उत्तराखंड की अस्थाई राजधानी देहरादून (Dehradun) में तीसरा विधानसभा भवन
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड की राजधानी तय नहीं तो फिर तीन-तीन विधानभवन अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आने के बाद स्थायी राजधानी को लेकर उत्तराखंड में पिछले 23 साल से बात कही जा रही है, लेकिन आज तक स्थायी राजधानी नहीं उत्तराखंड की दो राजधानियां है। यहां की शीतकाल राजधानी देहरादून एवं ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैण है। भारत देश के एक से अधिक राजधानियों वाले राज्यों में शामिल होने वाला उत्तराखंड पांचवा राज्य है। इस राज्य की दो राजधानियां है, शीतकालीन राजधानी देहरादून एवं ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैण है।
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गैरसैंण को उत्तराखंड की राजधानी बनाने की मांग वर्ष 1992 में उत्तराखंड क्रांति दल ने उठाई थी। उत्तराखंड राज्य निर्माण के दो महीने बाद 11 जनवरी 2001 को सेवानिवृत्त जस्टिस वीरेंद्र दीक्षित की अध्यक्षता में एकल सदस्यीय राजधानी चयन आयोग बनाया गया। इस आयोग को 11 बार कार्यकाल विस्तार दिया गया। लगभग साढ़े सात साल बाद 17 अगस्त 2008 को आयोग ने राजधानी स्थल चयन को लेकर अपनी रिपोर्ट के नेतृत्व वाली तत्कालीन सरकार को सौंपी, जिसे 13 जुलाई 2009 को विधानसभा में प्रस्तुत किया गया। इस रिपोर्ट पर कोई कदम उठाने की किसी सरकार ने न जरूरत समझी और न हिम्मत दिखाई। दूसरी बार सत्ता में आई तो गैरसैंण को लेकर कुछ तेजी दिखी। पहली बार गैरसैंण का महत्व प्रदर्शित करने के लिए यहां कैबिनेट बैठक की गई। इसके बाद लगातार पांच साल गैरसैंण में विधानसभा का संक्षिप्त सत्र आयोजित किया गया। पिछले साल हालांकि यह क्रम टूटा।
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उत्तराखंड में सत्ता में रही पार्टियों, का रवैया गैरसैंण के मामले में 23 साल तक एक जैसा टालमटोल वाला रहा। मुद्दा सियासत से जुड़ा था तो दोनों पार्टियों ने इसे अपनी सुविधा के मुताबिक इस्तेमाल किया। गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाए जाने से यह पूरी तरह साफ भी हो गया। भराड़ीसैंण (गैरसैंण) के ग्रीष्मकालीन राजधानी बनते ही अब सियासी गलियारों में यह चर्चा तेज है कि देहरादून को निकट भविष्य में राजधानी बना दिया जाएगा। यह इसलिए भी तय माना जा रहा है क्योंकि पूरे राज्य में केवल देहरादून ही एकमात्र विकल्प है, जहां राजधानी के लिए पूरा आधारभूत ढांचा उपलब्ध है। गैरसैंण ग्रीष्मकालीन और देहरादून अस्थायी राजधानी है तो फिर राज्य की राजधानी कहां है।
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उत्तराखंड राज्य गठन को लेकर बढ़ रहे दबाव के बीच चार जनवरी 1994 को उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने अपने मंत्री की अध्यक्षता में छह सदस्यीय समिति का गठन किया। यहीं से उत्तराखंड के रूप में अलग राज्य निर्माण की नींव पड़ी। समिति ने गैरसैंण को राजधानी का एक विकल्प बताया था समाज के कथित ठेकेदार जब अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ने लगे तो किसी न किसी को तो आगे आना ही पड़ता है। उत्तराखंड की पीड़ा प्रदेश के नेताओं को को तो कभी महसूस नहीं हुई लेकिअं पहाड़ की एक बेटी ने जब पहाड़ की पीड़ा को अपने शब्दों में एक पत्र के रूप शब्दों से उकेरा तो हर किसी को यह सोचने को विवश होना पड़ा कि हाँ इसका संमाधान तो ‘गैरसैंण’ ही है, इस मुद्दे को लेकर उत्तराखंड के नेता पिछले सालों से कबड्ड़ी -कबड्ड़ी खेल रहे हैं लेकिन इस मुद्दे को कोई भी पार्टी हलकर सूबे के शहीद आंदोलनकारियों और जनाकांक्षाओं को पूरा करने का साहस नहीं दिखा पा रही हैं।
देहरादून में विधानसभा भवन और सचिवालय बनाने के लिए तैयार प्रोजेक्ट पर राज्य संपत्ति विभाग के अफसरों के साथ बैठक ली उन्होंने कहा कि मौजूदा विधानसभा भवन अच्छी हालत में नहीं है, हाईवे पर होने से सत्र के दौरान जनता को भी परेशानी होती है, अभी विधानसभा भवन, सचिवालय, सीएम आवास व मंत्री आवास अलग-अलग जगह हैं, बेहतर होगा कि ये सब एक जगह पर ही हों। विधानसभा अध्यक्ष ने बताया कि 2012 में रायपुर में नए विधानसभा भवन और सचिवालय सहित राजधानी बनाने को राज्य सम्पत्ति विभाग को 75 करोड़ रुपये स्वीकृत हुए थे। इसके तहत वन विभाग को 7.62 करोड़ रुपये दिए जा चुके हैं और 15.37 करोड़ रुपये और दिए जाने हैं। उन्होंने कहा कि चूंकि सरकार वन विभाग को भूमि का मूल्य दे चुकी है, ऐसे में विधानसभा भवन सहित अन्य निर्माण की सैद्धांतिक सहमति बन चुकी है।
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गैरसैंण में होने वाले हर सत्र में सराकर और विपक्ष के बीच गैरसैंण को लेकर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाए जाते रहे थे लेकिन समय बीतने के साथ लोगों को विश्वास होता जा रहा था कि यह ऐसा ही चलता रहेगा और गैरसैंण बस नूराकुश्ती का विषय बना रहेगा सरकारों की उदासीनता से वीरान पड़ा करोड़ों की लागत से बना खूबसूरत विधानसभा भवन, जानें क्या है खासियत कहते हैं सियासतदां बिना राजनीतिक नफा-नुकसान देखे कोई काम नहीं करते। उत्तराखंड राज्य आंदोलन की लड़ाई के दौरान गैरसैंण को राजधानी घोषित किया गया था। राज्य बना तो देहरादून को राजधानी बना दिया गया। राजनीतिक ईंधन के लिए गैरसैंण में विधानसभा भवन बनाया गया। गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किया गया। अब चुनाव हो चुके। अगले पांच साल कोई टेंशन नहीं है तो नेता लोग ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण और उसके भराड़ीसैंण में बने विधानसभा भवन को भी भूल गए हैं।
प्रदेश की राजधानी गैरसैंण न बनाये जाने से व जनांकांक्षाओं को रौंदकर बलात देहरादून में कुण्डली मारकर बैठे रहने से उतराखण्ड के पर्वतीय जनपदों से शिक्षा, चिकित्सा,रोजगार, उद्यम व शासन सब उजड़ कर देहरादून व उसके आसपास मैदानी जनपदों में सिमट कर रह गये है। इससे जहां उतराखण्ड की जनता बेहतर शिक्षा,चिकित्सा व रोजगार आदि सुविधाओं के लिए मजबूरन अपने गांव खलिहाल छोड़ कर शहरों की खाक छानले के लिए पलायन करना पड़ रहा है। इससे हजारों गांव विरान हो गये है। चीन से लगे उतराखण्ड के सीमांत जनपदों से हो रहे इस प्रकार का पलायन देश की सुरक्षा के लिए एक बहुत बड़ा खतरा है।इससे उबरने के लिए प्रदेश सरकार को प्रदेश की करोड़ों रूपये लागत की बनी प्रदेश की एकमात्र विधानसभा गैरसैंण को प्रदेश की राजधानी तुरंत घोषित करनी चाहिए।
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गैरसैंण में राजधानी बनने से जहां प्रदेश के पर्वतीय व सीमान्त जनपदों में शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार, विकास व शासन की स्थिति में भारी सुधार होगा। इससे जहां इन क्षेत्रों से हो रहे विनाशकारी पलायन पर अंकुश लगेगा। राजधानी गैरसैंण बनने से जहां प्रदेश गठन आंदोलन की जनांकांक्षाओं व आंदोलनकारी/शहीदों का सपना पूरा होगा। वहीं प्रदेश का चहुंमुखी विकास होगा। पलायन पर अंकुश लगेगा और देश की सुरक्षा पर सीमांत जनपदों से हो रहे पलायन से मंडरा रहा खतरा भी दूर होगा। इसलिए उतराखण्ड के हुक्मरानों ने अपनी पंचतारा सुविधाओं के मोह में देहरादून में ही कुण्डली मार कर बने रहने का दुराग्रह त्याग कर देश की सुरक्षा, उतराखण्ड की जनांकांक्षाओं व प्रदेश के चहुंमुखी विकास के लिए तुरंत गैरसैंण को प्रदेश की राजधानी घोषित कर देनी चाहिए।अन्यथा बिना गैरसैंण राजधानी घोषित किये देहरादून, दिल्ली व मुम्बई में बन रहे ये तमाम पंचतारा भवन प्रदेश के लिए टोटके ही साबित होगें।सरकारों की मंशा तो देहरादून में नए विधानसभा और सचिवालय परिसर खड़ा करने की है।
( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )