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औषधीय गुणों से भरपूर थुनेर (Thuner) वृक्ष का अस्तित्व खतरे में

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औषधीय गुणों से भरपूर थुनेर (Thuner) वृक्ष का अस्तित्व खतरे में

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

उत्तराखण्ड प्रदेश उच्च हिमालयी क्षेत्र में होने के कारण अनेकों विशेषताएं रखता है। उत्तराखण्ड में लगभग 700 से अधिक औषधीय प्रजातियां पायी जाती है तथा हमारे पूर्वज वैदिक काल से ही इन्हें विभिन्न औषधीय रूपों में उपयोग करते आ रहे है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जब एंटी बायोटिक के क्षेत्र में एक बहुत बडी खोज के रूप में पेनिसिलीन नामक दवा बनाई गयी जिसने उस समय की सबसे बडी समस्या इन्फेक्ट्स बिमारियों से दुनिया को निजात तो दी मगर उसी के बाद से ही कैंसर जैसी बिमारियां बडी समस्या के रूप में उभर कर आने लगी। कैंसर के इलाज के लिए दुनिया के पास कीमोथेरेपी के अलावा और अन्य कोई विकल्प नहीं था फिर दुनिया के बडे-बडे कैंसर रिसर्च संस्थानों द्वारा शोध कर पहला प्राकृतिक कैंसर प्रभावी वृक्ष थुनेर खोजा गया।

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उत्तराखण्ड बेसकीमती इस कारण इसका अवैध व्यापार तेजी से फलने- फूलने लगा है। जड़ी- बूटियों के बाजार में थुनेर के पेड़ की छाल की मांग सबसे अधिक होने के कारण इस वृक्ष की छाल उतारे जाने के कारण अनेक स्थानों पर इसके जंगल के जंगल अब खत्म होने लगे हैं। उत्तराखण्ड में यह देवदार तथा राई के जंगलों के बीच पाया जाता है। इसकी बढ़त काफी कम होने के कारण इसके जंगल काफी सीमित स्थानों पर ही मिलते हैं। यह नम तथा ठंडी जलवायु में उगता है। इसका वैज्ञानिक नाम टैक्सस बकैटा है इस पेड़ में टैक्सस नामक रसायन पाया जाता है। यह रसायन यूरोपीय देशों में कैंसर की दवा बनाने में प्रयोग होता है। यूरोपीय देशों में मिलने वाले थुनेर वृक्ष में काफी कम मात्रा में यह रसायन मिलता है और वह भी केवल उसके तने के भीतर। लेकिन उत्तरांचल में पायी जानी वाली प्रजाति के टैकसस बकैटा में टैकसस नामक यह रसायन उसके हर अंग में मिलता है। पत्तियो से लेकर उसके तने हर जगह यह पाया जाता है।

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कैंसर के अलावा इस पेड़ का परंपरागत रूप से भी अनेक बीमारियो के निदान के लिए औषधी के रूप में प्रयोग किया जाता है। यहां के ग्रामीण व आदिवासी लोग इसकी छालों को परंपरागत चाय के लिए भी उपयोग में लाते रहे हैं। बेसकीमती थुनेर के जंगलों पर भी वन तस्करों की नजर लग गई है। हिमालय की ऊंचाई पर पाया जाना वाला यह पेड़ कैंसर की दवा बनाने में प्रयोग होने के कारण सबसे अधिक संकट में है। उत्तरांचल में इस कारण इसका अवैध व्यापार तेजी से फलने- फूलने लगा है। जड़ी- बूटियों के बाजार में थुनेर के पेड़ की छाल की मांग सबसे अधिक होने के कारण इस वृक्ष की छाल उतारे जाने के कारण अनेक स्थानों पर इसके जंगल के जंगल अब खत्म होने लगे हैं। हम हफ्ते केदारनाथ कस्तूरी मृग अभयारण जैसे संरक्षित क्षेत्र के भीतर से अवैध रूप से निकाली गई थुनेर की छाल ने इस अवैध कारोबार के 50 किलो छाल बरामद की। छाल को लेकर जा रहे वन तस्कर वन्य जीव रक्षकों को देखते ही भाग गए, लेकिन खाल तोली के समीप ही जंगल में छोड़ गए।

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अंग्रेजी में इंग्लिश यू के नाम से जाना जाने वाला यह पेड़ दुनिया भर में विशेषकर उत्तरी यूरोप से लेकर उत्तरी अफ्रिका तथा एशिया में मिलता है। इसकी ऊंचाई 10 फुट से लेकर अनेक स्थानों पर तीस- चालीस फुट तक मिलती है। उत्तराखण्ड में यह देवदार तथा राई के जंगलों के बीच पाया जाता है। इसकी बढ़त काफी कम होने के कारण इसके जंगल काफी सीमित स्थानों पर ही मिलते हैं। यह नम तथा ठंडी जलवायु में उगता है।इसका वैज्ञानिक नाम टैक्सस बकैटा है इस पेड़ में टैक्सस नामक रसायन पाया जाता है। यह रसायन यूरोपीय देशों में कैंसर की दवा बनाने में प्रयोग होता है। यूरोपीय देशों में मिलने वाले थुनेर वृक्ष में काफी कम मात्रा में यह रसायन मिलता है और वह भी केवल उसके तने के भीतर। लेकिन उत्तरांचल में पायी जानी वाली प्रजाति के टैकसस बकैटा में टैकसस नामक यह रसायन उसके हर अंग में मिलता है। पत्तियो से लेकर उसके तने हर जगह यह पाया जाता है।

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पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए करीब आठ साल पहले जागेश्वर में 58 लाख रुपये की लागत से विकसित किया गया हर्बल गार्डन बर्बाद हो चुका है। बजट के अभाव में हर्बल गार्डन में रखे गए मजदूर तीन साल पहले हटा दिए गए। जिससे गार्डन में लगाए गए तुलसी, जंबू, थुनेर, सतावर, आंवला, तेजपात, ब्राह्मी आदि के पौधे भी सूख चुके हैं और इनकी जगह वहां घास उग आई है। इतना बजट खर्च करने के बाद अब हर्बल गार्डन को बंद कर दिया गया है। हाल ही में हुए एक महापुरुष के जागेश्वर दौरे के बाद नीति-निर्माताओं के मन में आया है कि हज़ार बरसों से आदमी को जागेश्वर पहुंचा रहा वह रास्ता बहुत संकरा। नए ज़माने की तेज़-रफ़्तार गाड़ियां आगे-पीछे करने में दिक्कत होती है। समय भी बहुत लगता है। सड़क को चौड़ा करना होगा ताकि जो रास्ता पंद्रह मिनट लेता था अब दस मिनट में पार हो जाए।सारी दुनिया जागेश्वर पहुँच जाए. सबको मोक्ष मिले.इक्कीसवीं सदी के भारत का सबसे बड़ा सपना यह है कि एक-एक सड़क को इतना चौड़ा बना दिया जाय कि उस पर टैंक चलाये जा सकें। सबको रफ़्तार चाहिए. टाइम किसी के पास नहीं है।जागेश्वर वाली सड़क पर मौजूद देवदार के वे एक हज़ार से ज़्यादा पेड़ क्या करें जिन पर चूने से निशान लगा दिए हैं ताकि जब आरियाँ चलाई जाएं तो उन्हें पहचानने में दिक्कत न हो। इन सब को काटे जाने की तैयारी है।

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(लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं )

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