहरी राजा द्वारा उन्हें मलेथा गांव उपहार स्वरूप दिया गया था। अलकनंदा नदी के किनारे बसे श्रीनगर से सटे मलेथा गांव में सिंचाई की काफी दिक्कतें थीं। गांव के निचले वाले क्षेत्र से करीब 50 फुट गहरी खाई में अलकनंदा नदी बहती थी,जहां से पानी को ऊपर की ओर लाना संभव नहीं था।वहीं दूसरी ओर चंद्रभागा नदी बहती थी, लेकिन पहाड़ होने के चलते इसका पानी भी गांव तक पहुंचना चुनौती बना हुआ था।

यह भी पढें : उत्तराखंड : मैदान-पहाड़ को बांटने वाले नहीं होंगे कामयाब

इतिहास के अनुसार मलेथा में सिंचाई न होने के कारण फसल कम होती थी। लिहाजा माधो सिंह भंडारी ने फैसला किया कि वह पहाड़ के बीचों बीच सुरंग (गूल) का निर्माण करेंगे, जिससे चंद्रभागा नदी का पानी सुरंग के माध्यम से गांव तक पहुंच सके। 5 साल की कड़ी मेहनत के बाद गांव वालों के सहयोग से माधो सिंह भंडारी ने मात्र छेनी, घन, सब्बल और गेती से वो कर दिखाया, जिसे असंभव समझा जा रहा था।उन्होंने यहां गूल का निर्माण कर दियालेकिन चुनौती अभी भी बाकी थी। गूल की ऊंचाई चंद्रभागा नदी से कुछ ऊपर होने के चलते नदी का पानी इस ओर नहीं बह पा रहा था।

यह भी पढें : भारत का शानदार प्रदर्शन: टीम इंडिया (team india) ने रचा इतिहास, केपटाउन में दो दिन में ही साउथ अफ्रीका को हराकर जीता टेस्ट

बताते हैं कि जब राजा ने चंद्रभागा नदी पर बने बांध को खोला, तो नहर के माध्यम से पानी सुरंग की ओर तो आया लेकिन सुरंग के अंदर पानी का प्रवाह इस ओर नहीं हो पाया। इस बीच एक रात माधो सिंह भंडारी के सपने में भैरव देवता अवतरित हुए और उन्होंने उनसे कहा, तुमने सुरंग बनाते वक्त मेरे स्थान को ध्वस्त किया है, इसलिए यह पानी कभी मलेथा गांव तक नहीं पहुंचेगा।’ माधो सिंह भंडारी के उपाय पूछने पर ईष्टदेव ने अपने सबसे प्रिय की बलि देने की बात कही। माधो सिंह भंडारी ने भी बिना कुछ सोचे इस गूल के पास अपने 12 साल के बेटे का धड़ सिर से अलग कर दिया। कहा जाता है कि आगे-आगे माधो सिंह भंडारी के बेटे का खून बहता और पीछे-पीछे नदी का पानी। इस पानी में माधो सिंह भंडारी के बेटे का सिर व धड़ भी बहता हुआ मलेथा के सारी (खेतों) में पहुंच गया।

यह भी पढें : एसजीआरआर कर्णप्रयाग के पूर्व छात्र पीयूष पंत (Piyush Pant) का एनडीए में चयन

इस गूल के कारण 2018 तक मलेथा अपने हरे-भरे खेतों के लिए जाना जाता था, हालांकि महत्वाकांक्षी रेलवे परियोजना आने के बाद मलेथा के इन खेतों में रेलवे स्टेशन बनने के कारण अधिकांश खेती खत्म हो गई। लेकिन आज भी यहां के खेतों को माधो सिंह भंडारी द्वारा निर्मित गूल से
आने वाला पानी सिंचित करता है। गूल की वर्तमान स्थिति जर्जर बनी हुई है। मलेथा के लोगों को जीवन का वरदान देकर माधो सिंह भंडारी को वापस ड्यूटी पर बुला लिया गया।दिल पर एक बोझ लेकर वह अपना गाँव छोड़ गया और फिर कभी वापस नहीं लौटा। कई वर्ष बीत गए हैं और जब भी मलेथा में कोई निस्वार्थता और वीरता की बात करता है तो माधो सिंह की गाथा याद आती है और गर्व से गाई जाती है। 400 साल बाद भी, नहर अभी भी काम कर रही है और मलेथा के ‘कूलों’ ने गांव को समृद्ध और उपजाऊ बना दिया है।

यह भी पढें : नदी नालों की सफाई से स्वच्छ होगी गंगा (Ganga) : किरन सोनी

मलेथा के बहादुर बेटे को सम्मानित करने के लिए, गांव में माधो सिंह की एक बड़ी मूर्ति बनाई गई है, जिसकी स्थानीय लोग विशेष रूप से कटाई के मौसम में पूजा करते हैं। मलेथा की गूल एक देखने योग्य वस्तु है। मलेथा गाँव के दक्षिण-पश्चिम की ओर ऊपर से पहाड़ की एक ‘धार’ नीचे अलकनन्दा तक चली गई है। और उसके दूसरी ओर एक पर्वतीय नदी बहकर नीचे अलकनन्दा में मिल जाती है।माधोसिंह ने सोचा कि यदि किसी प्रकार बीच की ‘धार’ में सुरंग बनाकर उस नदी का पानी इस ओर ले जाया जाय, तो मलेथा में सिंचाई की जा सकती है। आखिर कई दिनों के प्रयत्न के बाद व मिस्त्रियों को स्वयं सहायता देकर व तरकीब बताकर ये उस कार्य में सफल हुए। इस सुरंग की लम्बाई अन्दर ही अन्दर लगभग एक फलांग है साथ ही ऊँचाई व चौड़ाई इतनी है कि कमर की सीध तक सिर झुका कर आर-पार जाया जा सकता है। उसके ऊपरी भाग में मजबूत पत्थरों की छत बनाई गई है और लोहे की कीलें गाड़कर उसे सुदृढ़ किया गया है।इस सुरंग के रास्ते लगभग पांच ‘घट’  पानी हर समय मलेथा की ओर आता रहता है और उसी के कारण मलेथा का मैदान एक उपजाऊ ‘सेरा’ बन गया है।

यह भी पढें : भारतीय सेना में देश की पहली महिला कमीशन प्राप्त करने वाली उत्तराखण्ड की बेटी मेजर प्रिया सेमवाल को मंत्री गणेश जोशी (Ganesh Joshi) ने किया सम्मानित

माधोसिंह भण्डारी के बल पौरुप और बुद्धिचातुर्य के कारण यह गढ़वाल भर के प्रसिद्ध ‘सेरों’ में से एक है उत्तराखण्ड राज्य में लोगों ने स्वयं के ज्ञान से कई अविष्कार किये हैं। इनमें से श्रीनगर गढवाल के पास मलेथा गांव में माधोसिंह भण्डारी नाम के शख्स ने बिना किसी आधुनिक यन्त्र के एक ऐसी सुरंग का निर्माण किया जो आज भी शोध का विषय बना हुआ है। इस सुरंग के मार्फत माधोसिंह ने ग्रामीणों के लिए न कि पानी की आपूर्ति की बल्कि मलेथा जैसी जमीन को सिंचित में तब्दील कर दिया। माधोसिंह भण्डारी की ही देन है कि ‘मलेथा का सेरा’ आज हजारों लोगों की आजीविका का साधन बना हुआ है। यही वजह है कि ‘मलेथा गांव’ के लोग अनाज इत्यादि खाद्य सामग्री कभी भी बाजार से नही लाते। माधो सिंह के मलेथा गांव में आज भी ऐसी कई परम्पराऐं हैं जो आज के युग में आदर्श बनी हुई है।

यह भी पढें : अच्छी खबर: रुद्रप्रयाग जिले को मिला चेस्ट फिजिशीयन (Chest Physician), अब इन बीमारियों के इलाज के लिए नहीं लगानी पड़ेगी अन्य शहरों की दौड़

गांव की पंचायत अपने वनों के प्रति सचेत है। घास तो वर्ष में कभी भी कितना भी वनों से लो, मगर लकड़ी कितनी काटनी है, इसके लिए मानक
निर्धारित हैं। गांव में शादी-ब्याह जैसे व्यक्तिगत आयोजन खोला स्तर पर ही होते हैं, पर सभी ग्रामीणों को निमन्त्रित भी किया जाता है। सार्वजनिक आयोजनों में सभी का शिरकत करना जरूरी है। कई मंदिरो में पूजा, माधोसिंह भण्डारी स्मृति मेला, श्रमदान और पंचायत बैठको में सभी ग्रामीण अनिवार्य रूप से भाग लेते हैं। गांव के भले के लिए अपने प्राण देने वाले माधो सिंह भण्डारी के पुत्र गजे सिंह की स्मृति में रोपाई के अन्तिम दिन ‘मायाझाड़ा खेत’ में समारोह होता है। बकरे की बलि दी जाती है। समाज के लिए बलिदान की याद शायद यही पंरपराओं को निभाने की शक्ति और प्रेरणा देता हो।

( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )

Next Post

अयोध्या नगरी से श्रीमहंत देवेन्द्र दास जी महाराज को प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल होने का आया निमंत्रण

अयोध्या नगरी से श्रीमहंत देवेन्द्र दास जी महाराज को प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल होने का आया निमंत्रण देहरादून/मुख्यधारा भगवान श्री राम की अयोध्या नगरी से श्रीमहंत देवेन्द्र दास जी महाराज को निमंत्रण पत्र आया है। 22 जनवरी को अयोध्या […]
a 1 2

यह भी पढ़े