पहाड़ का दर्द प्रधानमंत्री के नाम पर चुनाव जीतने वाले सोचें उन्होंने क्या किया? - Mukhyadhara

पहाड़ का दर्द प्रधानमंत्री के नाम पर चुनाव जीतने वाले सोचें उन्होंने क्या किया?

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पहाड़ का दर्द प्रधानमंत्री के नाम पर चुनाव जीतने वाले सोचें उन्होंने क्या किया?

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

भारत का 80 फ़ीसदी परिवेश ग्रामीण है। ऐसे ही गांव मिलकर देवभूमि का निर्माण करते हैं।लिहाजा गांव हैं तो हम हैं,गांव हैं तो हमारी संस्कृति है। ऐसे में जब तक गांव सुरक्षित नहीं हैं, हमारी संस्कृति सुरक्षित नहीं है. वर्तमान समय में गांव से पलायन होने की मुख्य वजह स्वास्थ्य, शिक्षा और सड़क के साथ मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। गांव में पानी के प्राकृतिक स्रोत, शुद्ध हवा, जंगल और जमीन थे, जहां आप बिना रोक टोक घूम सकते थे, लेकिन समस्या ये है कि ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य और शिक्षा खत्म होने की कगार पर है। यही कारण है कि पर्वतीय क्षेत्रों का युवा जल, जंगल और जमीन छोड़कर शहर की तरफ भाग रहा है। उत्तराखंड में नशा गंभीर समस्या बनता जा रहा है। शहर में बच्चों के स्कूल बैग तक नशा पहुंच गया है। प्रदेश के शहरी क्षेत्रों के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले छोटे-छोटे बच्चे भी नशे की गिरफ्त में फंसे हुए हैं। ऐसे में
एक बड़ा सवाल यही है कि शहर से ग्रामीण क्षेत्रों में नशा कैसे पहुंच रहा है?जो आने वाले समय में एक गंभीर समस्या बनकर प्रदेश में उभरेगा। युवाओं में बढ़ता नशा सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। युवाओं के भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए उन्हें नशे की गिरफ्त से बाहर निकलना होगा। यदि जनता चाहे तो वो वोट की शक्ति से बड़े-बड़ों के तख्त पलट सकती है।

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विधायक और सांसद के पास काम करने के लिए पांच साल का वक्त बहुत होता है। स्थानीय मुद्दों की बात की जाए तो उत्तराखंड में धधकते जंगल बड़ा मुद्दा है। उत्तराखंड में हर तरफ जंगलों में आग लगी हुई है। उत्तराखंड आने वाला पर्यटक चारधाम के दर्शन के साथ ही खूबसूरत पहाड़ों का दीदार करने आता है, लेकिन मौजूदा समय में धुंध होने के चलते पहाड़ नहीं दिख रहे हैं. ऐसे में चुनाव के दौरान प्रत्याशियों से अपनी स्थानीय समस्याओं को लेकर सवाल करना चाहिए। प्रदेश के युवाओं का सबसे पहला मुद्दा जल, जंगल और जमीन को सुरक्षित करना है। कुछ लोगों ने मजबूरी में अपनी जमीनों को बेचा है। कुछ सरकारों ने बेचा, कुछ ठेकेदारों ने बेचा, ऐसे में अब प्रदेश का युवा जाग चुका है कि हमारे जल, जंगल और जमीन कितने कीमती हैं। ऐसे में विकास का एक दायरा होना चाहि। शहरी क्षेत्र के लिए अलग और ग्रामीण या पर्वतीय क्षेत्र के लिए अलग।शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में विकास का एक दायरा भविष्य के लिहाज से ठीक नहीं है। प्रदेश का युवा यह जान चुका है कि सख्त भू कानून की आवश्यकता है।साथ ही मूल निवास का मुद्दा भी है। पर्वतीय क्षेत्रों में महिलाओं के लिए स्वरोजगार की अपार संभावनाएं हैं। ऐसे में महिलाओं को आगे लेकर स्वरोजगार से जोड़ सकते हैं।

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केंद्र सरकार की ओर से ग्रामीण स्तर पर महिलाओं के लिए तमाम योजनाएं चलाई जाती हैं।ऐसे में ग्राम प्रधानों को इतना जागरूक होना चाहिए कि योजनाओं की जानकारी महिलाओं तक पहुंचाएं। अगर सरकार की ओर से योजनाएं नहीं आ रही हैं तो उसके लिए लड़ें, ताकि उनके गांव की महिलाओं के साथ प्रदेश की सभी महिलाओं का भला हो सके।आज भी प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में तमाम महिलाएं काम कर रही हैं। इसके साथ ही महिलाएं आज भी बिना किसी शिकायत के परिवार का पूरा काम कर रही हैं। इसके साथ ही प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में बुजुर्गों के लिए छोटे-छोटे क्लीनिक भी बनाए जाने चाहिए, ताकि वो बिना किसी के सहारे के ही अपना इलाज करवाने जा सकें। भारत को सर्वोच्च शिखर तक पहुंचाने में मौजूदा केंद्र सरकार बहुत बेहतर काम कर रही है। इसीलिए इस सरकार को लंबे समय तक केंद्र की सत्ता में बने रहना जरूरी है, लेकिन केंद्र सरकार के भरोसे पूरा देश नहीं चल सकता है।

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केंद्र सरकार जो काम कर रही है, उसको ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंचने में काफी लंबा समय लगता है। ऐसे में गांव में बैठे प्रधान अगर यह सोच रहे हैं कि प्रधानमंत्री के नाम पर वह चुनाव जीत जाएंगे तो वह अपने आप को निम्न कोटि पर रखकर तौल रहे हैं। ऐसे में अगर कोई भी उम्मीदवार बनता है तो वह अपने आप से पूछे कि वह इतनी बार जीत चुका है, लेकिन अभी तक जनता के दिल में अपने लिए जगह नहीं बन पाया है।साथ ही कहा कि प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के अंदर काफी आक्रोश है, क्योंकि वहां जनप्रतिनिधियों ने कोई काम नहीं किया। स्थानीय मुद्दों पर ही चुनाव होने चाहिए, हालांकि लोकसभा चुनाव हैं, ऐसे में लोकसभा चुनाव के दौरान राष्ट्रीय मुद्दे होते हैं, लेकिन स्थानीय मुद्दों पर भी वार्ता होनी चाहिए। चुनाव के दौरान स्थानीय मुद्दों पर बात होनी चाहिए, जिसके तहत ठोस भू कानून, 1950 से मूल निवास, पहाड़ों पर रहने वाले लोगों के
लिए अलग से इंसेंटिव की व्यवस्था, ऑर्गेनिक खेती और उन्नत उत्पादन को बढ़ावा देने पर बात के साथ ही विषम परिस्थितियों में रहने वाले लोगों के लिए वित्त पोषित योजनाएं होनी चाहिए।

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इसके अलावा सिंगल विंडो सिस्टम, मानकों में सहूलियत, नौकरियों की टर्म कंडीशन में रियायत बरती जाए. सरकार जब कोई नीति बनती है, तो उसमें इस बात का ध्यान रखा जाए कि उसका फायदा सभी को हो। उसमें तमाम कागजातों या प्रमाण पत्रों को अनिवार्य कर दिया जाएगा
तो ऐसे में जनता को काफी दिक्कत होती है। पहाड़ से पलायन रोकने के लिए जरूरी है कि अधिकारी भी पहाड़ में ही रहें। राजकीय कार्यालय सिर्फ मैदानी क्षेत्रों में न हों, बल्कि पर्वतीय क्षेत्रों पर भी हों। इसके अलावा गैरसैंण में भी सरकारों को रहना होगा। इसके साथ ही पर्वतीय क्षेत्रों में नेताओं को हवाई यात्रा के बजाए सड़क मार्ग से जाना चाहिए, ताकि वो जमीनी हकीकत से रूबरू हो सकें।उत्तराखंड राज्य को प्रकृति ने कई अनमोल तोहफों से नवाजा है, जिसको संरक्षित करते हुए पर्यटन को बढ़ाया जा सकता है, लेकिन यह सच्चे मन से करना पड़ेगा, यह काम अगले 5 साल को सोचकर नहीं, बल्कि अगले साल को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए। कुल मिलाकर दूर की दृष्टि रखनी पड़ेगी।इसके लिए सरकार और राजनेताओं को मजबूत इच्छाशक्ति दिखानी होगी।

(लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं)

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