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भारतीय गणित परंपरा का चमकता सितारा रामानुजन (Ramanujan)

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भारतीय गणित परंपरा का चमकता सितारा रामानुजन (Ramanujan)

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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर, 1887 को तमिलनाडु के इरोड शहर में हुआ था। वे कुंभकोणम के एक छोटे से घर में पले-बढ़े जो अब उनके सम्मान में एक संग्रहालय है। उनके पिता एक क्लर्क के रूप में काम करते थे और उनकी मां एक गृहिणी थीं। छोटी सी उम्र से ही उनमें उन्नत गणितीय ज्ञान देखा गया और 13 साल की उम्र में, उन्होंने अपने स्वयं के परिष्कृत प्रमेयों पर काम करना शुरू कर दिया था।श्रीनिवास अयंगर रामानुजन आज भी दुनिया भर के गणितज्ञों के लिए एक प्रेरणा बने हुए हैं। रामानुजन स्व-शिक्षित थे, उनका जीवन भले ही छोटा था लेकिन उन्होंने बहुत ही उत्पादक जीवन जिया और उनके काम ने आने वाले कई सालों में बहुत सारे शोध को प्रेरित किया। उनकी उपलब्धियों का सम्मान करने के लिए 22 दिसंबर को उनकी जयंती को राष्ट्रीय गणित दिवस के रूप में मनाया जाता है।

रिपोर्ट्स के अनुसार, रामानुजन अपने विचारों को हरी स्याही से लिखते थे। उनकी एक नोटबुक, जिसे ‘लॉस्ट नोटबुक’ के नाम से जाना जाता है, ट्रिनिटी कॉलेज के पुस्तकालय में मिली और बाद में एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुई। जनवरी 1913 में, उन्होंने ऑर्डर्स ऑफ इन्फिनिटी के लेखक जी एच हार्डी को अपनी कुछ रचनाएं भेजीं। हार्डी ने रामानुजन के काम की समीक्षा की और उन्हें ‘ढोंगी’ करार दिया, लेकिन एक महीने बाद, उन्होंने इस युवा भारतीय को कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में आमंत्रित किया। शुरू में जाने से इनकार करने के बाद, रामानुजन कैम्ब्रिज पहुंचे और वहां उनका गणित के नायक के रूप में स्वागत किया गया। साल 1918 में, 31 वर्षीय महान गणितज्ञ को रॉयल सोसाइटी के फेलो के रूप में शामिल किया गया था, जो उस समय यह उपलब्धि हासिल करने वाले दूसरे भारतीय थे।

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रामानुजन ने जटिल गणित की समस्याओं को हल करने में अपने अंतर्ज्ञान का पालन किया और क्षेत्र में उनके अपार योगदान की मान्यता में उनके नाम पर एक प्राइम नंबर रखा गया रामानुजन प्राइम। उनके जीवन और उनकी उपलब्धियों को प्रदर्शित करने के लिए कई फिल्में बनाई गई हैं, जिनमें से एक 2015 में आई ब्रिटिश बायोग्राफिकल ड्रामा ‘ मैन हू न्यू इनफिनिटी’ शामिल है। हाईस्‍कूल में गणित और अंग्रेजी में अच्‍छे अंक मिले थे तो स्‍कॉलरशिप भी मिल गई। लेकिन फिर बारहवीं में पहुंचने तक गणित के प्रति दीवानगी ऐसी बढ़ी कि बाकी विषय उन्‍होंने पढ़ना ही छोड़ दिया। नतीजा ये हुआ कि गणित छोड़ बाकी हर विषय में फेल हो गए। स्‍कॉलरशिप मिलनी बंद हो गई. परिवार के पास इतने पैसे नहीं थे कि जीनियस बेटे को अपने दम पर पढ़ा पाते। प्राइवेट परीक्षा दिलवाने की कोशिश हुई तो वहां भी गणित छोड़ बाकी हर विषय में फेल हो गए।

रामानुजन की जिंदगी का वो पूरा दौर बहुत तकलीफों और संघर्षों भरा था। पांच रुपए महीना में गणित का ट्यूशन पढ़ाकर वो अपना खर्चा चलाते तभी विवाह हो गया। नौकरी करनी चाही तो नौकरी मिली नहीं क्‍योंकि वो तो बाहरवीं पास भी नहीं थे। रामानुजन की जिंदगी में जो भी मददगार हुए, उनसे उनकी मुलाकात इत्‍तेफाकन ही थी। ऐसा ही इत्‍तेफाक था कुंभकोणम के डिप्टी कलेक्टर वी. रामास्वामी अय्यर से मुलाकात। अय्यर खुद गणित के विद्वान थे।

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उन्‍होंने रामानुजन की प्रतिभा को पहचाना और उनके लिए 25 रुपए महीना की स्‍कॉलरशिप बंधवा दी। उसी पैसे से उन्‍होंने अपना पहला रिसर्च पेपर पढ़ा। ये वही रिसर्च पेपर था, जिसे लंदन के कैंब्रिज के प्रोफेसर ने पढ़ा था। ये रिसर्च पेपर रामानुजन के कैंब्रिज जाने की राह बना। उस प्रोफेसर का नाम था जी.एच. हार्डी. अपने समय के नामी गणितज्ञ, कैंब्रिज में गणित के प्रोफेसर. रामानुजन की कहानी में प्रो. हार्डी वैसे ही हैं, जैसे किसी पेड़ की कहानी में मिट्टी होती है। हार्डी के बगैर रामानुजन की कहानी वो नहीं होती, जो हुई। एक मंजे हुए जौहरी की तरह हार्डी ने दूर लंदन में बैठकर हिंदुस्‍तान के एक छोटे से गांव में गणितीय रहस्‍यों को सुलझा रहे इस जीनियस की प्रतिभा को पहचान लिया था।

रामानुजन और हार्डी के बीच लंबा पत्र-व्‍यवहार हुआ।अपने उन पत्रों में रामानुजन प्रो. हार्डी को अपने गणितीय समीकरण भेजते। उन्‍हें पढ़कर प्रो. हार्डी हैरान थे कि गणित की जिन समस्‍याओं को सुलझाने में इस वक्‍त दुनिया के तमाम महान गणितज्ञ लगे हुए हैं,उन्‍हें बिना किसी संसाधन और सहयोग के काम कर रहा यह गुमनाम सा शख्‍स कैसे इतनी सरलता से समझ ले रहा है। दोनों के बीच लंबी खतो-किताबत हुई। प्रो. हार्डी ने रामानुजन को कैंब्रिज आने का न्‍यौता भेजा।रामानुजन ने इनकार कर दिया क्‍योंकि उनके पास आने के पैसे नहीं थे. प्रो. हार्डी ने उन्‍हें आर्थिक सहायता भेजी, उनके लिए स्‍कॉलरशिप की व्‍यवस्‍था की और इस तरह रामानुजन कैंब्रिज पहुंच गए। एक और लड़ाई है, जो प्रो. हार्डी ने कैंब्रिज में रामानुजन के लिए लड़ी थी। वो थी उन्‍हें रॉयल सोसायटी फेलो बनाने की लड़ाई. रामानुजन की आर्थिक स्थिति अच्‍छी नहीं थी। उन्‍हें न सिर्फ उस फेलोशिप की सबसे ज्‍यादा जरूरत थी, बल्कि वो उसके सबसे काबिल हकदार भी थे।

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लेकिन वो समय दूसरा था। भारत अंग्रेजों का गुलाम था। भारतीयों को गोरी चमड़ी वाले वैसे भी हेय नजर से ही देखते थे। कैंब्रिज के सारे गोरे
प्रोफेसरों को लगता था कि उनकी सबसे प्रतिष्ठित स्‍कॉलरशिप का हकदार कोई अंग्रेज ही हो सकता है। रामानुजन को यह स्‍कॉलरशिप देने का अर्थ अपने बच्‍चों के साथ नाइंसाफी करना होगा। लेकिन प्रो. हार्डी रामानुजन के लिए पूरे कैंब्रिज से लड़ गए। सारे प्रोफेसर्स एक तरफ और प्रो. हार्डी एक तरफ अंत में जीत उन्‍हीं की हुई। रॉयल सोसायटी के इतिहास में यह अब तक नहीं हुआ था।हालांकि आज तक भी इतनी कम उम्र में किसी व्‍यक्ति को इस सोसायटी की सदस्‍यता नहीं मिली। रॉयल सोसायटी के बाद रामानुजन ट्रिनिटी कॉलेज की फेलोशिप पाने वाले भी पहले भारतीय भी बने। जब सब ठीक हो रहा था, जब दुनिया रामानुजन का नाम जानने लगी थी, रामानुजन महज 33 साल की उम्र में दुनिया से रुखसत हो गए। लेकिन अपने पीछे छोड़ गए वो सैकड़ों पन्‍ने, जिनमें गणित के असंभव समीकरण थे। जो बाद में महान गणितीय खोजों की आधारशिला बने।

कैम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज की लाइब्रेरी के किसी कोने में वो पेपर 50 साल तक पड़े धूल खाते रहे. काले रंग की स्याही से और बहुत हड़बड़ी में लिखे गए उन रहस्यमयी गणितीय समीकरणों वाले 130 पन्नों पर 1976  में पेनिसिल्‍वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी के गणितज्ञ डॉ. जॉर्ज एंड्रयूज की नजर पड़ी. बहुत सालों बाद जब उन गणितीय रहस्यों का खुलासा हुआ तो पूरी दुनिया हैरान रह गई। उसके बारे में ही भौतिक विज्ञानी फ्रीमैन डायसन ने एक बार कहा था, “ये फूल रामानुजन के बगीचे में बो बीजों से उगे हैं.” रामानुजन को ‘गणितज्ञों का गणितज्ञ’और ‘संख्याओं का जादूगर’कहा जाता है। उन्हें यह संज्ञा ‘संख्या -सिद्धान्त’ पर उनके योगदान के लिए दी जाती है।

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रामानुजन की प्रतिभा का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उनके निधन के बाद उनकी 5000 से अधिक प्रमेय (थ्योरम) छपवाई गईं। इन गणितीय प्रमेयों में अधिकतर ऐसी थीं, जिन्हें कई दशक बाद तक सुलझाया नहीं जा सका। गणित के क्षेत्र में की गई रामानुजन की खोजें आधुनिक गणित और विज्ञान की बुनियाद बनकर उभरी हैं। सही अर्थों में वह भारत की गौरवशाली गणितीय परंपरा के वाहक थे। वे ऐसे विश्वविख्यात गणितज्ञ थे, जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों और विषय गणित की शाखाओं में अविस्मरणीय योगदान दिया और जिनके प्रयासों तथा योगदान ने गणित को एक नया अर्थ दिया।उनके द्वारा की गई खोज ‘रामानुजन थीटा’ तथा ‘रामानुजन प्राइम’ ने इस विषय पर आगे के शोध और विकास के लिए दुनिया भर के शोधकर्ताओं को प्रेरित किया।

2014 में उनके जीवन पर आधारीत तमिल फ़िल्म ‘रामानुजन का जीवन’ बनाई गई थी। रामानुजन की 125 वीं एनिवर्सरी पर गूगल ने डूगल बनाकार उन्हें सम्मान अर्जित कीया था। श्रीनिवास रामानुजन के सम्मान में साल 2005 से रामानुजन पुरस्कार की शुरूआत हुई, इसे इंटरनेशनल सेंटर फॉर थियोरिटिकल फिजिक्स रामानुजन पुरस्कार भी कहा जाता है। रामानुजन पुरस्कार दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों में से एक है। यह हर साल विकासशील देशों के युवा गणितज्ञों को दिया जाता है, उनकी उम्र 45 वर्ष से कम होनी चाहिए। तथा यह इटली में स्थित सैद्धांतिक भौतिक केंद्र द्वारा प्रस्तुत किया जाता है।श्रीनिवास रामानुजन को गणित में दिए गए उनके महत्वपूर्ण योगदानों के लिए हमेशा याद किया जाता रहेगा।

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(लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं)

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