Chartham yatra-2024 : बदरीनाथ धाम (Badrinath Dham) के कपाट खुले, हजारों श्रद्धालु रहे मौजूद, जयकारों से गूंज उठा मंदिर परिसर
श्री बदरीनाथ धाम/मुख्यधारा
दो दिन पहले 10 मई अक्षय तृतीया के दिन बाबा केदारनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री धाम के कपाट खोले गए थे। वहीं चार धाम में से एक बद्रीनाथ (Badrinath Dham) के पट आज से खुल गए हैं। सुबह 6 बजे आर्मी बैंड की धुन के बीच मंदिर के द्वार खुले।
इस मौके पर देश के कोने-कोने से आए 20 हजार से ज्यादा श्रद्धालु मौजूद थे। बद्री विशाल लाल की जय’ के जयकारों से धाम गूंज उठा।
इससे पहले ब्रह्ममुहूर्त में मंदिर के बाहर गणेश पूजन हुआ। इसके बाद पुजारियों ने द्वार पूजा की। मंदिर का कपाट तीन चाबियों से खोला गया। अब अगले 6 महीनों तक श्रद्धालु भगवान बद्रीनाथ के दर्शन कर सकेंगे।
इस मौके पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि आज प्रभु बदरी विशाल के कपाट वैदिक मंत्रोच्चार और पूर्ण विधि-विधान के साथ खोल दिए गए हैं। आप सभी भक्तजनों का चारधाम यात्रा में हार्दिक स्वागत और अभिनंदन।
इससे पहले 11 मई को सुबह भगवान बद्रीनाथ की डोली पांडुकेश्वर मंदिर से रवाना हुई। पालकी में गरुड़ जी और शंकराचार्य की गद्दी थी। पांडुकेश्वर मंदिर से डोली में कुबेर और उद्धव जी की चलित प्रतिमा भी शामिल हुई। डोली के साथ मंदिर के रावल ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी और शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती थे। डोली 11 की शाम को मंदिर पहुंची।
बदरीनाथ को भू बैकुंठ धाम भी कहा जाता है। बद्रीनाथ हिंदुओं के प्रमुख तीर्थ स्थलों में एक है, जो भगवान विष्णु को समर्पित है। यह मंदिर वैष्णव के 108 दिव्य देसम में प्रमुख माना जाता है। इसे भू यानी धरती का बैकुंठ भी कहा जाता है।
बद्रीनाथ मंदिर परिसर में 15 मूर्तियां हैं। जिनमें भगवान विष्णु की एक मीटर ऊंची काले पत्थर की प्रतिमा प्रमुख है। बद्रीनाथ धाम में बदरी विशाल यानी भगवान विष्णु ध्यान मग्न मुद्रा में विराजमान हैं। जिनके दाहिने ओर कुबेर, लक्ष्मी और नारायण की मूर्तियां सुशोभित हैं।
बता दें कि उत्तराखंड के चमोली जिले में ये मंदिर समुद्र स्तर से 3,133 मीटर की ऊंचाई पर बना है। हर साल करीब 10 लाख श्रद्धालु बद्रीनाथ धाम पहुंचते हैं। मंदिर में भगवान विष्णु की बद्रीनारायण स्वरूप की 1 मीटर की मूर्ति स्थापित है। इसे श्री हरि की स्वयं प्रकट हुई 8 प्रतिमाओं में से एक माना जाता है।
मान्यता है कि भगवान विष्णु ध्यान करने के लिए एक शांत और प्रदूषण मुक्त जगह की तलाश में यहां पहुंचे थे। इतिहास के मुताबिक बद्रीनाथ धाम को आदि शंकराचार्य ने 9वीं शताब्दी में स्थापित किया था।
कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने ही अलकनंदा नदी से बद्रीनाथ की मूर्ति निकाली थी। इस मंदिर का वर्णन स्कंद पुराण और विष्णु पुराण में भी मिलता है। मंदिर के वैदिक काल (1750-500 ईसा पूर्व) में भी मौजूद होने के बारे में पुराणों में बताया गया है।
भगवान बद्रीनाथ का तिल के तेल से अभिषेक होता है। इसके लिए तेल टिहरी राज परिवार से आता है। बद्रीनाथ टिहरी राज परिवार के आराध्य देव हैं। मंदिर की एक चाबी राज परिवार के पास भी होती है।
बद्रीनाथ के पुजारी शंकराचार्य के वंशज होते हैं, वे रावल कहलाते हैं। केरल स्थित राघवपुरम गांव में नंबूदरी संप्रदाय के लोग रहते हैं। इसी गांव से रावल नियुक्त किए जाते हैं। इसके लिए इंटरव्यू होता है यानी शास्त्रार्थ किया जाता है। रावल आजीवन ब्रह्मचारी रहते हैं। गौरतलब है कि मंदिर के कपाट पिछले साल 14 नवंबर को बंद हुए थे।
इस अवसर पर स्वामी मुकुंदानंद महाराज, स्वामी गोविंदानंद महाराज, संस्कृति एवं कला परिषद की उपाध्यक्ष मधु भट्ठ, जिलाधिकारी हिमांशु खुराना, एसपी सर्वेश पंवार, बीकेटीसी उपाध्यक्ष किशोर पंवार, मंदिर समिति सदस्य कृपाराम सेमवाल, वीरेंद्र असवाल, आशुतोष डिमरी, भास्कर डिमरी, मुख्य कार्याधिकारी योगेंद्र सिंह, ग्राम प्रधान पीतांबर मोल्फा, प्रभारी अधिकारी अनिल ध्यानी, सहायक अभियंता गिरीश देवली, मंदिर अधिकारी राजेंद्र चौहान, थाना प्रभारी एलपी बिजल्वाण, ईओ नगर पंचायत सुनील पुरोहित, राजेंद्र सेमवाल मीडिया प्रभारी डा. हरीश गौड़, राज परिवार से ठाकुर भवानी प्रताप सिंह, राजगुरू कांता प्रसाद नौटियाल, कृष्णानंद नौटियाल, विनोद डिमरी, प्रशासनिक अधिकारी कुलदीप भट्ट, विवेक थपलियाल जेई गिरीश रावत, जगमोहन बर्त्वाल, संतोष तिवारी, लेखाकार भूपेंद्र रावत, संदेश मेहता दफेदार कुलानंद पंत, हरेंद्र कोठारी आदि मौजूद रहे।